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Wednesday, January 4, 2023

किस्सा भोरमदेव

आस्था, विश्वास, मान्यता और उससे उपजी जिज्ञासा-पूर्ति कथाएं, इतिहास-पुरातत्व की पूरक हैं। पुरातात्विक-प्राप्तियों के साथ उनकी पृष्ठभूमि, परिवेश-संदर्भ जितना आवश्यक होता है, उतना ही आवश्यक किसी पुरातात्विक-ऐतिहासिक स्थल-स्मारक के साथ जुड़ी कथाओं को दर्ज किया जाना। इतिहास के ‘वैज्ञानिक‘ अध्ययन के साथ कथाएं, रिक्त स्थान की पूर्ति करती हैं और शोध के लिए अलग दृष्टि, नई संभावना का अवसर देती हैं।

अजय चंद्रवंशी ने अपनी पुस्तक ‘भोरमदेव क्षेत्र‘ पेज-18 पर उल्लेख किया है कि- अपने अध्ययन के दौरान हमें भोरमदेव की एक वृद्ध निरक्षर महिला, जो छेरकी महल में बैठती है, ने लगभग यही कहानी (मिथिला-शेषनाग का पुत्र अहिराज, फणिनागवंश का संस्थापक प्रथम शासक) सुनाई और बताया कि मिथिला के दोनों भाइयों को गर्भ के प्रति जो भरम (भ्रम) था उसी के कारण मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा। अजय जी ने वह किस्सा रिकॉर्ड भी किया है।

यहां भोरमदेव का वही किस्सा है, जिसे संस्कृति एवं पुरातत्व के विभागीय सहयोगी श्री रायकवार के साथ श्री जे.आर. भगत ने रिकॉर्ड किया और मेरे द्वारा श्री प्रभात सिंह की मदद से इसका लेख तैयार किया गया, यथासंभव, यथावत-

एखर ले बताहूं एही मेर ले - देवांसू राजा छेरिया राखे राहय ना त महल नई बनावय। बिना महल के राखय छेरिया ला देव ह, त छेरकिन कहिस, अतका तोर छेरि-बेड़ी ला चराएं देव, फेर एको ठन महल नई बनाये। अभी हमर देवता-देवता के पहर हावय कोई समय मनखे के पहर आहि, त देखे-घुमे ल आहि अइसे कहि के। त कस छेरकिन, महूं त एके झन हावंव, कइसे महल बनावंव कथे। चल त एकक कनि तोर छेरिया चराहूं, एकक कनि महल बनान लगहूं, बिन महल के राखथस। अभी हमर देव-देव के पहर हे, कोई समय मा मनखे के पहर आही, तेन देखे-घुमे ल आहि अइसे कइके। त छेरी चरात-चरात छेरकिन अउ देहंसू राजा बनाय हे एला। बन लिस त भीतरी म दे छेरिया ओल्हिआय हे। त आघू छेरि के लेड़ी रहय इंहा, भीतरी म। ए मडवा महल, भोरमदेव कस भूईयां म भूईयां गड्ढा रहिसे। त फर्रस जठ गे, माटी पर गे, छेरि लेड़ी मूंदा गे। अब पर्री परया अचानक भकरीन-भकरीन आथे, बकरा ओइले सहिं, तेखर सेती छेरकी महल आय एहर। 

अउ, भोरम राजा हर न भरमे-भरम में बने हे। देव मन ह, दू भाई एक बहिनी राहय। त देव के बहिनी गरभती म रई गे। त कइसे गरभती में भगवान। गांव-गोठन अदमी के तदमी हमर देव-देव के पहर भगवान कही, बड़े देव सोचे रोज कन। सोचते-सोचते एकात महीना सोचिस त छोटे देव ला सक करे अपने बहनीच संग, बड़े देव हर। ओ कथे - तोरो बहिनी मोरो बहिनी ए। अउ एके म खाना पिना होके रात बसे बर बहिनी के कुटिया मड़वा महल अतका रहय, दूनो भाई के कुटी छेरकी महल रहय। त तैं बहिनी ल परसों ले के देखबे देव। मोला झगरा झन कर देव रात म दूरिहा ले (अइसे कहिस)। त बहिनी के कुटिया रात बसे बर मड़वा महल अतका रहय। दूनो भाई के कुटी छेरकी महल रहय। त पचमुखी सेसनाग हर दिनमान सेसनाग बनय रात म राजकुमार बम्हन-रासपूत लड़का बनके फेर बहिनी के कुटिया म जावय। त परसों लिस त हिसाब जमीस ओला। अब बिहना होइस त देव पूछते - कइसे नोनी, हमर देवता-देवता के पहर तोर कुटिया म बम्हन-रासपूत लईका देखे हन अउ दिनमान नई देखउल दे हमर। कइसे भई कहिके। त ओ पचमुखी सेसनाग ए भईया। दिनमान सेसनाग बनथे, रात म राजकुमार बम्हन- रासपूत लड़का बन जाथे भई, अइसे कहिस, तउने मेर ले सोच-विचार लिस, देख-ताक लिस। त भोरमदेव ला न भरमाभूति में बनाए हे। तेखर सेती भोरमदेव कथे। नई त बहिनी संग भाई संग सक कर लिस, बहिनी ल। 

अब भोरमदेव ल बना के अपन मड़वा महल के सुरू करिस त देव के बहिनी फेर कथे - कइसे भईया अउ भउजी सब मंदिरे मूरति बनाथो। महूं जाहूं देखे-घूमे ला कहिके। त अनेक परकार के चीज बनाबो नोनी तोर भउजी संग, तोर जाय के नो हे। बन लिही त एके दारी भेजबो, हमन देखे बर तोला। तोर जाय के नो हे। मड़वा महल के सुरू करे हांव। तें आबेच झन कहे रहिस अउ आईच जाबे त बेगर घंटी बजाय मत खुसरबे, कहे रहिस देव ह। त देव के बहिनी, हरू करिन चुपे काल चल दिस, मड़वा महल देखे बर। ओमन ह जांवर-जोड़ी मूरति ल बनाय, बिना ओन्हा कपड़ा के। तो घंटी ला बजाय रतिस ओखर बहिनी, त ओमन कपड़ा पहिने रतिन। त देव रहाय तेन मूरति ल बनाते-बनाते रूख अन भाग गे। अउ बहिनी लजा गे, भाई लजा गे। त झन भाग भाई, झन भाग भाई, मोर से गलती होगे। भईया तैं झन आबे कहे रहे त आ पारें। भईया तैं घंटी बजाबे कहे त नइ बजाएं पाएं भईया लहुट जा भाई। लहुट कहिस त नइ लहुटिस। देव भागिस तेन ह त बहिनी लहुटाय ल गिस। तभो नइ लहुटिस। त भाई के कनिहा ला बहिनी पकड़े, भाई-बहिनी जंगल भाग गे। दूनो भाई-बहिनी तेन जाके पथरा लहुट गे, दूनो भाई-बहिन ह। 

देवता के मउर-मटुक, पर्रा-बिजना ओखर संग म भाग गे। सहसपुर ले आए रतिस मगरोहन मड़वा महल म। सुवासा-सुवासी मगरोहन बर रेंगे बर रेंग दिन, कुकरा ल नइ नेवतन पाइस। कुकरा ल नेवत दे रतिस आज राते के कि मगरोहन ल कुकरा ते झन पासबे न, त कुकरा नइ पासे रतिस। कुकरा राहय तेन भिनसरहा पहर रोज पासथों कहिके कुकरुस-कूं अइसे पास गे। त कुकरा के आवाज ल सुनके सुवासा-सुवासिन सहसपुर मनसफ होए हें। अउ देव मन के बनाय मगरोहन कुंदे-कुंदाय सहसपुर बांधा म पेनाय रतिस त मड़वा म सादी-बिहाव होय रतिस। त मगरोहन नइ आन पाय हे, सहसपुर बांधा ले। अइसे कहानी हे। ए चौरागांव ए अउ ए छेरकी कछार गांव ए, ए देवता सब चौरा खार ए, ओ चौरागांव ए, ओहिदे। अब अतके धुर ले कहानी ह।

5 comments:

  1. Iska Hindi anuwad bhi add kijiye na

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  2. कथा पूर गे ढेला घुर गे

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  3. ।। यह किस्सा वाचक परंपरा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है , जो पीढ़ियों से भारतीय समाज में चल रहा है , निर्गुनी संत साहित्य भी वाचक परंपरा से ही जिंदा बचा रह गया । में गुरुग्रंथ साहिब की रचना देखकर आश्चर्य चकित हो जाता हूं कि कैसे उसमे कबीर ,रैदास , नामदेव , बाबा फरीद , धन्ना , पीपा , सेन कि वाणी को स्थान मिला , जबकि से सभी संत निरक्षर थे।

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  4. Dr anil Bhatpahari b

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