Pages

Friday, December 10, 2010

गढ़ धनोरा

30, 31 दिसम्बर और 1 जनवरी को बस्तर के गढ़ धनोरा गांव में रहा। डेढ़ हजार साल पुराने अवशेषों की खुदाई के साथ यह नये किस्‍म का नया साल है। रायपुर से बस पकड़ कर केसकाल। आगे पांच किलोमीटर के लिए बस स्‍टैंड के दुकान से हाथ घड़ी की जमानत पर सायकिल किराये पर ली और एडेंगा होते पहुंच गए। पुरातत्‍वीय उत्‍खनन में कितनी पुरानी ‘नई-नई’ चीजें निकलती हैं और कैसा रोमांच होता है, अनगढ़ ढंग से भी बताने पर ईर्ष्‍या के पात्र बन सकते हैं, इसलिए न कुछ नया, न पुराना, वह सब जो चिरंतन और शाश्‍वत लग रहा है।

यहां महुए के पेड़ पर लगे लाल गुच्छेदार tubular फूल वाला सहजीवी या परजीवी वानस्पतिक विकास देखा, यह इस क्षेत्र के महुए के पेड़ों पर कांकेर पहुंचते तक देखने को मिला। स्थानीय पटेल करिया पुजारी उर्फ उजियार सिंह गोंड ने इसे 'भगवान का लगाया कलम' natural grafting बताया। पुस्तकों या botanist से इसका सन्दर्भ या जानकारी नहीं ले पाया, किसी ने सुझाया lorenthus, मान लेने में हर्ज क्‍या ॽ मुझे तो पटेल की बात भाई, जिसने यह भी बताया कि महुए के पत्तों पर लगे कीड़े ही इसे लेकर आते हैं। गढ़ धनोरा से केसकाल वापसी के पैदल रास्ते में शमी के पेड़ पर भी ऐसा ही विकास देखा, जो मेरे अनुमान से orchid जाति का था, पुस्तकों में इस partial parasite का नाम mistletoe (banda) मिला।

यहां छिन्द और सल्फी के पेड़ भी बहुतायत से हैं। सल्फी के पत्ते fishtail palm जैसे होते हैं। अक्टूबर से अप्रैल तक इसके पुष्पक्रम के डन्ठल में चीरा लगाकर ताड़ की तरह पेय निकाला जाता है। सल्फी जैसा महत्‍व किसी पेड़ का नहीं यहां, ढेरों किस्‍से और इस पेय के सामने शैम्‍पेन फीका। केसकाल घाटी के ऊपर ही ये पेड़ दिखे। वरिष्‍ठ सहयोगी अधिकारी रायकवार जी ने बताया कि दन्तेवाड़ा तक उगते हैं, उसके आगे दक्षिण में नहीं और उगे तो रस नहीं, रस तो स्‍वाद नहीं।

मुनगा (सइजन) ऐसा स्‍वादिष्‍ट और गूदेदार तो सोचा भी नहीं जा सकता। भेलवां यानि जंगली काजू के पेड़। हम लोगों ने काजू चखना चाहा। स्‍थानीय विशेषज्ञों ने उसकी सभी सावधानी बरती, भूना, पूछा ‘उदलय तो नइं’ – एलर्जी तो नहीं है इससे, हमने कहा खा कर ही पता लगेगा, गनीमत रही। इसी से पक्‍का अमिट काला रंग बनता है। एक पेड़ ‘बोदेल’ देखा, पलाश की तरह पत्‍ते, लेकिन शाखाओं के बदले मोटी लताएं, लोगों ने बताया- मादा पलाश, छप्‍पर छाने के काम आता है।

एक कीड़ा, लम्बाई लगभग 15 सेंटीमीटर, पहले तीलियों का भ्रम हुआ। अपनी पूंछ के केन्द्र के चारों ओर धीर-धीरे घूम रहा था, अतः कुछ देर बाद ध्यान गया, स्थानीय स्कूल में सहयोगी अधिकारी नरेश पाठक जी के साथ देखा।
तलाश करने पर नाम stick (common Indian species- Carausius morosus) मिला, यों यह दुर्लभ माना जाता है।

अलग-अलग मुहल्लों-पारा में बंटे गांव की आबादी 150-200 और पूरा गांव एक कुनबा है। बाहरी कोई नहीं। बाहर से लड़कियां शादी होकर आती हैं या शादी होने पर जाती हैं और गांव के कुछ लोग नौकरी पर बाहर चले गये हैं। गांव के मुखिया करिया पुजारी और उनका लड़का सरपंच है। कोई छोटा-बड़ा या मालिक-नौकर नहीं है, एकदम निश्चित कार्य विभाजन भी नहीं है, सभी सब काम करते हैं, लेन-देन में अदला-बदली है लेकिन 'इस हाथ दे, उस हाथ ले' जैसा नहीं। रात को निमंत्रण नहीं, मात्र सूचना पाकर, चर्चा सुन कर, अगले दिन सुबह लोग उसके घर या खेत पर काम के लिए पहुंच जाते हैं। बारी-बारी सब का काम निपट जाता है। मुखिया को परवाह है, फसल-मवेशी, जंगल-जानवर, बहू-बेटी, रोग-बीमारी, पूजा-पाठ, हम सब की भी। बेटे की सरपंची रहे न रहे, मुखिया की सत्‍ता कौन डिगा सकता है।

शनिवार को रामायण (तुलसी मानस पाठ व भजन) होता है, साहू गुरुजी मदद करते हैं, आरती का चढ़ावा केसकाल पोस्‍ट आफिस में जमा कर दिया जाता है, और उपयोग धार्मिक आयोजन या रामायण पार्टी के सदस्यों के एकमत से सार्वजनिक काम के लिए होता है। अल्‍प बचत, सहकारिता और विभिन्‍न वाद, सिद्धांत यहां जीवन में सहज समोए हैं। सभ्‍य और आधुनिक होने की शान बचाए रखना मुश्किल हो रहा है, इस बियाबान में।

( ... लेकिन फोटो क्‍यों नहीं हैंॽ ''एलिमेन्‍ट्री डॉक्‍टर वॉटसन'', तब मोबाइल-कैमरा नहीं था जी। और यह जनवरी 1990 का, डायरी की आदत बनाने के असफल प्रयास का प्रमाण है। ... यह भी लग रहा है कि जो यादें फ्रेम में बंध जाती, फोटो न होने से चलचित्र की तरह, बार-बार, अलग-अलग ढंग से देख पाता हूं, थोड़ी धुंधली और घुली-मिली ही सही, रंग तो बिना सलेक्‍ट-क्लिक के जितने चाहे मन भर ही लेता है। याद आया कुछ ..., जी, सही फरमाया आपने ..., वी. शांताराम, नवरंग, पहला दृश्‍य।)

54 comments:

  1. आदरणीय राहुल सिंह जी
    नमस्कार
    अच्छा लगा जानकार .....विश्लेषण का तरीका बांधे रखता है ...अंतिम पंक्ति तक ....शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. Sir, good afternoon!
    Sadhe teen saal(3.5 yrs)Surguja me raha hun naukri ki shuruat me,
    varnan waha ki yaad dila gaya. thanx.

    ReplyDelete
  3. गढ़ धनौरा के आसपास की वनस्पति के बारे में और ख़ास कर सल्फी की कुछ नयी विशेषताओं की जानकारी मिली. हम भी जगदलपुर जाते हुए केसकाल से वहां गए थे. कुछ नक्सल जैसे लोगोंने घेर भी लिया था परन्तु लोग समझदार थे. वहां हमने एक पेड़ के नीचे सुन्दर सा शिव लिंग भी देखा जो वैसे ही पड़ा था. बाकी कुछ ईंट के निर्माण आदि. कोई बताने या समझानेवाला नहीं था. उस stick से मेरी जान पहचान है.

    ReplyDelete
  4. बहुत ही शानदार एक्सप्रेशन है "सभ्‍य और आधुनिक होने की शान बचाए रखना मुश्किल हो रहा है". रंग तो इतने भरे है आप ने इस लेख में की समेटना मुश्किल हो रहा है. आशा है ये एक सिरीज़ की शुरुआत है, पूरी डायरी (प्रयास) पढने को मिल जाएगी इसी तरह.

    ReplyDelete
  5. हमें भी तीलियों जैसा ही लग रहा है यह।

    ReplyDelete
  6. गंगा किनारे भी एक शमी वृक्ष है। एक ही है। उस पर भी देखी लता और एक ऑर्किड सा फूल।

    कहां बस्तर, कहां गांगेय जमीन। भगवान जगह जगह कलम लगाते हैं!

    ReplyDelete
  7. एक ही पोस्ट में बहुत कुछ सिमट आया है...कई वनस्पतियों और गाँव के लोगों के रहन-सहन की जानकारी मिली..पर कुछ सवाल भी मन में आए...आज भी क्या उस गाँव में सब-कुछ वैसा ही होगा ..सबलोग एक दूसरे का हाथ बटाते होंगे??...पता नहीं...शायद अब तक ज्यादा सभ्य हो गए हों..

    फोटो नहीं होने की शिकायत करने ही वाली थी कि अंत में आपने स्पष्ट कर दिया...अब कुछ भी हमलोग कल्पना पर नहीं छोड़ते...so sad

    ReplyDelete
  8. Big brother//
    a basket of thanks to visit my blog/
    i m also interested in travelling/
    in view of tourism /
    excavation reveals the truth //

    ReplyDelete
  9. पढना शुरू करते लग रहा था कि आप ने सन नही दिया है,आप से ऐसी चूक कैसे हो गयी पर आप ने अंत में राज खोल ही दिया.ऐसा लगा कि आप ने हमे छका दिया !
    पाठक के नाते.
    मुनगा तो गूदेदार होता ही है यहाँ का, और जगह का खाते हुए लगता है की गर्मी से बचने औषधि खा रहा हूँ. जरुरी है टाइप का.
    आप की यह पंक्ति जबरदस्त बयां करती है 'दक्षिण में नही उगती है,उगे तो रस नही ,रस तो स्वाद नही.'
    गढ़ धनौरा का चित्र मन में उभर पाता है .

    ReplyDelete
  10. MAIN BHI RAKESH JI SE POORI TARAH SAHMAT HUN

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छी जानकारी आपने प्रस्तुत की है , आभार !!!

    ReplyDelete
  12. पोस्ट पढ़ी.मेरे लिए तो वो स्थान भी अनदेखा है और कुछ ऐसे पेड़ों के नाम आपने लिए जिनसे भी मैं वाकिफ़ नहीं.मेरे लिए तो ये पोस्ट शुद्ध रूप से जानकारीपरक रही.वैसे जानकारी में इजाफा के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  13. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद जिनसे अनजान था उसकी जानकारियों मिलीं और जो जानता था वो दोहरा गया... यही तो फ़ायदा है आपकी पोस्ट का... बहुत ही रुचिकर अंदाज़ में लिखी गई जानकारीपूर्ण रचना!!

    ReplyDelete
  14. हमेशा की तरह यह लेख भी मुझे समृद्ध कर गया. केवल कविता से बात नहीं बनती. अपनी परंपरा-संस्कृत की और भी निहारना ज़रूरी है. आपके यहाँ इस बात का सुख मिल जाता है...

    ReplyDelete
  15. सूचनाऍं और जानकारियॉं तो महत्‍वपूर्ण हैं ही किन्‍तु वर्णन उससे अधिक रोचक है - एक ही सॉंस में पढ लेने की इच्‍छा होती है।

    तीलियोंनुमा (स्टिक) जिस प्राणी का उल्‍लेख आपने किया है, मुझे लगता है वह 'साही' है।

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर ढंग से आप ने पुरा विवरण दिया, गांव वालो के बारे पढ कर बहुत अच्छा लगा, वनस्पतियों के बारे अच्छी जानकारी दी, ओर अपनी घडी वापिस ली या भुल गये?
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  17. तो गोया अब ईर्ष्या के पात्र बनने से बच गये आप! ’दिल के बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।’ पूरी ईर्ष्या हो रही है हमें एलिमेंटरी डाक्टर वाटसन से, अब भी।
    ऐसे परिवेश का रोमांच पढ़कर ही महसूस हो रहा है, और आप ये सब कर गुजरे हैं। राहुल साहब, सभ्य और आधुनिक होने की शान कितनी थोथी है, हम सब जानते हैं।
    खूबसूरत और विविध रंगों में रही होगी आपकी डायरी, लग रहा है।

    ReplyDelete
  18. वनस्पति विज्ञान से लेकर गांव प्रबंध तक की जानकारी, आनंद आ गया।

    ReplyDelete
  19. फोटो नहीं है तो क्या हुआ, आपकी वर्णन शैली ऐसी होती है कि प्रत्येक पंक्ति में वर्णित दृश्य मन में अंकित होने लगते हैं। कुल मिलाकर वीडियो देखने की अनुभूति होती है।

    अत्यंत रोचक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  20. तीसरे विराम पर ही लग गया था कि घटना प्राचीन होगी... अच्छा लगा.. मुझे अभी भी बीस से तीस वर्ष पुराने समय में जाना अच्छा लगता है..

    ReplyDelete
  21. आपके लेंस के साथ फोकस सेट करना अच्छा लगा
    SUNIL CHIPDE

    ReplyDelete
  22. मेरे लिए आपका लेख बहुत ही ज्ञान वर्धक रहा !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  23. आपके द्वारा प्रस्तुत इस यात्रा वृतांत की कई खासियत है। पहला कि यह इस जगह की हिस्ट्री और ज्याग्राफी के साथ साथ बॉटनी और जूलॉजी का बयान भी दे रहा है।

    आभार राहुल जी।

    ReplyDelete
  24. विवरण नितांत कथा सा नही बल्कि जानकारीयों के साथ प्रस्तुत
    राहुल जी आभार

    ReplyDelete
  25. रोचक लेखन के लिए आभार|

    भले ही हमारे वैज्ञानिक लोरेंथस को वृक्षों के लिए हानिकारक बताएं पर हमारे पारंपरिक चिकित्सक इसके औषधीय उपयोगों को जानते हैं| इस पर लिखा एक मुख्य आलेख आप इस कड़ी पर देख सकते हैं

    http://www.pankajoudhia.com/newwork5.html

    यदि विस्तार से जानना चाहें तो १२०० से अधिक लेख इस कड़ी पर मिल जायेंगे|

    http://www.google.com/search?q=site:pankajoudhia.com+dendrophthoe+oudhia&num=100&hl=en&safe=off&pwst=1&tbo=1&prmd=iv&filter=0



    इसकी तस्वीर यहाँ मिलेगी

    http://www.discoverlife.org/mp/20p?see=I_PAO3685&res=640

    http://www.discoverlife.org/mp/20p?see=I_PAO3686&res=640

    बोदल की तस्वीर ये रही

    http://www.discoverlife.org/mp/20p?see=I_PAO2458&res=640

    यदि आप राज्य की वनस्पतियों और कीटों पर मेरे शोध की जानकारी चाहते हैं तो इस कड़ी पर जाएँ| एक करोड़ से अधिक पन्नो की जानकारी यहां पर है|

    http://www.pankajoudhia.com/newwork.html

    इस लिंक को खुलने में कुछ समय लग सकता है|

    दस लाख से अधिक फोटो लिंक यहाँ पर हैं

    http://pankajoudhia.com/album/main.php

    ReplyDelete
  26. Just to add. Correct name of Stick Insect is

    Carausius morosus

    It is nocturnal in general and you are fortunate to see it during day time. May be he is on day shift. ;)

    ReplyDelete
  27. @ पंकज अवधिया जी,
    आपके सुझाव के अनुसार संशोधन कर लिया है. इस पोस्‍ट के लिए गूगल पर जाने का ख्‍याल आया, लेकिन इसके बिना पूरा करने का मन हावी रहा. आपने आ कर संशोधन भी कराया, पर्याप्‍त उपयोगी संदर्भ लिंक सहित उपलब्‍ध करा दिया, आपका आभार.

    ReplyDelete
  28. राहुलजी, तुँहर डायरी लिखे के अंदाज ह रिपोर्ताज असन लागथे...जइसे हिसाब लगा के भेलवां खाहा त नईं उदलय..
    रुद्र अवस्थी, बिलासपुर

    ReplyDelete
  29. Padhate huye saare drishya chalchitra kii bhaanti aate chale gaye. reportaaj shailii mein likhaa aapkaa yah post bhii hameshaa kii tarah shodhpuurn hai. Gyaanwardhak aur rochak. Badhaaii aur dhanyawaad.

    ReplyDelete
  30. आपके डायरी के अंशों को पढ़ते हुए हम भी वहां की यात्रा कर आये, धन्‍यवाद भईया.

    ReplyDelete
  31. फोटोस की कमी इतनी नहीं खली क्योंकि आपने बहुत प्रवाहमयी विश्लेषण किया .....रोचक

    ReplyDelete
  32. अरे यह तो टाईम टूरिज्म है भाई -किसी टाईम मशीन में बैठकर गए हैं न भूतकाल में !

    ReplyDelete
  33. ... behatreen saargarbhit abhivyakti ... shaandaar post !!!
    ( 30, 31 दिसम्बर और 1 जनवरी ... kaun se san ki baat hai ... kyaa 1990 ? )

    ReplyDelete
  34. आभार...
    आप तक पहुंचाने के लिए....

    ReplyDelete
  35. @ अरविन्द जी ,
    तो आपके लिए हम भूतकाल वाले हुए :)

    @ राहुल सिंह जी ,
    उम्मीद कर रहा हूं कि डायरी के अगले पन्ने भी प्रकशित किये जायेंगे ! इस पोस्ट में सबने सभी तरह के कमेन्ट कर दिए हैं तो अपने लिए एक ही स्पेस दिख रहा है ...भला उस हाथ घड़ी का क्या हुआ ? :)

    ReplyDelete
  36. डायरी के पन्ने... पसदं आये.

    ReplyDelete
  37. सभ्यता के पुराने दौर में जीना भी रोचक लगता है।

    ReplyDelete
  38. सुंदर शब्द-चित्र. रोचक प्रस्तुति. मुझे लगता है कि आपके अनुभवों का यह खजाना अब किताब के रूप में भी आना चाहिए, ताकि इसके अनमोल हीरे-मोतियों की चका-चौंध ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सके.

    ReplyDelete
  39. तिलियों वाला कीड़ा तो हमारे बाड़े में दिख जाता था। लेकिन अब बहुत साल हो गए इसे देखे हुए,
    ताड़ी दा जवाब नहीं।:) अभी मैने इस ताड़ी की जड़ के कंद खाए तमिलनाडु में,शकरकंद जैसा ही स्वाद था। ताड़ी के पत्ते मकानों की छत बनाने के काम आते हैं। समुद्र के किनारे सारे "कोली" लोगों के घर इसी से बने होते हैं।
    घड़ी की जमानत पर सायकिल किराया लेना पुरानी यादों का ताजा करना है। पहले लोग कालेज के पहचान पत्र का महत्व नहीं समझते थे।
    आपके उम्दा संस्मरणों का इंतजार है।

    ReplyDelete
  40. आदरणीय राहुल सिंह जी
    नमस्कार
    ...........आपने बहुत प्रवाहमयी विश्लेषण किया
    बहुत देर से पहुँच पाया

    ReplyDelete
  41. पहली बार आपके ब्लॉग पर आई अच्छा लगा. ढेरों नई बातें पढने और समझने को मिली

    ReplyDelete
  42. इतना प्रवाहमयी विश्लेषण लगा नदियाँ बह रही है

    ReplyDelete
  43. Atyant rochak lekh! Awwal to wanaspation kee jaankaari aur phir us 'kunbe' wale gaanv kaa warnan!Bada maza aaya padhke!

    ReplyDelete
  44. vaakai vanprasthi jeevan ji rahe hain

    nai jaankaari apko bhi aur hame bhi

    ReplyDelete
  45. मेरे लिए तो वो स्थान भी अनदेखा है खासकर केसकाल और जगदलपुर. आपके द्वारा दीगई बनस्पति साहित्य में ऐसे पेड़ों के नाम पढके बहोत अच्छा लगा .

    बहुत सुंदर ढंग से आप ने पुरा विवरण दिया,जेसे आप सायकिल किराए पर लेके गये वोह फिर खुदकी घडी रखके .

    बहोत बहोत धन्यवाद .

    ReplyDelete
  46. काफी दिनों तक ब्लॉग जगत से दूर रहा.. अभी दो दिन पहले ही फिर लिखना शुरू किया है.. आपके ब्लॉग पर भी बहुत दिन बाद आया.. संस्मरण बड़ा रोमांचक लगा.. आपकी काफी लिखा है लगता है इन दिनों में.. देखता हूँ पीछे का स्टॉक भी... :)
    दिल्ली से सियोल: इन फ्लैशबैक

    ReplyDelete
  47. रोचक लेखन के लिए आभार
    मेरे लिए आपके द्वारा दी गई हर जानकारी हमेशा नई ही होती है
    आपको बधाई

    ReplyDelete
  48. आपके ब्‍लॉग पर पहली बार आया हूँ। इस लेख के माध्‍यम से बहुत ही ऐसी जानकारियां मिलीं, जो और कहीं नहीं ही मिलेंगी। शुक्रिया।
    आशा है आगे भी इसी प्रकार आपके रोचक लेख पढने को मिलते रहेंगे।

    ---------
    अपना सुनहरा भविष्‍यफल अवश्‍य पढ़ें।
    खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्‍या जानते हैं?

    ReplyDelete
  49. बहुत मन को भाई पोस्ट!

    ReplyDelete
  50. saral sahaj jivan apke sath ham bhi ghoom aye- prathmesh

    ReplyDelete
    Replies
    1. Best written by u sir
      Pls visit my blog once ayush211@blogspot.com

      Delete