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Sunday, December 12, 2021

लोचन नोट

शिलालेख
गांव - कोनी, अरपा किनारे, पास सरवानी शार...
बिल्हा से पूर्व करीब ७ मील, गांव के बाहर नदी
के किनारे खंडहर, मन्दिर में १ शिलालेख ६४ लकीर
का है। भाषा संस्कृत (देववाणी) अज्ञात

खंडहर
स्थान- बिलासपुर से १५ मील रेलवे स्टेशन शिव-
नाथ बृज से पश्चिम करीब ३ मील मनियारी
नदी के किनारेखंडहर मन्दिर हैं जो कि बड़े-
पत्थर से बने हैं, जिसमें गारा आदि का पता
याने जोड़ाई का पता नहीं लगता, जिसे देवरानी
जेठानी का मन्दिर कहते हैं वहीं से कोई एक
मूर्ति जांच के लिये ले गया है। यह गांव -
ताला के खार में है। ताला के पास पंवसरी वा दगौरी है।

अशोक चक्र
बिल्हा से ५ मील दूर मूरु गांव में पास खर-
केना में नये मन्दिर में अशोक चक्र १ है। वह
३ हाथ करीब लम्बा, १ हाथ चौड़ा अन्दाजी।



पं. लोचन प्रसाद पांडेय का हस्तलिखित यह नोट, बिलासपुर के श्री महेशचंद्र वर्मा के पास सुरक्षित दस्तावेजों में (जिसकी छायाप्रति तैयार कराने की अनुमति उन्होंने दी थी) मैंने 1987-88 में देखा था, यह 1957 का बताया गया। उक्त नोट के तीन में से पहला ‘शिलालेख‘ बिलासपुर-शिवरीनारायण मार्ग पर दर्रीघाट-लिमतरा के आगे लावर-कोनी का है, कलचुरिकालीन इस शिलालेख का वाचन-प्रकाशन हो चुका है। दूसरा ‘खंडहर‘ में ताला, ग्राम- अमेरीकांपा के देवरानी-जिठानी का उल्लेख है, यह स्थान शिवनाथ और मनियारी नदी के संगम के पहले मनियारी में बसंती नाला के संगम पर है तथा अब रूद्र शिव मूर्ति के कारण विख्यात है। तीसरा ‘अशोक चक्र‘ तलाश का प्रयास खरकेना गांव के मंदिरों और उसके आसपास किया गया किन्तु सफलता नहीं मिली।

महेश जी, जगदलपुर वाले शरद जी, पं. सत्यदेव दुबे के वकील हरीश जी और मीडिया-विज्ञापन से जुड़े शिरीष जी के भाई थे। महेश जी शिक्षक थे और अधिकतर समय पेन्ड्रा, धनपुर क्षेत्र में शासकीय सेवा में रहे। छत्तीसगढ़ के प्राचीन व्यापारिक मार्गों की अच्छी-खासी जानकारी उन्हें थी। अधिकतर रास्ते उनके स्वयं चले-देखे हुए थे और बहुतेरी जानकारियां उन्होंने मवेशी बाजार करने वाले व्यापारियों से जुटाई थीं।

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