यह पिण्ड- धरती, कभी आग का धधकता गोला थी, धीरे-धीरे ठंडी हुई। पृथ्वी पर जीवन, मानव और आधुनिक मानव के अस्तित्व में आने तक कई हिम युग बीते, दो-ढाई अरब साल पहले, इसके बाद बार-बार, फिर 25 लाख साल पहले आरंभ हुआ यह दौर, जिसमें हिम युग आगमन की आहट सुनी जाती रही है। ... गंगावतरण की कथा में उसके ''वेग को रोकने के लिए शिव ने अपनी जटाओं में धारण कर, नियंत्रित किया, तब गंगा पृथ्वी पर उतरीं'' केदारनाथ आपदा-2013, कथा-स्मृति या घटना-पुनरावृत्ति तो नहीं ... एक बार फिर बांध के मुद्दे पर बहस है, अब मुख्यमंत्री बहुगुणा और पर्यावरणरक्षक बहुगुणा आमने-सामने हैं। निसंदेह पर्यावरण में पेड़, पहाड़, पानी पर आबादी और विकास का दबाव तेजी से बढ़ा है।
आपदा में मरने वालों में 15 मौत की पुष्टि से गिनती शुरू हुई। पखवाड़ा बीतते-बीतते मृतकों का आंकड़ा 1000 पार करने की आशंका व्यक्त की गई। खबरों के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष ने मृतकों की संख्या 10000, केन्द्रीय गृहमंत्री ने 900, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 580 और गंगा सेवा मिशन के संचालक स्वामी जी ने 20000 बताई। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है- कभी नहीं जान पाएंगे कि इस आपदा में कितने लोग मारे गए हैं। मृतकों का अनुमान कर बताई जाने वाली संख्या और उनकी पहचान-पुष्टि करते हुए संख्या की अधिकृत घोषणा में यह अंतर हमेशा की तरह और स्वाभाविक है।
देवदूत बने फौजी और मानवता की मिसाल कायम करते स्थानीय लोगों के बीच लाशों ही नहीं अधमरों के सामान, आभूषण और नगद की लूट मचने के खबर के साथ जिज्ञासा हुई कि मृतकों के शरीर पर, उनके साथ के आभूषण, सामग्री आदि के लिए सरकारी व्यवस्था किस तरह होगी? सामान राजसात होगा? यह जानकारी सार्वजनिक होगी? ... खबरों से पता लगा कि अधिकृत आंकड़ों के लिए मृतकों के अंतिम संस्कार के पहले उनके उंगलियों के निशान लिये जा रहे हैं। व्यवस्था बनाई गई है कि उत्तराखंड के लापता निवासी 30 दिनों के अंदर वापस नहीं आ जाते तो उन्हें मृत मान लिया जाएगा। इस आपदा में मारे गए लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र घटना स्थल से जारी किए जाएंगे।
मुस्लिम संगठन 'जमीउतुल उलमा' ने सभी शवों का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार करने पर आपत्ति जताई है और घाटी में जा कर शवों की पहचान करने के लिए इजाजत दी जाने की बात कही है ताकि मुस्लिम शवों को दफन किया जा सके। ... खबरें थीं कि आपदा बादल फटने से नहीं भारी बारिश के कारण हुई, से ले कर मंदिर में पूजा आरंभ किए जाने के मुद्दे पर हो रही बहसों के बीच न जाने कितनी लंबी-उलझी प्रक्रिया और जरूरी तथ्य नजरअंदाज हैं। ... इस घटना में अपने किसी करीबी-परिचित के प्रभावित होने की खबर नहीं मिली, शायद इसीलिए ऐसी बातों पर ध्यान गया।
यह अच्छा भी है और बुरा भी कि हमारी याददाश्त बहुत छोटी है, बहुगुणा साहब शायद उन लोगों की संख्या भी कभी नहीं जान पाएंगे जो हादसे के बाद अब तक उस भयंकर कष्ट को झेल रहे हैं जो उस रात उनके, उनके परिजनों के साथ गुजरी।
ReplyDeleteहादसे अक्सर आंकड़ों में उलझ जाते हैं और संख्या से बड़े-छोटे तय होते हैं.
Deleteइस त्रासदी को लाने में और इससे निबटने में भी सबने अपनी भावनानुसार और सामर्थ्यानुसार योगदान दिया।
ReplyDeleteजो भी हुआ बहुत दुखद हुआ :(
ReplyDeleteजल प्रलय की जानकारी तो बहुत सारी पुस्तकों यथा "कामायनी" में मिलती है ही.वह ऐसी ही किसी घटना का वर्णन लगता है.शुरू की पंक्तियों से ही स्पष्ट हो जाता है -
ReplyDelete"हिम गिरी के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँव,
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह.
ऊपर जल था नीचे हिम था एक तरल था एक सघन ,एक तत्व की प्रधानता
कहो उसे जड़ या चेतन
iisi harah ham prkiriti ke satha aur khilwad karte jayenge to isase bhi bhaynkar parinam aane wle hai
ReplyDeleteiisi harah ham prkiriti ke satha aur khilwad karte jayenge to isase bhi bhaynkar parinam aane wle hai
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
दुखद घटना थी.
ReplyDeleteलापता लोग अपने घर जल्द लौटें येही प्रार्थना है.
२० हज़ार से अधिक भी इस संख्या के होने की बात वहां से लौटे लोग कह रहे हैं.
अब भी दलदल में न जाने कितनी लाशें मौजूद हैं.
आध्यात्म, विज्ञान, संस्कृति, सामाजिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, परिदृश्य संग राजनैतिक और स्वार्थ के रंगों का खुबसूरत अंकन *** वास्तव में आपने कम शब्दों में त्रासदी को अपने शब्दों की तुलिका में स्वरुप दिया है। मेरे मति अनुसार एक बिंदु कम से कम पचास हजार लोग मरे जिन्हें प्रशासन या मेरे जैसा स्वार्थी आदमी सौ का आंकड़ा दे दे, क्योकि मेरे परिवार से किसी रिश्तेदार की मृत्यु कहाँ हुई है और मेरे पास कोई सबूत यात्रा का कहाँ है? कौन जानता था की भगीरथ की गंगा का अपनी जटाओं में धारण करने वाला चन्द्रशेखर आज योग निद्रा में लीन है? तो आज की यात्रा स्थगित कर लेते आंकड़े अपनी जगह और हकीक़त अपनी जगह। इस पर किसी से पूछना है तो पूछो उससे जिसने खोया है अपना सहारा **********
ReplyDeleteप्रकृति के विरूद्ध जा कर प्रगति की सोच का ही यह परिणाम है। अभी भी समय है, हम चेत जायें। नहीं चेतेंगे तो इससे भी अधिक विनाश से हमें कोई नहीं बचा सकता। इस विनाश-लीला में मृत लोगों को अश्रुपूरित हार्दिक श्रद्धांजलि और घायलों के शीघ्र पुनर्वास और स्वास्थ्य-लाभ की कामना है।
ReplyDeleteमैं तो अभी तक निःशब्द हूँ
ReplyDelete" सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः " का चिन्तन करने वाले हम हिन्दुस्तानी इस वसुधा को ही परिवार समझते हैं फिर यह घटना तो हमारे घर की है , जो बिछुड गए वे हमारे परिचित हों या न हों , लहुलुहान तो हम भी हुए हैं और अभी भी सामान्य नहीं हो पायें हैं ।
ReplyDeleteइस घटना में अपने किसी करीबी-परिचित के प्रभावित होने की खबर नहीं मिली, शायद इसीलिए ऐसी बातों पर ध्यान गया।...................... is aalekh ki sab se adhik sachchi pankti.............
ReplyDeleteविपत्ति के समय भी हम एक न हो पाते हैं ....
ReplyDeleteसबने अपना हित देखा है..मृतात्माओं को श्रद्धांजलि..
ReplyDeleteमेरे दादा जी ने कहा था बेटा भगवान का दरबार, खेल का मैदान और पाठशाला में कोई धर्म, रंग, जाति, वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय, समुदाय, गरीब, अमीर, आदि का भेदभाव नहीं होता तब किसी भी समुदाय द्वारा दफ़न या कफ़न, या जलाने पर कोई विवाद पैदा करना उसके मनुष्य होने के साथ परमपिता परमात्मा के नैसर्गिक प्रेम का भी अपमान होता है इनके छिछोरे हरकत पर कुछ भी कहना न्याय संगत नहीं इश्वर इन्हें सद्बुद्धि दें
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteसामयिक चिंतन
ReplyDeleteकुछ कहने के लिए शेष बचा ही नहीं। इस आपदा में मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteSir!
ReplyDeleteSrishti ki uttptti ke vishay me Pt.Bhagavaddutt ji likhit itihas ka addhyyn krna chahiye...ds arb sal ki ek srishti-sndhya-pralay-sndhyansh ka vrtul hota hai,a hank kuchh bhi nhin hota...vrtman manvi srishti ek arb chhiyanbe krod units lakh unchas hjar ek say pndrhvan vrsh chl rha hai..prti chhai hjar sal me Jul plavn jaisi sthiti bnti hai jaise panch hjar sal pahle dwarika aadi tapu soon gye......teeth kshetra ka tatpry apni antim avstha me dhyanopasna hetu prvtiy-sngm ksheton me Jake ishwropasna me Lin ho Jana hota thaa,..is desh me murti pooja pshchim ki den hai...hzrt mohmmd ke purkhe hzrt Ibrahim aadi log murtiyan nate v bechte thhe ,mhabhart kal v mhavir- Buddha kal tk murtipuja aaryavrt me prchlit hi thhi..mhavir vbuddh ke bad murtipuja chli....dukandaron ne ndiyon-sngmo-prvtiy prdeshon me vedaaddhyyn band krva logon ko prlok dikhana suru kr diya, andher to ye hai ki phir se kedarnath me canary prmpra prarmbh krne v nyi dukane sjane ki taiyari chl rhi hai.. voton ki rajniti hai..gais,laptop, fon, TV,chaavl,aarkshn,dekr shaashan pr ja baitho aur hr kisi ko apni mnmani krne do,yhi prajaatantra hai...char shrabi milkr kisi bhi jgh shrab pine pilane ka theka le skate hain..veshya- oh.... zuban
fisl,gyi..sex vrkrs..ko Kmae ka hq hai..aap
klb bnakr kaisino chlaiye znab,pahle to
kheton ko chiyaasth saal se pani n do job kisan khan - kmane Jane lge to uski min khridkr uski kyi pidhi ke itihas ko smapt kr do ,for khol dijiye faktry-pover plant ,purane bashindon ! javo dilli-mumbai!vhan progresiv manuson ke tlve chanto,apna ganv ,apni min bhol javo....vah re netavon...kisanon ko lal-pile- Nile lard thma diye aur punjiptiyon ke hath on kisan ki mine bikva di... pani bijli sdken sb bnwa- la do....sngm me hotel....tirthon me hnimoon pwaints....vidyalyon ke samne surkshit yaun smbndhon ke triqon ke poster.... koi mr jaye,snskriti vinsht ho jaye , ....akhir kya rkha hai in sb baton me....jyada kuchh bologe -likhoge to uthwa diye javoge, sbko sb krne ki chhoot ka nam prajaatantra hai..change kedarnath ho change hridwar......jail ho netaatantra ki ,jail ho poonjitantra ki...
काफी समय बीते ...
ReplyDeleteवापस हो रहा हूँ...
मेरा ब्लॉग खो गया था...
ढूंढा और पाया ..
गंगावतरण की कथा में उसके ''वेग को रोकने के लिए शिव ने अपनी जटाओं में धारण कर, नियंत्रित किया, तब गंगा पृथ्वी पर उतरीं'' केदारनाथ आपदा-2013, कथा-स्मृति या घटना-पुनरावृत्ति तो नहीं
ReplyDeleteविचारणीय प्रश्न!
वहां का सच तो अभी तक किसी के सामने आ ही नही पाया । पहले तो मीडिय को मैनेज किया गया । बाद में पाबंदी ही लगा दी गयी । यात्रा और पूजा शुरू करा क कह दिया गया कि सब सामान्य है । हकीकत ये है कि हजारो शव मलबे में दबे पडे हैं और सरकार खुदाई से भी बचना चाहती है । हादसे के दौरान जो शव गंगा में बहकर आये वो गढमुक्तेश्वर और बिजनौर के गंगा से निकलने वाले छोटे छोटे रजवाहो तक में मिले पर उन्हे मानने से इंकार कर दिया गया । लोगो के मरने की फिक्र नही थी बस फिक्र ये थी कि किसी भी तरह इस आपदा को इतना बडा ना दिखाया जाये कि दुनिया उनकी नाकामी पर हंसे । इसके लिये चाहे तो बडे बडे विज्ञापन भी देने पडें ।
ReplyDeleteउत्तराख्ंड की सरकार का पूरा ध्यान इस बात पर था कि कोई और श्रेय ना ले ले इस काम में किसी भी बात का