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Saturday, May 27, 2023

मड़वा महल सतीलेख

मड़वा महल, कवर्धा फणिनाग वंश के शासकों के काल में निर्मित स्मारक हैं। भोरमदेव मंदिर, मड़वा महल तथा छेरकी महल, फणिनाग वंश के शासकों के काल के सर्वाधिक प्रसिद्ध स्मारक हैं। भोरमदेव के आसपास से अनेक प्रतिमायें, स्थापत्य खंड तथा सतीलेख भी मिले हैं। मड़वा महल का निर्माण नाग नरेश रामचन्द्र के शासनकाल में विक्रम संवत् 1406 (ईसवी 1349) में करवाया गया है। मड़वा महल से प्राप्त एक अभिलेख में इस वंश के राजाओं के वंशावली के साथ इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख भी प्राप्त होता है। मड़वा महल के स्थापत्य अलंकरण में वाममार्गी शैवाचार्यों के तांत्रिक साधना और उपासना परंपरा की झलक दिखाई देती है। इस मंदिर के बाह्य भित्तियों में विविध मैथुन दृश्यों का अंकन हैं। गर्भगृह में शिवलिंग प्रस्थापित है। मड़वा महल के जीर्ण-शीर्ण मंडप को अनुरक्षण कार्य से यथावत स्वरूप प्रदान किया गया है। इस मंदिर के सुरक्षा के लिए दीवार निर्माण करने के लिए फरवरी 2003 में नींव खोदते समय पश्चिम दिशा में एक खंडित शिलालेख प्राप्त हुआ है। 


यह सतीलेख है तथा लगभग 3 फीट लंबा एवं 1 फीट चौड़ा है। भूरे बलुआ रंग के इस प्रस्तर लेख में कुल 7 पंक्तियां हैं। लेख का बांया बाजू टूटा हुआ है, जिससे पंक्तियां अपूर्ण हैं। साथ ही साथ इसका ऊपरी भाग भी खंडित है। इस सती लेख की जानकारी श्री जी.एल. रायकवार, पुरातत्ववेत्ता, रायपुर को प्रथमतः ज्ञात हुई थी तथा उन्होंने इसका प्रारंभिक वाचन किया है। इस लेख में संवत 1407 का अंकन है, तदनुसार यह ईसवी सन् 1349-50 है। अभिलेख में मास तथा पक्ष का उल्लेख नहीं हैं, परन्तु 11वीं तिथि और दिवस सोम (वार) उल्लेखित है। 

इस सती लेख में फणिवंश के राजा सरदा, मही (धर अथवा देव) एवं महाराज सतीम का नामोल्लेख मिलता है। लेख की अंतिम दो पंक्तियों में पितृकुल तथा पति के कुल के उद्धार के लिए राउत घाघम की पुत्री के सहगमन (सती होने) का उल्लेख है। फणिवंश के अज्ञात राजाओं के नाम तथा राउत जाति की नारी की सती होने की जानकारी के कारण यह सतीलेख विशेष महत्वपूर्ण है। तत्कालीन फणिनाग राजाओं की वंशावली तथा सामाजिक जातिगत प्रथा पर यह सतीलेख नवीन प्रकाश केन्द्रित करता है। 

यह लेख देवनागरी लिपि में है तथा भाषा अशुद्ध संस्कृत है। इस लेख का छायाचित्र मुझे श्री जी.एल. रायकवार, पुरातत्ववेत्ता, रायपुर के द्वारा उपलब्ध कराये गए हैं, जिसके आधार पर मेरे द्वारा लेख का वाचन किया गया है। 

मूल पाठ 

1. संवत 1407 वषे (वर्षे) घोरे ... ... ... 
2. 11 सोमे सौ त (-) डग्रे ... ... 
3. फणिवंस (श) राजो सरदा ... ... 
4. ते गार्य (-) राजेन महि (धर) ... 
5. पुत्रः श्री महराज सतीम ... 
6. ग ग एनं राउत घाघम पुत्र (त्री) 
7. दुई कुल उधरे (उद्धारे) सहगमन 

(इस शिलालेख का पाठ ‘उत्कीर्ण लेख‘, परिवर्धित संस्करण-2005 तथा इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से प्रकाशित ‘कला-वैभव‘, अंक-12, 2002-03 में प्रकाशित है।)

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