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Tuesday, December 21, 2010

अक्षर छत्तीसगढ़

सुतनुका का प्रेम संदेश
'ओड़ा-मासी-ढम', अजीब से लगने वाले ये छत्तीसगढ़ी शब्द, विद्यारंभ संस्कार के समय लिखाए जाने वाले 'ओम्‌ नमः सिद्धम्‌' का अपभ्रंश हैं, यानि ककहरा (वर्णमाला) 'क ख ग घ' या 'ग म भ झ' का अभ्यास, इस मंत्र से आरंभ होता था। अब भी कहीं-कहीं पाटी-पूजा के रिवाज में यह प्रचलित है। इस मंत्र का उपयोग विनम्रतापूर्वक अपनी अपढ़-अज्ञानता की स्वीकारोक्ति के लिए भी किया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पुराने जमाने के सबूत कम उजले नहीं हैं।

पहले कुछ बातें, लिखावट की। सभ्यता के क्रम में विचारशील मानव ने अपने भावों को भाषा में और फिर भाषा को लिपि में ढालकर, दूरी और काल की सीमाओं को लांघने का साधन विकसित किया है। हड़प्पा सभ्यता की ठीक-ठीक पढ़ी न जा सकी लिपि और मौर्यकाल के प्रमाणों के बीच, लगभग 2500 साल पुराने बौद्ध ग्रंथ 'ललित विस्तर' में 64 तथा जैन सूत्रों में 18 लिपियों की सूची मिलती है। इन्हीं सूचियों की ब्राह्मी लिपि से विकसित (भारत की लगभग सभी लिपियां और) हमारी आज की देवनागरी लिपि, सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि मानी गई है। यही नहीं, भले ही कागज का अविष्कार लगभग 2000 साल पहले चीन में हुआ माना जाता है, लेकिन 2400 साल पहले निआर्कस ने लिखा है कि हिन्दू (भारतीय) लोग कुंदी किए हुए कपास पट (कपड़े जैसे कागज) पर पत्र लिखते हैं।

छेनी, लौह-शलाका, बांस, नरकुल और खड़िया लेखनी बनती थी और मसि या स्याही सामान्य प्रयोजन के लिए कोयले को पानी, गोंद, चीनी या अन्य चिपचिपा पदार्थ मिलाकर बनाई जाती थी। स्थायी स्याही लाख का पानी, सोहागा, लोध्रपुष्प, तिल के तेल का काजल आदि को मिलाकर खौलाने से बनती थी। भूर्जपत्रों पर लिखावट के लिए उपयोगी, बादाम से बनाई गई स्याही तथा रंगीन स्याही का उल्लेख व तैयार करने का विवरण भी पुरानी पोथियों में प्राप्त होता है।

लिखना, लिपि, ग्रंथ जैसे शब्दों के मूल में लेखन की क्रिया-प्रक्रिया ही है। 'लिख' धातु का अर्थ कुरेदना है। 'लिपि' स्याही के लेप के कारण प्रचलित हुआ। 'पत्र' या 'पत्ता' भूर्जपत्र और तालपत्र के इस्तेमाल से आया। पत्रों के बीच छेद में धागा पिरोना 'सूत्र मिलाना' है और सूत्र ग्रंथित होने के कारण पुस्तक 'ग्रंथ' है, जबकि 'पुस्त' शब्द का अर्थ पलस्तर या लेप करना अथवा रेखाचित्र बनाना है। यानि ग्रंथ बनने की प्रक्रिया में पहले पत्रों पर लोहे की कलम अथवा सींक से अक्षर कुरेदे जाते थे, स्याही का लेप कर अक्षरों को उभारा जाता था, छेद बना कर उसमें धागा पिरोया जाता था तब वह ग्रंथ बनता था।

 किरारी काष्‍ठ स्‍तंभ
छत्तीसगढ़ में सभ्यता ने लिखावट के पहले-पहल जो प्रमाण उकेरे उनमें उड़ीसा की सीमा पर स्थित विक्रमखोल का चट्टान लेख है, जो हड़प्पा और ब्राह्मी लिपि के संधिकाल का माना गया है। आगे बढ़ते ही साक्षर छत्तीसगढ़ की तस्वीर साफ होती है, सरगुजा के रामगढ़ में, जहां पत्थर पर उकेरा, दुनिया का सबसे पुराना प्रेम का पाठ सुरक्षित है- 'सुतनुका देवदासी और देवदीन रूपदक्ष' का उत्कीर्ण लेख। किरारी से मिले लकड़ी पर खुदे दुनिया के सबसे पुराने कुछ अक्षर आज भी महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर में सुरक्षित हैं, जिसमें तत्कालीन राज व्यवस्था के अधिकारियों के पदनाम हैं और यहीं कुरुद का वह ताम्रपत्र भी है, जिसमें राजकीय अभिलेखागार के अस्तित्व और ताम्रपत्रों के चलन में आने की पृष्ठभूमि पता लगती है। महाभारत में उल्लिखित छत्तीसगढ़ के ऋषभतीर्थ-गुंजी में एक-एक हजार गौ के दान का हवाला है वहीं छत्तीसगढ़ी का सबसे पुराना नमूना, दन्तेवाड़ा के दुभाषिया शिलालेख में पढ़ने को मिलता है।

मत्स्यपुराण का उल्लेख है - ''शीर्षोपेतान्‌ सुसम्पूर्णान्‌ समश्रेणिगतान्‌ समान। आन्तरान्‌ वै लिखेद्यस्तु लेखकः स वरः स्मृतः॥'' अर्थात्‌ उपर की शिरोरेखा से युक्त, सभी प्रकार से पूर्ण, समानान्तर तथा सीधी रेखा में लिखे गए और आकृति में बराबर अक्षरों को जो लिखता है वही श्रेष्ठ लेखक कहा जाता है। यह कोटगढ़ (अकलतरा) के शिलालेख के इस हिस्‍से में घटा कर देखें।

वृहस्पति का कथन है - ''षाण्मासिके तु सम्प्राप्ते भ्रान्तिः संजायते यतः। धात्राक्षराणि सृष्टानि पत्रारूढान्‍यतः पुरा॥'' अर्थात्‌, किसी घटना के छः माह बीत जाने पर भ्रम उत्पन्न हो जाता है, इसलिए ब्रह्मा ने अक्षरों को बनाकर पत्रों में निबद्ध कर दिया है। किन्तु भ्रम से बचने के लिए ब्रह्मा द्वारा बनाई अक्षरों की लिपि 'ब्राह्मी' पढ़ना ही भुला दी गई और जब 1837-38 में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी की पूरी वर्णमाला उद्‌घाटित की, तब देवताओं का लेखा, बीजक या गुप्त खजाने का भेद समझे जाने वाले लेख, इतिहास की रोमांचक जानकारियों का भंडार बन गए और भारतीय संस्कृति की समृद्ध सूचनाओं का खजाना साबित हुए। पत्थरों पर खुदी इबारत में तनु भावों की कविता पढ़ ली गई और तांबे पर उकेरे गए अक्षर, सुनहरे-रुपहले इतिहास के पन्ने बने तब अक्षरों में हमारा गौरवशाली अतीत उजागर हुआ।

ये सब तो पुरानी बातें हैं। आज का समय 'बायनरी' के दो संकेत-अक्षरों का है, लेकिन इसमें संवेदना का अदृश्य आधा अक्षर जुड़कर 'ढाई आखर' प्रेम के बनते हैं, जो छत्तीसगढ़ में रामगढ़ की पहाड़ी में उकेरे गए और आज भी कायम हैं। छत्तीसगढ़ी अक्षर-ब्रह्म नमन सहित पढ़ाई-लिखाई की आरंभिक लोक-उच्चारण स्तुति 'ओड़ा-मासी-ढम' अनगढ़ और बाल-सुलभ तोतली सी हो कर भी, सार्थक और शुभ है।

आपस की बात :

इसके साथ कुछ पुराने गोरखधंधों का स्मरण। गुरुजी ने कभी कहा कि पुराने अभिलेख पढ़ना सीखना है तो उसी तरह से खुद लिखा करो, बस फिर क्या था, छेनी तो नहीं पकड़ी, लेकिन कागज कलम से नरकुल तक आजमा ही लिया। यानि गुरुओं की प्रेरणा से, मत्स्य पुराण के निर्देश अनुरूप, 'श्रेष्ठ लेखक' बनने की धुन में कम कलम-घिसाई नहीं की है हमने भी, इसका एक नमूना, कोई बारह सौ साल पुरानी ब्राह्‌मी के कोसलीय विशिष्टता वाली पेटिकाशीर्ष लिपि में ताम्रपत्र पर ग्रामदान प्रयोजन से उकेरे गए अक्षरों की नकल, जिसके पहले चिह्‌न को 'ओम्‌' या 'सिद्धम्‌' पढ़ा जाता है। मूल लिपि की नकल के साथ नागरी पाठ भी है, इसके सहारे थोड़े अभ्‍यास से आप भी खजानों का भेद पा सकते हैं।

सभी गुरुजनों का सादर स्मरण, विशेषकर, जिन्होंने अक्षरों की नकल उतारने की बजाय उन्हें लिखना, लिखे को पढ़ना और पढ़े को समझने की, आत्मसात करने की शिक्षा दी। सिखाया कि जो पढ़ो, पसंद आए, वह मुखाग्र और कंठस्थ रहे न रहे, हृदयंगम और आत्मसात हो।

डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर और डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम गुरु-द्वय की उदारता अबाध रही, अपनी संकीर्णता के लिए स्वयं जिम्मेदार हूं, लेकिन गुरुओं के कर्ज (ऋषि-ऋण) का बोझ सदैव ढोना चाहता हूं।

(गुरुओं की मर्यादा का ध्यान हो तो देखिए, अपने ही ब्लॉग पर अपनी एक फोटो, वह भी गुरुओं की आड़ में, चिपकाने के लिए कितनी मशक्कत करनी होती है, वरना पोस्‍ट तो यूं चुटकियों में और फोटो एलबम क्‍या पूरी गैलरी बना दें, अपनी खेती जो ठहरी।)

74 comments:

  1. बहुत ज्ञानवर्धक और संग्रहणीय-पाली लिपि की चर्चा आपने नहीं की क्यों ?

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  2. @ अरविंद मिश्र जी
    सविनय निवेदन, पाली (वैदिक और लौकिक संस्‍कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि सहित) भाषा है, जो सभी सामान्‍यतः ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती थी. यह फर्क इसी तरह है जैसे हिन्‍दी भाषा, नागरी लिपि में अथवा अंगरेजी भाषा, रोमन लिपि में लिखी जाती है. आम बोलचाल में भाषा और लिपि का फर्क न करने के कारण अक्‍सर ऐसा भ्रम होता है. वैसे तो यह मेल पर भेजना चाहता था, लेकिन लगा कि और भी स्‍नेहीजन का भी ऐसा प्रश्‍न होगा, इसलिए यहां टिप्‍पणी बतौर लगाने की धृष्‍टता कर रहा हूं, क्षमा करेंगे.

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  3. फोटो लगाने के आपके संकोच को समझ सकते है ा
    ..........
    बाकी आपके लीपी ज्ञान के आगे मै तो ... 'ओड़ा-मासी-ढम',
    खैर पोस्‍ट जानकारी बढाता है ा धन्‍यवाद
    सुनील चिपडे

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  4. bhartiya hone ke babjud.....isss baare me kuchh bhi nhi pata tha...:)
    padh kar achha laga:)

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  5. लेखक लिपि और सुत्र के संबंध में सार्थक जानकारी दी है आपने। लेखन की कला भारत में प्राचीन काल से रही है भले ही लोगों ने लेखन को अपने ज्ञान के हिसाब से लिपि प्रदान की है।

    सार्थक लेखन के लिए आभार

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  6. आपके ब्लाग से हिन्दी ब्लाग का दायरा बढ़ रहा है. इतिहास और लिपि मेम आपका अधिकार और विषय लेख को कई बार पढने को विवश करता है...

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  7. मैंने भी अपने बचपन में सुना है 'ओना मासि धम,गुरूजी चितम '.हमें बल सुलभ बचपन में लगता था कि गुरूजी चित्त कर दिए गए या हो गए,किसी से ज्ञान युद्ध में.
    आप ने पूरे प्रसंग को एक्सप्लेन किया है.दिल्ली के अध्ययन के दिनों में सोंचा था कि पुरानी लिपि को सीखूंगा पर नही हो पाया.नए शिष्यों का होना जरुरी है .

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  8. इस लिपि/लेखन/लीपना के नजदीक के प्रयोग के रूप मेँ तो मुझे अपने होलेरियथ कार्ड की पंचिंग लगती है, जो कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के आदि काल में हम किया करते थे।
    लगता है किसी लेखन का आदिकाल एक सा होता है! :)

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  9. मुझे बहुत कठिन लगा, लेकिन अभ्यास के जरिये सीखा जा सकता है... कठोर परिश्रम की आवश्यकता है... लिपियों के बारे में एक पुस्तक भी पढ़ी थी.. आपने ज्ञानवर्धन किया जिसके लिये धन्यवाद..

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  10. नयी लिपि सीखना सबसे कठिन है, किसी सभ्यता का उस आधार पर मूल्यांकन करना और भी कठिन। साधुवाद इस महत प्रयास के लिये।

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  11. हम तो अभी तक आपकी विनम्रता को आपका बड़प्पन ही समझते थे, आज पता चला कि 'ओड़ा-मासी-ढम' मंत्र-सूत्र इसका असली उत्तरदायी है। थोड़ा सा समय और अक्खड़पने में बिता लें, फ़िर इन्हीं शब्दों से विद्यारंभ करने की चाह जग रही है। आपका स्नेह मिलता रहा है, मार्गदर्शन भी मिलेगा, आशा-अपेक्षा दोनों हैं।
    जिस रोचक तरीके से आप इतने जटिल विषय को बखान जाते हैं, इसका लेश-मात्र भी आज के ५-सितारा स्कूलों में अपना लिया जाये तो शिक्षा बोझ न होकर व्यसन बन जाये।
    आभार।

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  12. बहुत सुंदर ओर नयी जानकारी दी आप ने इस लेख मे. आप का धन्यवाद

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  13. राहुल सर आपके ब्लॉग से हिंदी ब्लॉग्गिंग को गंभीरता मिल रही है और मानक सामग्री हिंदी में उपलब्ध होगी.. भोपाल के निकट भीम बाटिका में उपबल्ध शैल चित्र पर ऐसे लिपि हैं.. दुर्भाग्य है अपना कि हमारी प्राचीन भाषा पर जितना शोध बाहरी शिक्षाविदों ने किया है उसकी तुलना में हम कम कर पाए हैं.. गियेर्शन, जुल्स बलोच, फर्ग्युसन, बुल्के साहब आदि उनमे प्रमुख हैं.. आपके इस आलेख को पढ़कर मेरी भी रूचि प्राचीन भारतीय भाषों को पढने की हो रही है..

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  14. अपने आप को बहुत ही गौण महसूस कर रहा हूँ. वैसे तो था भी और हूँ भी. यह सर्वोत्तम उत्कृष्ट लेखन है. पहली टीप अरविन्द जी की देखी और तत्काल उनको समझाने के लिए शब्द ढून्ढ ही रहा था की आपकी टीप दिखी. मन हल्का हो गया.

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  15. आज तो आपकी क्लास में विद्यार्थी बनकर बैठने का सा अनुभव हुआ... यह लेख नहीं अभिलेख है... पत्थरों पर खुदे अक्षर और unicode लिपि में लिखी आपकी ये इबारतें धरोहर है!! आभार आपका!

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  16. Aadarniiya Rahul Sinh jii

    Bahut hii behatariin post. Gyaanwardhak, saarthak aur rochak bhii. Abhinandan! Aapne sahii kahaa hai, rishi rin se urin honaa itanaa sahaj bhii nahin hai. Kyonki jis din aap-ham ne yeh soch liyaa ki ham is mahaa rin se urin ho gaye, samajh liijiye ki ham chuk gaye.

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  17. आज आपका यह साक्षात लिपि अभिलेख पढकर धन्यता अनुभव कर रहा हूँ।

    जिज्ञासा समाधान के प्रयोजनार्थ-

    नागरी का विकास ब्राह्मी से ही हुआ है,फ़िर क्या कारण है कि ब्राह्मी प्रचलन से लुप्त ही हो गई?

    आपके द्वारा नकल की गई 'कोसलीय विशिष्टता वाली पेटिकाशीर्ष' लिपि की क्या विशेषताएँ हैं?

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  18. हम सब के गुरु ठाकुर साहब से काफी दिनों पहले चर्चा हुयी थी| ज्ञान के अपार सागर हैं वे| उनके भतीजे उनके कार्यों पर एक वेबसाईट बनाने का मन रखे हुए हैं|

    गुरु जी ही से इस बात की ओर ध्यान गया कि असली चम्पारण राजिम के पास न होकर कवर्धा में होना चाहिए था क्योंकि वहां अभी भी कदम्ब के ढेरों वृक्ष हैं|

    सलिहा से लेकर गिन्धोल और परसा तक के पौध भागों से ग्रामीण लेखन मैंने अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणों के दौरान देखा है| क्या इन सब के नाम इतिहास में मिलते हैं या इन्हें दर्ज करना शेष है?

    यदि आपको समय मिले तो गुरूजी के साथ घंटो चर्चा करे और उनकी आवाज को भविष्य के लिए सुरक्षित रख लें| शायद उनकी वेबसाईट के माध्यम से हम यह कर पाए|

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  19. सुतनुका का प्रेम सन्देश संभवतः सुब्रमनियन जी की किसी पोस्ट पे भी देखा था!आपका आलेख अत्यंत शोधपरक और संग्रहणीय है पर इसे पढते हुए एक ख्याल आया कि मुझ जैसे बहुतेरे लोग,इन दस्तावेजों को करिया अक्षर भैंस बराबर की तर्ज़ पर देखते रहे हैं क्योंकि पुरातत्वशास्त्र की न्यूनतम मर्यादाओं से भी अपरिचित हैं! अपने अतीत के संकेतों को नहीं पढ़ पाने का अपराध बोध तब होता है जब आप जैसे विद्वान की निगाहों से इन्हें देखना पड़ता है अब रास्ते दो ही हैं या तो आप पर हमारी निर्भरता बनी रहे या पुरातत्व के लोकव्यापीकरण की गरज से आप कोई पहल करें ! मतलब ये कि लिपियों को बूझने के लिए आपके गुरुओं ने जो ज्ञान आपको दिया वो आपके ब्लॉग में एक आलेख माला की तरह से प्रकाशित हो ,यानि कि पुरातत्वशास्त्र का ककहरा सिखाने जैसा कोई उपक्रम ब्लॉग लेखन के समानांतर चले !

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  20. में तो पहेल इस शोध लेखन के लिए आभर ब्यक्त करूँगा राहुल सर को.जब में इस ब्लॉग को पढ़ा तब मेरे मन में कुछ पुराना लेख की विषय में ज्ञान जागरण हुआ जिसको में इंग्लिश में उलेख क्या.बात हे हमारा लेखन कितना पुराना और किसी प्रकार वेस्टर्न बिद्वान लोग ने इसको गलत तरीके से पेश किए.परन्तु कुछ बिद्वान लोग ने जेसे माक्स मुलर ,बुर्नेल्ल ,डॉ बुह्लेर आदि ने कुछ हद तक काम किए.उसके बाद सिरकर,ओझा आदि बिद्वान ने अच्छा काम किए.

    With the discoveries of Harappan/Indus-Saraswati Civilasation in 1920s,the antiquity of writing going back to 4th Millennium B.C with the retrieval of many seals and sealing’s with letters. These letters are not only found on seals but also in other form like wooden sign board at Dholavira in Gujrat.There are about 300 different symbols.This glorious civilization came to an end about 1,500B.C.In Rigveda,it is mentioned that the king Savarni gave one thousand cows in alms,on whose ears figure eight was imprinted.The Satapatha brahmana gives minute divisions of day and night.Then a questions raised the date of Aryan/Rigveda and Harapan Civilization.But Marshal and Wheeler correlate the Aryans to Indus People some extent.The Vajasaneyai Samhita of the Yajurveda includes Ganaka(an astronomoer),in the list of people enumerated in connection with the Purusamedha.

    But nothing is known of what might have happened in the long period between(very roughly) 1,500B.C to 4/3rd C.B.C.Certain bits of evidence have been proposed as missing inks between the protohistoric and historical writings. But graffiti found on megalithic and chaloclitich pottery from southern and western India were discussed by B.B Lal who noted resemblances of some of the Brahmi script.Howeever Lal concluded with the suitable cautious note that to stress the point that the symbols do have a phonetic, syllabic or alphabetic value would indeed be presumptuous in the present state o f our knowledge.
    Scholars attempt to stress the antiquity of writing to 3rd C.B.C,but a new body of material has come to light that seems to support the older theory that Brahmi existed before Mauryan times,that is in the sixth century B.C or possibly even earlier. This is a small group o potsherds bearing short inscriptions evidently proper names, which were found in the course of excavation at Anuradhanpura,Srilaka in strata which are said to be securely assigned by radio carbon dating to the preMauryan period.
    Then we have more positive evidences that our past script is evolved befor than that(also vikramkhol,Odisha).The inscriptions are like:
    1.The Eran coing legend,2.Bhattiprallu relic casket inscription3.Taxila coin brahmi legends,4.The Mahasthan stone plaque,5.The sohgaura copper plate and 6.The Piprahwa vase inscription and etc.
    Meghastins
    When Meghasthins visited India (Ganga basin),he mentioned clearly that he found some inscribed mile stones which give clear cut idea of the roads and main cities.Arthasastra of fourth C.B.C cantinas some direct an specific references to writing like:
    i¥~pesa efU=ifj”knk i=lEizs”k.ksu ! (In the fifth the king should consult his council of ministers through letters )
    laKkfyfifHk’pkjl¥~pkja dq;Z% ! (With sign and writings he should send his spies).
    One Chinese encyclopaedia Fa-Wan-Shu-Lin mentins that the Brahmi script was envented by Fan (Brahma )and it was the best of the script.
    Besides Suttant,vinaypitakas,jatraksas,Chandogya uanisas mentioned aksara and varna and Taittirtya Upanishad mentions about Matra.
    Besides these many Brahminacal gods and goddess also reprsened with.

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  21. इस बेहतरीन जानकारीयुक्त आलेख के लिए आपका आभार।

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  22. सर आज तो आपके आलेख को पढ़कर मन पुलकित हो गया , लिपि सम्बन्धी ज्ञान ने इस लेख में रोचकता पैदा कर दी ...बहुत आभार

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  23. आपके पुरातत्‍व से संबंधित पोस्‍ट का इंतजार बहुत दिनों से मुझे और मित्रों को था, मित्रों नें टिप्‍पणियों में मेरे मन की बात कर दी है, इस पोस्‍ट के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद भईया.

    पोस्‍ट के अंत में कोष्‍टक में जो बातें है, ब्‍लॉगिग परिपाटी के लिए पते की है किन्‍तु हमें पता है यह पोस्‍ट बड़े भाई राहुल जी का है :):)

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  24. ... prabhaavashaalee lekhan ... prasanshaneey post !!!

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  25. शोधपरक और अनुपम आलेख के लिए धन्यवाद, सिंह साहब।
    ‘ओड़ा मासी धम‘ की अच्छी याद दिलाई आपने। कहीं पढ़ा था कि ‘ओम् नमः सिद्धम्‘ का विकृत रूप ‘ओड़ा मासी ढम‘ या ‘ओणा मासी धम‘ या ‘ओना मासी धम‘ पहले सभी हिंदीभाषी राज्यों में छोटे बच्चों से पाठ आरंभ कराने के पहले कहलवाया जाता था। यह कहलवाना शुभ और विघ्न विनाशक समझा जाता था।
    लेख और लिपि के संबंध में अच्छी चर्चा की है आपने। गुणाकर मुले की किताब ‘भारतीय लिपियों की कहानी‘ में इसका विस्तृत उल्लेख है। शिलालेखों के बारे में भी गुणाकर मुले की एक पुस्तक है लेकिन उसमें छत्तीसगढ़ से संबंधित किसी शिलालेख की चर्चा नहीं है। आपके इस आलेख से पहली बार जाना कि -
    छत्तीसगढ़ में सभ्यता ने लिखावट के पहले.पहल जो प्रमाण उकेरे उनमें उड़ीसा की सीमा पर स्थित विक्रमखोल का चट्टान लेख है, जो हड़प्पा और ब्राह्मी लिपि के संधिकाल का माना गया है। आगे बढ़ते ही साक्षर छत्तीसगढ़ की तस्वीर साफ होती है, सरगुजा के रामगढ़ में, जहां पत्थर पर उकेरा, दुनिया का सबसे पुराना प्रेम का पाठ सुरक्षित है- ‘सुतनुका देवदासी और देवदीन रूपदक्ष‘ का उत्कीर्ण लेख। किरारी से मिले लकड़ी पर खुदे दुनिया के सबसे पुराने कुछ अक्षर आज भी महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर में सुरक्षित हैं, जिसमें तत्कालीन राज व्यवस्था के अधिकारियों के पदनाम हैं और यहीं कुरुद का वह ताम्रपत्र भी है, जिसमें राजकीय अभिलेखागार के अस्तित्व और ताम्रपत्रों के चलन में आने की पृष्ठभूमि पता लगती है। महाभारत में उल्लिखित छत्तीसगढ़ के ऋषभतीर्थ-गुंजी में एक-एक हजार गौ के दान का हवाला है वहीं छत्तीसगढ़ी का सबसे पुराना नमूना, दन्तेवाड़ा के दुभाषिया शिलालेख में पढ़ने को मिलता है।

    यह सब जानकर बहुत अच्छा लगा...इस विद्वतापूर्ण आलेख के लिए आपको बधाई।

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  26. @ अतुल प्रधान
    जी
    धन्‍यवाद अतुल. दरअसल ब्‍लॉग पर ऐसे सामान्‍य पोस्‍ट से लोगों की रुचि जागृत हो इस दृष्टि से इसे ऐसा रूप दिया है. मेरी राय है कि आपकी टिप्‍पणी में जो महत्‍वपूर्ण जानकारी आई है, वह संक्षेप में टिप्‍पणी के रूप में हो तथा विस्‍तार के लिए लिंक देकर रुचि रखने वालों को मदद की जाए या एक स्‍वतंत्र पोस्‍ट बना कर भी अपनी बात रखी जा सकती है.
    @ महेन्‍द्र वर्मा जी,
    आभार. आपकी लंबी टिप्‍पणी पढ़ते हुए पहले तो नई जानकारी मिलने की आशा से उत्‍साहित हुआ, खैर. जी हां, ओम् नमः सिद्धम् का आशय ही है, जो कार्य आरंभ किया जा रहा हे वह सिद्ध हो. सविनय आपका ध्‍यान आकृष्‍ट करा रहा हूं, पोस्‍ट में अक्षरों की नकल में इसी दृष्टि से ओम् या सिद्धम् चिह्न से आरंभ हुए हिस्‍से का चयन किया गया है.

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  27. pasand aaya. aap bahut rochak shaili mein gahri bato ko kahte hain.

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  28. बहुत ही जानकारीपरक और ज्ञानवर्धक लेख है.छतीसगढ़ के बारे में बहुत कुछ और जान सका इस लेख के ज़रिये.

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  29. achchha likhte ho ....

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  30. अत्यन्त ज्ञानवर्धक पोस्ट!

    आपका शोध सराहनीय है!

    बचपन में हमें भी हमारी दादी कहा करती थी "ओणा मासी ढम, बाप पढ़े ना हम"।

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  31. बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट है भाई . आभार पढ़ाने के लिए . मैं ज्ञान -समृद्ध हुआ .

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  32. आदरणीय राहुल जी,सादर प्रणाम.
    सर अभी-अभी आपका अत्यंत ज्ञानवर्द्धक एवं सारगर्भित आलेख "अक्षर छत्तीसगढ़ ".("सभ्यता के क्रम में विचारशील मानव ने अपने भावों को भाषा में और फिर भाषा को लिपि में ढालकर, दूरी और काल की सीमाओं को लांघने का साधन विकसित किया है।") को पढ़कर छत्तीसगढ़ के बारे में जो एक भ्रान्ति थी कि यह एक अत्यंत पिछड़ा प्रदेश है ,आज दूर हो गई.कभी सोचा नहीं था कि इतना सृजनकारी लेख पढने को मिल जायेगा.आपके अनुभव,विषय की गहराई और लगनशीलता के आगे नतमस्तक हूँ.
    अचानक इतनी ढेर सारी जानकारी पाकर बहुत अच्छा लगा.
    सादर
    राजीव

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  33. अभी-अभी क्लास से लौटा था.. खाना खाकर आपकी पोस्ट पढ़ने बैठा..
    अच्छी खासी पढाई हो गयी यहाँ भी.. :)
    सबसे बड़ी बात कि पुरातत्व और भाषा-विज्ञान जैसे इतने भारी-भरकम विषय से जुड़े इस आलेख को पढ़ने में कहीं बोरियत महसूस नहीं हुई..
    हिन्दी ब्लोगिंग में आप जैसे कुछ लोग ही ऐसी चीजें लिख रहे हैं जो सार्थक हैं और १०-२० साल बाद भी उतनी ही प्रासंगिक रहेंगी..

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  34. @आप सभी पूर्वापर-
    इसे ब्‍लॉग का विषय बनाते हुए कई बार सोचा, हिचका, छिट-पुट आजमाया, फिर हिम्‍मत जुटा कर, गुरुओं का नाम ले कर, सहचरों को याद कर इसे लगाया, इन मामलों में और किसी का बहुत ख्‍याल रख भी नहीं पाता.
    औपचारिक 'उपस्थिति-टिप्‍पणियों' और संख्‍या गिनने के बीच मूल्‍यांकन टिप्‍पणियों का खास महत्‍व होता है मेरे लिए. इससे मुझे अपने आगे की पोस्‍ट का विषय चुनने और स्‍वरूप तय करने का मार्गदर्शन मिलता है. इस प्रकार की पोस्‍ट बनाने में थोड़ा समय जरूर लगता है, लेकिन 'हॉट' और शाश्‍वत किस्‍म के विमर्शों और उसी मूड के काव्‍य के दौर में कुछ ऐसा भी करते रहने की जरूरत महसूस करता हूं.
    आप लोगों से इसे सम्‍मान मिला तो लगा कि अपने गुरुओं और परंपरा के साथ जुड़कर अनायास श्रेय पा लेना कितना आसान है, जंचे तो आप भी आजमाइये.

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  35. आपके पुरातत्व ज्ञान का लाभ हम सभी को इसी तरह मिलता रहे|
    राम गढ़ सुरगुजा में मेरे घर से बहुत पास है, परन्तु बाकी जगहों पर जाने का अब तक अवसर नहीं मिला है|
    छोटे भाई का प्रणाम स्वीकार कीजियेगा|

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  36. पुनः पढने की लालसा हुई और बहुत मजा आया. 'ओड़ा-मासी-ढम' मैं नहीं कहूँगा. एक सुझाव है. पुरातत्व की ओर लोगों के रुझान को बढ़ावा देने के लिए कुछ पोस्ट बनाये जा सकते हैं. जैसे भाषा और लिपि का अंतर., किसी स्थल विशेष के प्राचीनता के पहचान के आधार. लिपि का विकास, मंदिर स्थापत्य वगैरह वगैरह. लोगों का बड़ा भला होगा.

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  37. ब्लॉग यानी अपनी ही खेती है. मगर हम अपना सृजनात्मक चेहरा दिखाते है, तो इसमें कोई बुराई नहीं. अपनी तस्वीर भी कभी दे दी तो भी अन्यथा नहीं ले सकता कोई. क्योकि इस वैश्विक-समय में ब्लॉग हर एक व्यक्ति की डायरी है. वह अपनी अभिव्यक्ति अनेक रूपों में कर सकता है. इस बार भी ज्ञानवर्धक सामग्री के लिए धन्यवाद...

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  38. धन्यवाद राहुलजी,
    सचमुच बहुत शोधपरक और बहुत रोचक जानकारी के लिये ।
    इसके पहलेवाला पोस्ट किसी वज़ह से नहीं पढ़ सका था,
    तो लगे हाथ उसे भी पढ़ूँगा ।
    सादर,

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  39. र्इमेल से प्राप्‍त-
    Dear Rahul sir, thanks a lot for providing such invaluable information. hope you continue yourself in creating these majestic revelations.
    with regards,
    Dr. dinesh Jha

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  40. र्इमेल से प्राप्‍त-
    2400 वर्ष पूर्व भारत में कागज के उपयोग की साक्षी देने वाले की चर्चा पढ़कर अति गर्व हुआ। इसी प्रकार स्याही बनाने की विधियों के विवरण भी अच्चे लगे। इस प्रकार की जानकारी भारतीय शिक्षाविदों को क्यों नहीं है? या जानकारी मिलने पर उसे संदेह की दृष्टि से देखने की पश्चिम से वीरासत में मिली घुट्टी पीकर अभी भी पूर्वाग्रह में इतने जकड़े हैं कि भविष्य में भी चीन को ही कागज का आविष्कार करने वाला देश मानते रहेंगे - सदैव, बिना एक पलक भी झपके।
    वेदमित्र

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  41. बहुत अच्छी जानकारी है। मेरा ग्यान वैसे भी इस मामले मे कम ही है। धन्यवाद।

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  42. क्या कहने साहब ।
    जबाब नहीं निसंदेह ।
    यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
    धन्यवाद । साधुवाद । साधुवाद ।
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  43. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  44. देर से आया लेकिन काफी जानकारियां लेकर जा रहा हूं।

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  45. ज्ञानवर्धक दिलचस्प आलेख. ब्लॉग-लेखन के ज़रिए छत्तीसगढ़ के इतिहास, पुरातत्व और सांस्कृतिक वैभव को देश और दुनिया के सामने लाने की आपकी यह कोशिश ज़रूर रंग लाएगी . शुभकामनाएं .

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  46. राहुल सर, पहले भी दो बार ब्लॉग पे आया लेकिन बस एक नज़र देख के निकल गया...अभी पढ़ने के बाद लग रहा है की पहले क्यों नहीं पढ़ा मैंने...
    बहुत अच्छी जानकारी मिली..मुझे तो ऐसे ऐसे पोस्ट बहुत पसंद हैं..

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  47. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

    * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !

    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

    इसमें भी एक अच्छी बात है.

    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.

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  48. लिपियों का इतिहास और सतत विकास की शोध एवं ज्ञानवर्धक, तथा समीचीन व्याख्या से भरपूर लेख के लिए साधुवाद

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  49. पहली बार पढने में नहीं पकड़ पाया था,
    ब्राह्मी लिपि के प्रचलन से बाहर जाने और
    इसके समाप्त हो जाने से समझ आता है कि
    लिपि के प्रयोक्ता , शिक्षक और छात्र समाप्त
    हो गए. जेम्स प्रिन्सेप ने फिर से पढने का लेवल
    प्राप्त कराया.उन्हें धन्यवाद.
    ब्राह्मी लिपि प्रचलन से बाहर कब हुई थी इसे
    वर्क आउट किया जा सकता है ?

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  50. "ओना मासी धंग, गुरूजी चितंग" मैथिलि में यह एक कहावत कि तरह प्रयोग में आता है.. आज इसका सही मतलब समझ में आया..
    आपने इस पोस्ट को किसी अभिज्ञान की तरह संजो कर रख रहा हूँ, समय मिलने पर प्रिंट आउट भी लेना है..

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  51. अच्छी प्रस्तुति
    आप को नव वर्ष की बहुत सारी शुभ कामना
    नया साल मुबारक हो,
    साथ ही सभी ब्लॉग लेखक और पाठक को भी नव वर्ष की शुभ कामना के साथ
    दीपांकर कुमार पाण्डेय (दीप)
    http://deep2087.blogspot.com

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  52. hummm.....to aap bhi 'atyalp' me se hain....
    der aayad durust aayad....

    जिस रोचक तरीके से आप इतने जटिल विषय को बखान जाते हैं, इसका लेश-मात्र भी आज के ५-सितारा स्कूलों में अपना लिया जाये तो शिक्षा बोझ न होकर व्यसन बन जाये।
    आभार।

    pranam

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  53. आप को नमन।
    बहुत कुछ सीखा, जाना।

    'सुतनुका का प्रेम संदेश' क्या है?

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  54. अपनी पसंद का विषय और थोड़ी लंबी पोस्ट देख कर इसे बुक मार्क कर लिया था कि फुर्सत से पढेंगे .पर अब लग रहा है कि इसे तो फुर्सत निकालकर पढ़ना चाहिए था .
    आपने अपने गुरुओं को नमन किया .हम आपको नमन करते हैं.आत्मा तृप्त हो गई ये आलेख पढकर.

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  55. उम्दा पोस्ट !
    नव वर्ष की शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  56. आदरणीय RAHUL SINGH जी
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें

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  57. आपके जीवन में बारबार खुशियों का भानु उदय हो ।
    नववर्ष 2011 बन्धुवर, ऐसा मंगलमय हो ।
    very very happy NEW YEAR 2011
    आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  58. बहुत शोधपूर्ण,श्रमसाध्य और संग्रहणीय आलेख है. बधाई और आभार। नववर्ष की शुभकामनाएं भी।

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  59. सुंदर प्रस्तुति.....नूतन वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं

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  60. आलेख पढ़ कर याद आया कि भाषाविज्ञान के हमारे शिक्षक गोविंदनाथ राजगुरु बताया करते थे कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश के एक स्कूल में कहीं सुना था-'ओना मासी धम'. उनकी स्मृति हो आई. जानकारी पूर्ण आलेख. आपको नववर्ष की शुभकामनाएँ.

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  61. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक और सारगर्भित आलेख...
    बहुत सारी नई जानकारी मिली....इन विषयों पर नेट ज्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं...आपके आलेख संग्रहणीय और बहुत ही लाभदायक.

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  62. बहुत आवश्यक लेख लिखा है आपने , हो सके तो अली भाई के सुझाव पर गौर फरमाइयेगा ! हम लोगों के लिए बहुत उपयोगी रहेगा ! बेहद महत्वपूर्ण काम के लिए आपको शुभकामनायें !

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  63. बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, बधाई

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  64. आलेख पढकर आनन्द आ गया। ऐसे लेख ही एक दिन हिन्दी ब्लॉगिंग में ऐतिहासिक कहलायेंगे।

    शुभकामनायें!

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  65. आज का दिन मेरा बड़ा शुभ है....

    पहले अनुराग जी की अद्वितीय पोस्ट पढने को मिली और फिर वहीं से यहाँ तक पहुँचने का मार्ग मिला...

    मन अभिभूत हो गया...

    सादर नमन आपको .... और क्या कहूँ,यह तो समझ ही नहीं पड़ रहा...

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  66. I drop a leave a response whenever I especially enjoy a post on a site or if I
    have something to valuable to contribute to the conversation.

    Usually it's triggered by the sincerness displayed in the article I looked at. And on this post "अक्षर छत्तीसगढ़". I was actually moved enough to post a commenta response :-) I actually do have a couple of questions for you if it's allright.
    Could it be only me or does it look like a few of the comments look like coming from brain
    dead folks? :-P And, if you are posting on other social sites, I would like to follow you.

    Could you list every one of all your social
    sites like your Facebook page, twitter feed, or linkedin profile?


    My web-site; Euro Teeny

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  67. " अक्ष्रर छत्तीसगढ" पढ कर मैं अभिभूत हो गई ,इस आलेख में आपकी साधना दिखाई देती है ।
    लिपि की बारीकियॉ को आपने बडी खूबसूरती से विश्लेषित किया है, संस्कृत और पाली के प्रति
    मेरा भी अनुराग है ,इसे पढ्कर मुझे बहुत मज़ा आया और इस बात का संतोष भी हुआ कि अपने
    छत्तीसगढ में आपके समान ऐसा कोई व्यक्तित्व है जो अपने दायित्व का निर्वाह भली-भांति कर
    रहा है । आपका यह प्रयास स्तुत्य है । शुभमस्तु

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  68. हैलो हूँ श्रीमती, डेबरा मॉर्गन हूँ वैध और विश्वसनीय ऋण ऋणदाता ऋण देने के लिए बाहर
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    में: morgandebra816l@gmail.com
    भगवान आपका भला करे।
    सादर,
    श्रीमती डेब्रा मॉर्गन
    ईमेल: morgandebra816@gmail.com


    नोट: MORGANDEBRA816@GMAIL.COM: सभी उत्तर के लिए भेज दिया जाना चाहिए

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