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Saturday, April 16, 2022

मानवशास्त्र का एक अध्याय

सुश्री सावित्री गिदवानी सूरी, 90 पार कर चुकीं हैं, उन्हीं की जबानी-


पिता गिरधारीलाल मूलचंद गिदवानी, विभाजन के कारण करांची से कलकत्ता आ गए। करांची में इंद्रकुमार गुजराल हमारे घर आया करते थे। कलकत्ता में मेरी पढ़ाई स्कॉटिश चर्च और सांध्यकालीन बंगभाषी महाविद्यालय में हुई। 1956 में मानवशास्त्र से एम. एस-सी. किया।

खितिश बाबू यानि के.पी चट्टोपाध्याय (क्षितिश प्रसाद) गुरु थे, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, पक्के वामपंथी विचारों वाले, सी.वी. रमन के शोध-छात्र। कैम्ब्रिज में भौतिक शास्त्र की पढ़ाई करते, मानवशास्त्री डब्लू.एच.आर. रिवर्स के संपर्क में आए और इसी के हो गए। वापस आ कर विभिन्न शैक्षणिक भूमिकाओं का निर्वाह करते, 1962 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए।

वे अपने गुरु के बारे में याद करती हैं, ठहर-ठहर कर।

खितिश बाबू, राजा राममोहन राय के पोते, ईश्वरचंद विद्यासागर के दोहिते। टैगोर की भतीजी से विवाह हुआ, वे बहुत मगरूर थीं। खितिश बाबू लंबा कुरता पहनते थे और वही फैला कर चंदा जमा करते थे। पहले मैंने मनोविज्ञान विषय लिया था, लेकिन सीनियर बी.के. रायबर्मन की बातें सुनते मन बदला और मानवशास्त्र में प्रवेश ले लिया। मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष दुखहरन चक्रवर्ती थे, इस पर रुष्ट हो गए, तब खितिश बाबू ने उनसे बस इतना ही कहा, दुखहरन तुम दुखदेवन कैसे हो गए।

आन्द्रे बेते साथ थे, हम दो गैर-बंगाली होते थे। पढ़ाई के दौरान सरईकेला के उरांव जनजाति के मैटीरियल कल्चर के लिए फील्ड वर्क किया। टी.सी. दास भारतीय जनजाति और रायचौधरी विश्व की जनजातियां पढ़ाते थे। बहुत पढ़ाई करनी पड़ती थी। स्नातक तक कक्षा में 12 लड़के और मैं एक अकेली लड़की थी। स्नातकोत्तर में दो और लड़कियां आ गईं, हजारीबाग के प्रसिद्ध शिकारी परिवार की ज्योति सेन, उसकी शादी श्रीरामपुर के टेक्सटाइल मिल के मालिक से हुई, उन्होंने जर्मनी से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी, उन दिनों भारतीय टेक्सटाइल उद्योग ढलान पर आ रहा था। दूसरी कलकत्ता के प्रसिद्ध होम्योपैथ डॉक्टर की बेटी गीता मुखर्जी थी, वह फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी में थी।

गांधीवादी निर्मल कुमार बोस, गांधी जी के नमक सत्याग्रह में साथ रहे, नोआखली भी गए। पुरातत्व, भूगर्भ विज्ञान और मानव विज्ञान के जानकार, मानव भूगोल विभाग में थे, खितिश बाबू से नहीं पटती थी, फिर भी रोज मानवशास्त्र विभाग में आते थे, शादी नहीं की।

पढ़ाई के बाद 1956 से हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के लिए प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू कर दिया, मुक्ता सेन डाइरेक्टर थीं। रूरल सेंटर सिंगुर में काम होता था। 1962 अक्टूबर में शादी हुई, तब दिल्ली आ गईं। श्री इकबाल सूरी से विवाह, लगभग चार वर्ष मात्र का दाम्पत्य जीवन, पति की कैंसर से मृत्यु। एक बेटा, एक बेटी दोनों अब अमरीका में।

बी.के. रायबर्मन दिल्ली में Census के सोशियो-इकानामिक स्टडीज के रजिस्ट्रार हो गए थे, उनके साथ मुख्यतः ग्रामीण-जनजातीय संस्कृति संबंधी प्रोजेक्ट्स पर काम करने लगी। फरवरी 1967 से AIIMS, दिल्ली के सोशल सेक्शन में सोशल साइंटिस्ट का काम करने लगी। कान्ट्रेक्ट जॉब था। 1977 तक काम किया। रामलिंगास्वामी डाइरेक्टर थे और कर्णसिंह मंत्री। हमलोगों के भुगतान की समस्या प्रधानमंत्री तक पहुंची थी। बाद में मुझे फैमिली प्लानिंग इंस्टीट्यूट में काम करने को कहा गया, मुझे नहीं जमा।

मैं प्लानिंग कमीशन के सचिव एन.के. सेठी और समाज कल्याण की लीला सुमंत मुलगांवकर (टाटा मोटर्स-स्टील वाले) से जुड़ गई। बतौर चीफ कंसल्टेंट बारामूला, पिथौरागढ़, गंगानगर, सुंदरवन में प्रोजेक्ट्स के लिए फील्ड वर्क किया। जम्मू-कश्मीर में टाइम्स ऑफ इंडिया के मुख्य संवाददाता सती साहनी हमारे रिश्तेदार थे, उनका सहयोग मिलता था। पिथौरागढ़ में सुबह साढ़े पांच बजे उठ कर सूर्योदय के साथ बर्फ वाली त्रिशूल की चोटी दिखती थी। रिलीफ में बच्चों के नाश्ते के लिए सिर्फ 50 पैसे तय किया गया था, मुझे बुरा लगा, अपनी रिपोर्ट में यह विशेष रूप से दर्ज किया था।

एक प्रोजेक्ट Census के लिए मोहर्रम पर किया था। इसमें सार्वजनिक और निजी स्तर पर होने वाले आयोजन की जानकारी इकट्ठी करनी थी। जामा मस्जिद, दिल्ली गेट के आसपास का क्षेत्र था। शिया ताजिया निकालते हैं और सुन्नी पानी पिलाते हैं। सार्वजनिक आयोजन की जानकारी जुटाने के लिए सहयोगी भी थे, काम आसान था, मगर निजी तौर पर घरों में होने वाली गतिविधियों के लिए उनका भरोसा जीतकर अकेले ही जाना होता था, काम चुनौती भरा था। यह काम बाद में प्रकाशित भी हुआ।

1985 में देवबंद उत्तरप्रदेश में ह्यूस्टन विश्वविद्यालय की पौलन कोलेंडा के लिए काम करने लगी। दूसरी तरफ सहारनपुर था। वूमन्स कल्चरल वैल्यूज इन रूरल इंडिया प्रोजेक्ट था। इसी दौरान इंदिरा गांधी की मृत्यु पर दंगा भड़का, हम जनपथ में रहते थे, रीगल सिनेमा के आसपास बहुत बुरी स्थिति थी, हमें रुकना पड़ा, तब मैं रनखंडी में थी। एक अन्य प्रोजेक्ट, डब्लू.एच.ओ. का था, कुसुम अरोरा और वीना मजुमदार की सामाजिक संस्था के लिए काम किया। यह काम इटावा के ग्रामीण क्षेत्रों में था। बेटी सोनिया सूरी बोस्टन में है, उनका प्रोजेक्ट राजस्थान में जयपुर के पास था, उसके लिए काम किया। अधिकतर महिला, स्वास्थ्य, मैटीरियल कल्चर से संबंधित सर्वे होता था। सन 1991 तक काम करती रही।

सावित्री जी की मां आर्य समाजी थीं, उन्होंने तय रखा था कि किसी बच्चे को हिंदी जरूर पढ़ाएंगी, बड़ी बहन ने हिंदी पढ़ी और बालीगंज शिक्षा सदन में शिक्षिका रहीं, मन्नू भंडारी उनके साथ वहीं शिक्षिका थीं। सावित्री जी अपनी इन्हीं बड़ी बहन शीला भगवानानी जी के यहां रायपुर आती रही हैं। उनकी बहू जया अधीर भगवानानी जी के साथ यहां ‘आकांक्षा‘ के विशिष्ट बच्चों और रायपुर केन्द्रीय जेल में चित्रकला, कल्याणकारी जैसे कार्यों में सहयोग करती रही हैं। शीला जी अब नहीं रहीं। सावित्री जी की जिंदादिली में इतिहास की धड़कन है, वे इन दिनों भी भगवानानी निवास, सिविल लाइन, रायपुर में हैं।

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