Pages

Tuesday, November 23, 2021

हेराफेरी

समाचार पत्र ‘महाकोशल‘ रायपुर में 1 अप्रैल 1975 को मुखपृष्ठ पर प्रकाशित खबर-

पुरातन कालीन सोने के सिक्कों की हेराफेरी: नकली सिक्कों का प्रदर्शन

घासीदास संग्रहालय के भू.पू. क्यूरेटर महेश श्रीवास्तव को ४ वर्ष की कैद व जुर्माना


रायपुर, सोमवार (न० प्र०)। सोने के पुरातन कालीन सिक्कों की हेराफेरी करने व असली सिक्कों के स्थान पर नकली सिक्कों को म्यूजियम में रखने के आरोप में महंत घासीदास संग्रहालय के भूतपूर्व क्यूरेटर को धारा ४०९ व भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम के तहत पृथक-पृथक ४ वर्ष व १ वर्ष की सजा दी गई है।

सतर्कता विभाग की रायपुर शाखा द्वारा इस सनसनीखेज मामले को जांच के बाद मामला न्यायालय में पेश किया गया या तथा शासन द्वारा नियुक्त विशेष सत्र न्यायाधीश श्री व्ही० डी० वाजपेयी ने इस मामले में घासीदास संग्रहालय के भूतपूर्व क्यूरेटर महेशचन्द श्रीवास्तव को दोषी फरार देते हुए धारा ४०९ के तहत ४ वर्ष की कैद व १ हजार रु० का ज़माना न भष्टाचार निरोध नियम के तहत १ वर्ष की कैद व एक हजार रु० के जुर्माने की सजा दी है। जुर्माना न पटाने की स्थिति में आरोपी को १ वर्ष की अतिरिक्त सजा काटनी होगी।

इस प्रकरण में सतर्कता विभाग के निरीक्षक श्री खालिद द्वारा प्रस्तुत किए गए अभियोग पत्र के अनुसार वर्ष १९६० में राजिम के निकट पितई में राजा महेन्द्रदत्त के काल के ५वीं शताब्दी के ४६ सोने के सिक्के खुदाई के समय मिले थे। संग्रहालय के तत्कालीन संग्रहाध्यक्ष श्री बालचन्द जैन ने सिक्कों का परीक्षण भी किया था तथा इसे संग्रहालय को अवाप्ति पंजी में दर्ज किया गया। इसकी जानकारी जनरल आफ न्यू(मिस्)मेस्टिक सोसायटी आफ इन्डिया नामक पत्रिका में भी प्रकाशित की गई थी। श्री जैन के तबादले के बाद श्री बी० के० बाजपेयी व एच० के० कुदेशिया ने इन सिक्कों को चार्ज में लिया था। इनके स्थानांतर के बाद १४।६।६८ को महेशचन्द्र श्रीवास्तव ने इन सिक्कों का चार्ज लिया था।

१९६७ में यात्रा के दौरान नागपुर में श्री जैन को इन सिक्कों की गड़बड़ी की जानकारी मिलने पर उन्होंने इसकी सूचना पुरातत्व विभाग को दो थी बाद में विभाग के उप संचालक द्वारा १६-११-६८ को इस मामले की जांच की थी। जांच के दौरान पाया गया कि ज महेन्द्र दत्तया काल म ४६ सोने के सिक्कों में से ३ सिक्कों को बदल दिया गया था तथा उनके स्थान पर नकली सिक्के बनवाकर रख दिये गये था इसकी कीमत ३ हजार रु. बताई गई थी। इसके अतिरिक्त प्रसन्ना माप के काल का एक सोने का सिक्का गायब पाया गया था। इनके बाद प्रकरण को जांच हेतु सतकर्ता विभाग को सौंप दिया गया था जांच वधि में ही महेन्द्र श्रीवास्तव को बर्खास्त कर दिया गया प्रकरण को जांच के बाद जब मामला कोर्ट में पेश किया गया तो क्यूरेटर महोदय फरार हो गये थे सतर्कता जांच के दौरान निम्न तथ्य प्रकाश में आये थे।

०० गोविन्दचंद्र के काल का जो सिक्का रखा गया था वह नकली था तथा असली सिक्के का नकल कर उसे अन्य धातु से बनाया गया था।
०० कुशाणवंश का एक अन्य सिक्का भी दूसरी धातु से बना पाया गया।
०० महेन्द्र दत्ता काल का ही एक अन्य सिक्का सोने के स्थान पर अन्य धातु का नकली पाया गया। इस सिक्के के पीछे दबाव से आकृति उभारी गई थी। नकली सिक्का नागरी लिपि में था जबकि ५वीं सदी के काल में सिक्कों में ब्राम्ही लिपि र ती थी।
०० महेन्द्र दत्ता काल के एक अन्य सिक्के के स्थान पर प्रसन्न मात्र का टूटा हुआ सिक्का मिला था। इसी काल के एक अन्य असली सिक्के को बदलकर उसके स्थान पर नकली सिक्का मोटा पाया गया था जिसमें पीछे में लक्ष्मी जी की प्रतिमा अंकित थी।

यह सिक्का मोटा पाया गया जबकि असली सिक्का पतला था और उसमें वरूण की प्रतिमा थी। इसके अतिरिक्त जब क्यूरेटर को बर्खास्त किया गया तो उसने चार्ज देने में आना कानी की। सिक्कों के गायब होने के संबंध में जब उससे स्पष्टीकरण मांगा गया तो उसने कहा कि स्पष्टीकरण शासन को भेज दिया गया है। न्यायालय में बयान के समय श्रीवास्तव ने अपनी सफाई में कहा था कि उसके विरुद्ध षड़यंत्र रचा गया है वह नया आदमी होने के कारण सिक्कों की पहचान से अनभिज्ञ था।

प्रकरण में निसंदेह जिम्मेदारी श्री श्रीवास्तव की थी, किंतु सफाई में उनके द्वारा कही गई बात पर न्यायालय के बाहर अधिकतर को भरोसा था और षड़यंत्रकारी का नाम तब लोगों के जबान पर आम हुआ करता था।

No comments:

Post a Comment