Pages

Wednesday, August 15, 2012

मसीही आज़ादी

छत्‍तीसगढ़ ओरिसा चर्च कौंसिल के मुख्‍यालय रायपुर में १५ अगस्‍त १९४७ को मसीहियों द्वारा किस तरह महसूस किया जा रहा था, दस्‍तावेजी लेख में दर्ज प्रासंगिक अंश-

आज हम स्वतंत्र भारतीय आज़ाद भारत में प्रथम समय यहां एकत्रित हुए हैं स्वतंत्रता दिवस, अगस्त १५ को हम ने सारे देश में कितने आनन्द और समारोह से मनाया। उस की स्मृति हमारे हृदय में सदैव जागृत रहेगी। ऐसे तो यह दिन सब ही के लिये महत्वशील था, किन्तु हम मसीहियों के लिये यह एक विशेष अर्थ रखता है। वास्तविक स्वतंत्रता हमें मिल चुकी है। ... ... ... हम ख्रीष्टियानों का यह कर्तब्‍य है कि हम स्वतंत्रता का असली अर्थ लोगों को बतायें, जिस से जनता का अधिकाधिक हित हो सके। मसीही होने के कारण हमें ये सुनहरा अवसर हाथ लगा है। हम सामुहिक और व्यक्तिगत रूप से इस अवसर का सदुपयोग देश सेवा हितकर सकते हैं। यह व्यर्थ की वार्ता नहीं है। हमारे देश के नेताओं ने जो कार्यक्रम बनाया है उसे सफल बनाने के लिये यीशुमसीह का आर्शीवाद आवश्यक है। ... ... ...
हमें सर्तक रहना होगा और प्रत्येक अवसर का उपयोग करना पड़ेगा। हमारे देश का इतिहास बहुत शीघ्र बदलता जा रहा है। इंगलैंड के प्रधानमंत्री, श्रीमान एटली ने लगभग सात मास पूर्व ये घोषणा की थी कि अंगरेजी राज्य जून सन १९४८ में समाप्त हो जायगा। घटनाएं इतनी शीघ्र घटिं कि वह राज्य साढ़े पांच माह में समाप्त हो गया। बात कहते में पाकिस्तान और भारत खण्ड नामक दो राष्ट्र उत्पन्न हो गये। उस दिन से स्वंतत्रता ने हमें एक विचित्र हर्ष प्रदान किया है। हमारे जीवन में एक नई छटा दिखाई दे रही है। किन्तु हर्ष के साथ शोक और चिन्ता भी आई है। लाखों मनुष्य अवर्णानीय दुख भोग रहे हैं। कलकत्ते और पंजाब में हजारों मनुष्य सामग्री खो बैठे हैं और मारे२ फिर रहे हैं। लाखों की हत्या हुई है और गांवों के गांव नष्ट कर दिये गये। भारत से मुसलमान प्राण बचा कर पाकिस्तान भागे जा रहे हैं और वहां से हिन्दु और सिख प्राण लेकर यहां आ रहे हैं। महात्मा गांधी ने कलकत्ते में जाकर अनुपम आत्मिक वीरता दिखाई। उन्हों ने मसीही शिक्षानुसार घृणा और बैर को प्रेम और सेवा से जीता। फलस्वरूप आज कलकत्ते में अमन है। दिल्ली में भी उन्हों ने ऐसी ही भलाई की। उनका पंजाब जाना जनसमुहों के एक प्रांत से दूसरे प्रान्त भागने के कारण रुक गया। हमारी सरकार का कार्यक्रम भी एकदम बन्द हो गया। मनुष्य की पशुप्रवति जागृत हो उठी और प्रायः देश भर में हाहाकार मच गया। जिन ने अपनी आंखो से सब कुछ देखा है, वे बताते हैं कि दुर्घटनाएं बड़ी रोमान्चकारी, हृदय-विदारक और अकथनीय है। प्रधान मंत्रि पंडित नेहरू ने स्वयंम कहा है कि ऐसा लगता है मानो मनुष्य पागल हो गये हैं। इन सब क्लेशों और कष्टों के साथ ही अकाल और बिमारियां भी आईं हैं। सकल भारत की मंडलियों से कार्यकर्ता भेजने की विनय की जा रही है। डाक्टरर्स नर्सेस और संचालकों की शरणागतों की सेवा के लिये बडी मांग है। पैसों की भी बड़ी आवश्यकता है। मसिहियों को यह अनूठा अवसर हाथ लगा है। हमें यीशु का प्रचार अपने जीवन से करना होगा। जैसी कठिन समस्या है वैसा ही परिणाम भी होगा। हमारी मिशन से कई मिशनरी जाने वाले हैं। देशी मंडलियों से भी कई भारतीय जाने के लिए तत्पर है।
छत्‍तीसगढ़ डायोसिस, रायपुर - अजय जी
छत्‍तीसगढ़ ओरिसा चर्च कौंसिल का रजिस्‍टर, जिसका अंश यहां प्रस्‍तुत है, पृष्‍ठ- २४६ और २४७ पर '' सी.ओ.सी.सी. माडरेटर की रिपोर्ट '' ( अक्‍टोबर १९४६ से दिसम्‍बर १९४७ तक ) शीर्षक से दर्ज है, जिसमें आगे यह भी उल्‍लेख है कि ''ईसाइयों ने (Joint electorate ) युक्‍त निर्वाचन के सिद्धांत को स्‍वीकार किया है। हम लोग साम्‍प्रदायिकता के हमेशा विरोधी रहे हैं। हमने ये बात अपने कार्यों से भी स्‍पष्‍ट कर दी है। हम नहीं चाहते कि हमें कोई एक प्रथक सम्‍प्रदाय समझे।'' यह दस्‍तावेज अप्रत्‍याशित उदारतापूर्वक रायपुर डायोसिस, छत्‍तीसगढ़ के सचिव अजय धर्मराज जी ने उपलब्‍ध कराया।

22 comments:

  1. ''ईसाइयों ने (Joint electorate ) युक्‍त निर्वाचन के सिद्धांत को स्‍वीकार किया है। हम लोग साम्‍प्रदायिकता के हमेशा विरोधी रहे हैं। हमने ये बात अपने कार्यों से भी स्‍पष्‍ट कर दी है। हम नहीं चाहते कि हमें कोई एक प्रथक सम्‍प्रदाय समझे।''

    उचित विचार प्रतीत होते हैं|

    ReplyDelete
  2. आपका पोस्ट सदैव नवीन जानकारियों से भरा रहता है और आज की कड़ी ने उसमे एक ऐतिहासिक कड़ी को जोड़कर उसे और भी खुबसूरत बना दिया . यह पोस्ट १५ अगस्त से संबंधित न होकर मानव जाति को समर्पित है .
    आपके शोध और संकलन को प्रणाम .स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ......

    ReplyDelete
  3. अरे वाह!!! संग्रहणीय. आभार.

    ReplyDelete
  4. छत्‍तीसगढ़ ओरिसा चर्च कौंसिल का रजिस्‍टर का अंश ...?

    waah इस दस्‍तावेजी लेख के लिए आभार ...!!

    ReplyDelete
  5. उसे सफल बनाने के लिए यीशु मसीह का आशीर्वाद आवश्यक है , दिलचस्प

    ReplyDelete
  6. मेरे विचार से ईसाई कौम 1947 के पहले भी आजाद थीं अैर उसके बाद सबसे ज्यादा आजाद भी वे ही हैं।

    ReplyDelete
  7. अर्थपूर्ण दस्तावेज!!
    समयानुरूप प्रस्तुतिकरण!!

    ReplyDelete
  8. दस्तावेजी मसीहाई उदगार

    ReplyDelete
  9. बढ़िया प्रस्तुति -

    नहीं नियत में खोट था, होता यही प्रतीत |
    सही सार्थक बतकही, मानवता की जीत |
    मानवता की जीत, रही चिंता सीमा पर |
    मार-काट के बीच, उजाला फैला रविकर |
    पर गंगा की धार, बहाई भरे समंदर |
    करें पंथ विस्तार, यही है दिल के अन्दर ||

    ReplyDelete
  10. दिल को छू लेने वाली बातें लिखी हैं. उस समय कैसा था देश का मंजर यह भी स्पष्ट हुआ और साथ ही यह शिक्षा भी मिली कि ऐसे अवसर जब मानवीयता कराह रही हो तो इसे सेवा का सुअवसर जान अपनी सेवाएं देनी चाहिए. यही है सच्ची धार्मिकता . प्रेरणास्पद लेख ! इसे साझा करने हेतु आपका धन्यवाद चाचाजी.

    ReplyDelete
  11. किसी भी धर्म के लिए हम बिना जाने कोई भी राय कायम कर लेते हैं लकीर के फ़कीर की तरह इसमें भी राजनेतिक पचड़े रहते हैं इसाई धर्म में हमेशा शान्ति ,सेवाभाव त्याग के पाठ पढाये जाते हैं इस आलेख से और जानकारी मिली है सांझा करने के लिए हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  12. सर्वथा नई जानकारी मिली .... आभार !

    ReplyDelete
  13. इतिहास पर रोचक दृष्टि..

    ReplyDelete
  14. सिंह जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'सिंहावलोकन से' लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 17 अगस्त को 'मसीही आजादी' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

    ReplyDelete
  15. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
    है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,
    जिससे इसमें राग बागेश्री भी
    झलकता है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
    ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
    मिलती है...
    Also visit my homepage :: खरगोश

    ReplyDelete
  16. आपने 15 अगस्त पर यह ऐतिहासिक दस्तावेज प्रेषित कर हम तक यह जानकारी पहुंचा कर बडा नेक काम किया है । महजब नही सिखाता आपस में बैर रखना ।

    ReplyDelete
  17. सुंदर प्रस्तुति
    ज्ञानवर्धक लेख

    ReplyDelete
  18. नयी जानकारी ...आभार भाई जी !

    ReplyDelete
  19. @मसिहियों को यह अनूठा अवसर हाथ लगा है। हमें यीशु का प्रचार अपने जीवन से करना होगा।

    ये ही इनका सोला आना काम है। किसी भी परिस्थिति में यीशु का प्रचार रुकना नहीं चाहिए।

    ReplyDelete
  20. स्वतंत्रा दिवस पर एक बहुत ही अच्छा लेख दुर्भाग्य तो यह है कि हम सभी जान रहें है कि कतिपय लोग धर्म के नाम पर वैमनस्यता फैला रहें हैं और इसकी हानियाँ उन्हें शायद उस दिन समझ में आयेंगी जिस दिन उनका कोई अपना उसकी चपेट में ( भगवान न करे ) आ जायेगा

    ReplyDelete
  21. सिंह साहब !
    नमस्ते जी !
    इसाई मिशनरियां और अन्य सम्प्रदाय वैदिक संस्कृति से हमे दूर ले जाते हैं |इश्वर खन्देलिया जी, कभी कहीं कोई मौलाना या पादरी तकरीर कर रहे हों तो आप जरा दिमाग खुले रख कर सुनेंगे तो समझ जायेंगे कि असली मुद्दा तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने या जन्नत में ठिकाने बनाने का है| सत्यार्थ -प्रकाश पढिये तब आप जान पाएंगे कि वैदिक संस्कृति और इसाइयत में क्या अंतर है ?

    ReplyDelete
  22. यह दस्तावेज देश के प्रति उनकी निष्ठा को रेखांकित करती है.

    ReplyDelete