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Sunday, August 29, 2021

सलखन - बालचन्द्र

मूर्तियों की कहानी
(श्री बालचन्द्र जैन)

बिलासपुर जिले की जांजगीर तहसील के सलखन नामक ग्राम में, १९३६ में एक श्रमिक ने खड़खोड़ी तालाब की मिट्टी खोदते समय एक बड़ा धातु का घड़ा पाया. इस घड़े में धातु की पांच मूर्तियां, चार घंटियां और तीन लम्बी शमादानें थीं. घड़े के पास तांबे का एक छोटा घड़ा भी खुदाई में प्राप्त हुआ जो खाली था तथा बुरी तरह से नष्ट-भ्रष्ट था. इस प्रकार से मिली हुई समस्त वस्तुएं ग्रामीणों द्वारा स्थानीय मंदिर में ले जाकर स्थापित की गईं जहां उनका पूजन किया जाने लगा. इन वस्तुओं की प्राप्ति के साथ ही एक ऐसी घटना हुई कि गांव में हुए हैजे का निराकरण हो गया जिससे इन वस्तुओं को धार्मिक दृष्टि से देखा जान लगा और गांव के लोग उन्हें अपने यहां से हटाने को तैयार न हुए. बिलासपुर के सरकारी अधिकारियों के सत्प्रयत्नों से निखात-निधि अधिनियम (ट्रेजर ट्रोव एक्ट) के अन्तर्गत केन्द्रीय संग्रहालय, नागपुर में रखने के लिये उनमें से तीन मूर्तियां और एक घंटी हासिल की गई.

ये धातुमूर्तियां मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से अत्यधिक आकर्षक हैं. ये मूर्तियां हिन्दुओं के वैष्णव और शैव दोनों मतावलम्बियों से संबंधित हैं और पन्द्रहवीं या सोलहवीं शताब्दी की कही जा सकती है. ये मूर्तियां अब नागपुर संग्रहालय को मूल्यवान सम्पत्ति है.

श्रीधर
निचली चौकी पर खड़ी हुई एक फुट दो इंच ऊंची धातुमूर्ति विष्णु को श्रीधरमूर्ति है. इस मूर्ति को चार भुजायें हैं जिनमें चार आयुध पद्म, चक्र, गदा और शंख है. दाहिनी ओर के नीचे और ऊपर के हाथों में क्रमशः पद्म और चक्र हैं तथा बाईं ओर के हाथों में गदा और शंख है. विष्णु के चारों हाथों में आयुधों को इस प्रकार की व्यवस्था उनकी(1) श्रीधरमूर्ति को विशेषता का दिग्दर्शन करती है. इसे मूर्तिविज्ञान के सिद्धान्तों द्वारा ठीक समझा गया है और इसका पूजन निम्न जाति के लोगों तथा वैश्यों द्वारा किया जाता है. इससे इस तथ्य का पता चलता है कि आरंभ में इस धातुमूर्ति की स्थापना किसी ऐसे मन्दिर में की गयी थी जिसे शूद्रों ने बनवाया था और उस जाति के स्थानीय लोगों द्वारा उसका पूजन किया जाता था.

श्रीधर-विष्णु को यह धातुमूर्ति धोती, मुकुट, कान के अलंकार, गले को माला, बाजूबन्द, कड़ा और अन्य अलंकारों से सज्जित है. इस मूर्ति के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह है. इस मूर्ति के दोनों ओर दो सेविकाएं हैं जिनके बाहरी तथा भीतरी हाथों में क्रमशः कमल का फूल और कोई एक फल है. विष्णु का वाहन गरुड़ चौकी पर घुटने टेके हुए ऐसी मुद्रा में दिखलाया गया है मानो कि वह अपने स्वामी को कोई फल अथवा फूल भेंट कर रहा हो.

उमा
दूसरी धातुमूर्ति उमा की है जो चौकी पर स्थित उल्टे फूल पर स्थित है. यह गौरी की बारह मूर्तियों में से एक है जिसका वाहन(2) गोध कहा गया है; परन्तु यह धातुमूर्ति एक कमल पर स्थित बतलाई गई है. तथापि उनके वाहन का संबंध कमल पर अवस्थित उनकी दो सेविकाओं से है. इस देवी की चार भुजाएं हैं जिनमें क्रमशः अक्षसूत्र, कमल, दर्पण और कमण्डलु है जो उनके (3)परिचायक है. इस मूर्ति के तीन नेत्र हैं तथा यह मूर्ति विभिन्न आभूषणों से सज्जित है. उनके पुत्र गणेश उनके साथ में हैं जो उनकी दाहिनी ओर की सीधी शलाका के छोर पर बैठे हुए हैं और बायीं ओर की शलाका का छोर खाली है.

उनकी एक ओर एक सेविका हाथ में चंवर लिये हुए खड़ी है तथा उसका दूसरा हाथ उसकी जंघा पर रखा हुआ है. सेविका गोध पर खड़ी हुई है जो कि देवी का वाहन है.

चामुण्डा
चामुण्डा सप्तमातृका में से एक है जो सामान्यतः अस्थि-पंजरमय होती है. मांसविहीन, हड्डियां उभरी हुई, निमग्न आंखें और भीतर को घुसा हुआ पेट(4) विश्व की जितनी भी भयावह वस्तुएं हैं, उन सबके भाव लेकर इस देवी की कल्पना की गई है. वह मानो प्रलय और संहार की प्रतीक है. प्रस्तुत धातुमूर्ति में वह शव पर नाच रही है. उसके गले में हड्डियों और खोपड़ियों की माला है. हाथ दस हैं और उनमें खेट, पाश, धनुष, वज्र जैसे भयानक हथियार है. देवी की दो परिचारिका है और वे भी उसीके समान रक्तपात्र और छुरा लिए हुए हैं.

पाद टिप्पणियां-

(1) देवतामूर्ति प्रकरण-५-११ श्रीधरः पद्म चंगाशः; रूपमण्डन-३-१५, श्रीधरो वारिज चक्र गदा शंख दधातिच. देवतामूति प्रकरण ५-३. पूजिता श्रीधरो मूर्तिः शूद्राणाञ्च सुखप्रद। चर्मकृद्र जकानाञ्च नदस्य वरटस्य च।।
(2) देवतामति प्रकरण ८--१.
(3) चतुर्भुजा त्रिनेत्रा चं सर्वाभरणभूषिता। गोधासनोपरिस्था च कर्तव्या सर्वकामदा।। तत्रैव ८--३. अक्षसूत्रञ्च कमलञ्च दर्पणञ्च कमण्डलुम्। उमा नाम्नी भवेन्मतिः पूजिता त्रिदशेरपि।
(4) द्दष्ट्राला क्षीणदेहा च गर्ताक्षा भीमरुपिणी। दिग्बाहुः क्षामकुक्षिश्च रूपमण्डन ५--७०.

मूल लेख में पाद टिप्पणियों के लिए संकेत चिह्न प्रयुक्त है, उन्हें यहां सुविधा के लिए कोष्ठक में क्रमांक (-) कर दिया गया है।

बालचन्द्र जी का यह लेख प्रगति पत्रिका के मार्च-अप्रैल 1956 अंक में प्रकाशित हुआ था। छत्तीसगढ़ में सिरपुर (तथा संलग्न ग्राम फुसेरा या फुसेराडीह) से समय-समय पर प्राप्त धातु प्रतिमाएं विशेष उल्लेखनीय है, किंतु इन धातु प्रतिमाओं के बारे में अधिकतर अनभिज्ञता है। ये प्रतिमाएं, नागपुर से महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर के संग्रह में आ गईं। इसी तरह एक अन्य धातु प्रतिमा सूर्य की है, जो अकलतरा के निकट स्थित ग्राम हरदी (जरवे) के प्रतिष्ठित पंडित बालाराम शुक्ल जी के भाई सखाराम शुक्ला जी को मिली थी, उन्हीं के निवास पर देवी प्रतिमा के रूप में पूजित रखी गई। इस ग्राम की पहरी में विभिन्न प्रकार की फुटकर सामग्री सतह पर दिखती है, जिनके प्राचीन होने का अनुमान होता है।

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