Pages

Sunday, December 11, 2011

योग-सम्मोहन एकत्व

सम्मोहन- शक्तिशाली, मोहक और भेदक संकेत है। सम्मोहन- दृढ़ता, अधिकार और विश्वास से की गई प्रार्थना है। सम्मोहन- आश्चर्यजनक, जादुई क्षमता वाला मंत्र है और सम्मोहन- दृढ़ संकल्प और आज्ञा के साथ दिया हुआ आशीर्वाद है। बिलासपुर निवासी ओ.के. श्रीधरन की पिछले दिनों प्रकाशित पुस्तक- ''योग और सम्मोहन'', एकत्व की राह'' का उपरोक्त उद्धरण अनायास सम्मोहन के प्रति सात्विक आकर्षण पैदा करता है और वह भी विशेषकर इसलिए कि इसमें सम्मोहन के साथ योग के एकत्व की राह निरूपित है।

भारतीय धर्मशास्त्र के तंत्र, मंत्र, वामाचार जैसे शब्दों में सम्मोहन भी एक ऐसा शब्द है, जिसके प्रति सामान्यतः भय, आतंक और संदेह अधिक किन्तु आस्था और अध्यात्म की प्रतिक्रिया कम होती है और सम्मोहन को गफलत पैदा करने वाला जादू, वह भी काला जादू मान लिया जाता है। इस परिवेश और संदर्भ में पुस्तक का विशेष महत्व है।

अंगरेजी में लिखी मूल पुस्तक का यह हिन्दी अनुवाद सुप्रिया भारतीयन ने किया है, जिसे भारतीय विद्याओं की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्था 'भारतीय विद्या भवन' ने सु. रामकृष्णन् के प्रधान संपादकत्व में भवन्स बुक युनिवर्सिटी के अंतर्गत प्रकाशित किया है। पुस्तक के मुख्यतः दो खंड हैं- पहला, 'योग' सर्वांगीण विकास के लिए और दूसरा, योग और सम्मोहन, दोनों खंडों की विषय-वस्तु, खंडों के शीर्षक से स्पष्ट है। पुस्तक के तीसरे खंड, 'दर्पण' के अंतर्गत परिशिष्ट दो हिस्सों में संक्षिप्त गद्य और कविताएं हैं, जो निःसंदेह गहन चिंतन के दौरान लब्ध भावदशा के विचार-स्फुलिंग हैं।

प्रथम खंड में योग-दर्शन और उद्देश्य की सारगर्भित प्रस्तुति के साथ सभी प्रमुख आसनों, बन्ध, प्राणायाम और ध्यान का सचित्र निरूपण किया गया है। इस स्वरूप के कारण यह खंड योग में सामान्य रुचि और जिज्ञासा रखने वालों के साथ-साथ, वैचारिक पृष्ठभूमि को समझ कर आसनों का अभ्यास करने वालों और योग के गंभीर साधकों के लिए एक समान रुचिकर और उपयोगी है।

द्वितीय खंड के आरंभ में ही लेखक ने योग और सम्मोहन को स्पष्ट किया है- ''गहन एकाग्रता की चरम स्थिति अर्थात् 'ध्यान' और सम्मोहन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि दोनों में ही एकाग्रता की गहन स्थिति प्राप्त कर वाह्य जगत से ध्यान हटाकर चेतना की एक विशेष परिवर्तित स्थिति प्राप्त की जाती है।'' संस्मरणात्मक शैली में लेखक ने अपने बचपन, अपनी साधना, अनुभव और अविश्वसनीय लगने वाली घटनाओं का विवरण दिया है। कुन्ञकुट्टी का फिर से जीवित हो जाना, पोन्नम्मा की मूर्छा, भारती कुट्टी का सदमा और सम्मोहन के रोचक प्रयोगों जैसी स्थानीय और केरल में घटित घटनाओं में पात्र, स्थान आदि की स्पष्ट जानकारी होने से विश्वसनीयता में संदेह की संभावना नहीं रह जाती, किन्तु घटनाओं की वस्तुस्थिति और विवरण लेखक स्वयं के दृष्टिकोण से हैं। इस दृष्टि से अविश्वसनीय चमत्कारों का एक पक्ष यदि मानवता के लिए किसी विद्या या विधा-विशेष का कल्याणकारी पक्ष है तो इसके दूसरे नाजुक पक्ष, अंधविश्वास से पैदा होने वाले खतरों और सामाजिक बुराइयों को नजर-अन्दाज नहीं किया जा सकता।

'दर्पण' खंड के कुछ महत्वपूर्ण उद्धरणों का उल्लेख यहां समीचीन होगा। माया और भ्रम का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा गया है- 'सत्य का अस्तित्व केवल हमारी कल्पना और विचारों में है क्योंकि यह तथ्यों के अनुरूप होने की एक विशेषता मात्र है।' 'मानवीय बनो' शीर्षक के अंतर्गत समग्रता और एकत्व के लिए 'मानव को एकाग्रता की उस चरम स्थिति को प्राप्त करना पड़ता है-जहां वह प्रकृति से एकाकार करता है।' कथन प्रभावशाली है।

इसी खंड के परिशिष्ट - 2 की सात कविताएं, काव्य गुणों से पूर्ण और गहन होते हुए भी सहज निःसृत लगती हैं, अनुमान होता है कि ये रचनाएं श्रीधरन की प्रौढ़ साधना के दौरान उपलब्ध अनुभूतियां हैं, जहां उनका साधक मन, सृजनशील कवि मन से स्वाभाविक एकत्व में अक्सर ही कविता की लय पा लेता है।

अनूदित होने के बावजूद भी, पूरी पुस्तक में विषय अथवा भाषा प्रवाह में व्यवधान नहीं खटकता, जो अनुवादिका के दोनों भाषाओं पर अधिकार और विवेच्य क्षेत्र में उसकी पकड़ का परिचायक है, लेखक की पुत्री होने के नाते लेखक-मन को समझना भी उनके लिए आसान हुआ होगा। पुस्तक की छपाई सुरुचिपूर्ण और विषय तथा प्रकाशक की प्रतिष्ठा के अनुकूल है। मेरी जानकारी में भारतीय विद्या भवन से प्रकाशित बिलासपुर निवासी किसी व्यक्ति की यह प्रथम पुस्तक है। आशा है हिन्दी पाठक जगत इस कृति का स्वागत करेगा और लाभान्वित होगा।

सन 2002 में प्रकाशित इस पुस्‍तक पर मेरी संभवतः अप्रकाशित टिप्‍पणी, संकलित कर रखने की दृष्टि से यहां लगाई गई है, इसलिए टिप्‍पणियां अपेक्षित नहीं हैं।

26 comments:

  1. बढिया पुस्तक चर्चा, कभी मिली तो पढूंगा।

    ReplyDelete
  2. पुस्तक परिचय के लिए आभार -विषय विवादित रहे हैं मगर यह भारतीयता का वह पहलू भी है जो विश्व को विस्मित और सम्मोहित भी करता रहा है हमेशा ..पुस्तक पढी जानी चाहिए ....
    टिप्पणी निषेध के आह्वान के बाद इससे अधिक क्या लिखूं ?

    ReplyDelete
  3. चलिये आप कहते हैं तो टिप्पणी नहीं करते हैं, पर योग सदा ही सम्मोहित करता रहा है।

    ReplyDelete
  4. टिप्‍पणी, (बस सकारण) अपेक्षित नहीं हैं, लेकिन निषेध तो कतई नहीं है, स्‍वागत है.

    ReplyDelete
  5. Bahut badhiya kitab ka parichay karwaya aapne!

    ReplyDelete
  6. जानकारी महत्‍वपूर्ण है। अच्‍छा होता किताब बुलवाने का पता भी साथ में दे दें। ताकि इच्‍छुक व्‍यक्ति किताब प्राप्‍त कर सके।

    ReplyDelete
  7. पुस्तक पढने का मन है ...नोट कर ली है !
    सम्मोहन योग से अधिक मोहक लगता है ! शुभकामनाये आपको !

    ReplyDelete
  8. टिप्पणी का विकल्प बदल दिया गया है, अच्छा नहीं लगा। सम्मोहन...में ऐसी अविश्वसनीय कहानियाँ होती ही हैं। टिप्पणी अपेक्षित नहीं होने पर भी लोग करते ही हैं, ऐसा नहीं लगता?

    ReplyDelete
  9. हाँ, पुस्तक पढने का मन नहीं हुआ मेरा। लेकिन इससे क्या, औरों का होता है, तो पढना चाहिए ही।

    ReplyDelete
  10. टिप्पणी मना क्यों... यदि बक्सा लगा है तो मना मत किया कीजिये.... अंध विश्वासों से बचना चाहिये...हमेशा.. पुस्तक भी अंधविश्वासों का समरथन नहीं करती होगी.

    ReplyDelete
  11. विश्वास और अंधविश्वास के बीच बहुत ही मामूली सा अंतर है ...ज़रा सी चूक हुयी नहीं कि पक्ष बदलते देर नहीं लगाती . एकाग्रता और सम्मोहन से भी आगे की स्थिति है समाधि की ......
    सम्मोहन की स्थिति में चमत्कार जैसी अनुभूतियाँ स्वाभाविक हैं. पुस्तक पठनीय होगी .....

    ReplyDelete
  12. समीक्षा जो पुस्तक पढने के लिए प्रेरित करे वह सार्थक है... इस पुस्तक को पास के भारतीय विद्याभवन पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़ कर बताता हूं...

    ReplyDelete
  13. योग और सम्मोहन भारतीय संस्कृति के आकर्षक विषय रहे हैं,इस लिहाज़ से ज़रूर उपयोगी !

    ReplyDelete
  14. '' संस्मरणात्मक शैली में लेखक ने अपने बचपन, अपनी साधना, अनुभव और अविश्वसनीय लगने वाली घटनाओं का विवरण दिया है। कुन्ञकुट्टी का फिर से जीवित हो जाना ..."
    योग से सहमत हुआ जाना चाहिए पर संयोग से नहीं.फिर से जीवित हो जाना ...कभी नहीं .

    ReplyDelete
  15. पुस्तक बहुत ही रोचक लग रही है...
    पढ़ने की इच्छा तो है..कब वक़्त निकाल पाती हूँ..
    इस पुस्तक से परिचय करवाने का आभार

    ReplyDelete
  16. योग का महत्व है तभी तो आज के दौर में भी प्रासंगिक है - भाई हम तो टिप्पणी देंगे :)

    ReplyDelete
  17. लेखक और आप दोनो को बधाई.............

    ReplyDelete
  18. ye kitaab to padhi nahi par is ke baare me aapke shabdon me padhkar accha laga...

    ReplyDelete
  19. पुस्तक और लेखक से परिचित कराने का आभार.

    ReplyDelete
  20. योग सदा ही सम्मोहित करता रहा है।

    ReplyDelete
  21. योग-साधना आज के भौतिक-युग की आवश्यकता है
    मानव-कल्याण हेतु ऐसे आलेख महत्वपूर्ण हैं
    विस्तृत जानकारी के लिए
    आभार और अभिवादन .

    ReplyDelete
  22. सम्मोहन के बारे मे विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार ..अच्छा लेख

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर. यथार्थ है की पुराने जमाने में सरगुजा को बस्तर वाले भी नरक ही मानते थे. ... कोच्ची से...

    ReplyDelete
  24. लीजिए। आपका कहा, शब्‍दश: मान लिया। कोई टिप्‍पणी नहीं।

    ReplyDelete
  25. Nicc is blog m bhi achi jankari hai

    www.guruvashist-astrotantra.blogspot.in

    ReplyDelete