Pages

Wednesday, August 24, 2011

कृष्‍णकथा

छत्‍तीसगढ़ में कृष्‍णकथा और उत्‍सव की अपनी परम्‍परा है, जिसमें भागवत कथा आयोजन, गउद के दादूसिंह जी, हांफा के पं. दुखुराम, बेलसरी वाले पं. रामगुलाम-पं.बालमुकुंद जी, पेन्‍ड्री के पं. बसोहर. रतनपुर वाले पंडित ननका सूर्यवंशी, सांसद रहे गोंदिल प्रसाद अनुरागी जी, विधायक रहे कुलपतसिंह जी सूर्यवंशी जैसे रासधारियों और रानीगांव आदि का पुतरी (मूर्ति) और बेड़ा (मंच, प्रदर्शन स्‍थल) वाला रहंस (रास), छत्‍तीसगढ़ का वृन्‍दावन कहे जाने वाले गांव नरियरा की कृष्‍णलीला, रतनपुर का भादों गम्‍मत, पं. सुन्‍दरलाल शर्मा की रचना छत्‍तीसगढ़ी दानलीला, महाप्रभु वल्‍लभाचार्य जी की जन्‍म स्‍थली चम्‍पारण, राउत नाच, दहिकांदो, कान्‍हा फाग गीत, रायगढ़ की जन्‍माष्‍टमी, डोंगरगढ़ का गोविन्‍दा उत्‍सव, बस्‍तर में आठे जगार, सरगुजा में डोल तो उल्‍लेखनीय हैं ही, पहले-पहल गोदना कृष्‍ण ने गोपियों के अंग पर गोदा, इस रोचक मान्‍यता का गीत भी प्रचलित है-
गोदना गोदवा लो सखियां गोदना गोदवा लो रे
मांथ में गोदे मोहन दुई नयनन में नंदलाला
कान में गोदे कृष्‍ण कन्‍हैया गालों में गोपाला।
ओंठ में गोदे आनन्‍द कंद गला में गोकुल चंद
छाती में दो छैला गोदे नाभी में नंदलाला।
और कृष्‍णकथा सहित पाण्‍डवों की गाथा को 'बोलो ब्रिन्‍दाबन बिहारीलाल की जै' से आरंभ कर 'तोरे मुरली म जादू भरे कन्‍हैया, बंसी म जादू भरे हे' तक पहुंचाने वाली पद्मभूषण तीजनबाई जी की पंडवानी, जैसे छत्‍तीसगढ़ की पहचान बन गई है।

इसकी पृष्‍ठभूमि में धर्म-अध्‍यात्‍म और साहित्‍य की भूमिका निसंदेह है, कृष्‍ण नाम यहां पहली बार रानी वासटा के लक्ष्‍मण मंदिर शिलालेख, सिरपुर से ज्ञात है- ''यः प्रद्वेषवतां वधाय विकृतीरास्‍थाय मायामयीः कृष्‍णो'' और सैकड़ों साल के ठोस प्रमाण प्राचीन शिल्‍प कला में तुमान, पुजारीपाली, देव बलौदा, रायपुर, गंडई, लक्ष्‍मणगढ़, महेशपुर, सिरपुर, तुरतुरिया, जांजगीर आदि में मूर्त हैं। प्रतिमा-शिल्‍पखंड का अभिज्ञान, काल, राजवंश-कला शैली उल्लेख सहित चित्रमय झांकी-
कृष्‍ण जन्‍म?, ईस्‍वी 11वीं सदी, त्रिपुरी कलचुरी

वसुदेव-बालकृष्‍ण गोकुल गमन, बलराम-प्रलंबासुर, ईस्‍वी 12वीं सदी, रतनपुर कलचुरी

बाललीला, कुब्‍जा पर कृपा, कुवलयापीड़वध, 
ईस्वी 10वीं सदी, त्रिपुरी कलचुरी

कृष्‍णजन्‍म, योगमाया, पूतना वध, 
ईस्वी 9वीं सदी, त्रिपुरी कलचुरी

पूतनावध, ईस्वी 18वीं सदी, मराठा

कालियदमन, ईस्वी 13वीं सदी, फणिनागवंश

पूतनावध, तुरंगदानव केशीवध ईस्वी 7वीं सदी, सोमवंश

केशीवध, ईस्वी 6वीं सदी, शरभपुरीयवंश

केशीवध, वत्‍सासुरवध, ईस्वी 6वीं सदी, शरभपुरीयवंश

शकट भंजन, यमलार्जुन उद्धार-ऊखलबंधन, अरिष्‍ट(वृषभासुर)वध, 
कालियदमन, धेनुकासुरवध, कृष्‍ण-बलराम-अक्रूर मथुरा यात्रा, 
ईस्वी 10वीं सदी, त्रिपुरी कलचुरी

गोवर्धनधारी कृष्‍ण, ईस्वी 13वीं सदी, फणिनागवंश

कर्णार्जुन युद्ध, वेणुधर कृष्‍ण, ईस्वी 13वीं सदी, फणिनागवंश
लिखित, वाचिक-मौखिक परम्‍परा, पत्‍थरों पर उकेरी जाकर स्‍थायित्‍व के मायनों में जड़ होती है। इन पर सर भी पटकें, पत्‍थर तो पत्‍थर। इस पोस्‍ट की योजना तो बना ली लेकिन ये पत्‍थर मेरे लिए पहाड़ साबित होने लगे। काम आगे बढ़ा, हमारे आदरणीय वरिष्‍ठ गिरधारी (श्री जीएल रायकवार जी) की मदद से। पथराया कला-भाव और उसकी परतें उनके माध्‍यम से जिस तरह एक-एक कर खुलती हैं, वह शब्‍दातीत होता है। कर्ण-अर्जुन युद्ध करते रहें, बंशीधर के चैन की बंसी बजती रहे। काम सहज पूरा हो गया। इस बीच एक पुराने साथी जी. मंजुसाईंनाथ जी ने जन्‍माष्‍टमी पर बंगलोर से खबर दी-
भोँपू, नारा, शोरगुल, कौवों का गुणगान।
हंगामे में खो गयी, मधुर मुरलिया तान।

लेकिन अहमदाबाद की एक तस्‍वीर यहां देख सकते हैं।

41 comments:

  1. Sir, Really wonderful collection of Krishna Bhagwan in Chhattisgarh.

    ReplyDelete
  2. ज्ञानवर्धक चित्रलेख के लिए आभार.....
    गिरधारी के कामे हां पहाड़ उठाना हे....
    गिरधारी लाल जी के घलो जय जय कार....

    ReplyDelete
  3. दसवीं तस्वीर अधिक कलात्मक लग रही है। इससे अधिक इस पोस्ट पर कहने की हैसियत नहीं।

    ReplyDelete
  4. चित्रकथा द्धारा खूब समझाया है।

    ReplyDelete
  5. "हंगामे में खो गयी, मधुर मुरलिया तान '
    को बदल कर
    "हंगामे में भी दिख ही गई पत्थर की शान "
    समझ रहा हूँ .अनुरागी जी राज्नीतिग्य होने के बाद भी इन कार्यक्रमों में इतने जुड जाते थे कि विधान सभा सत्र हेतु भोपाल जाने में विलम्ब हो जाता था .पोस्ट ज्ञान कोष की तरह पूर्ण है

    ReplyDelete
  6. वो कहते हैं न कि चित्रकथा द्वारा समझना आसान एवं रोचक होता है, आपने उसको सार्थक कर दिया | मेरा एक बहुत पुराना project जिसमे मैं सम्पूर्ण रामायण एवं महाभारत को इसी प्रकार के panels द्वारा प्रदर्शित करूं, परन्तु अभी तक वो project शुरू ही नहीं कर पाया, पर यकीन है शीघ्र ही इसको शुरू कर सकूँगा

    ReplyDelete
  7. सचित्र ज्ञानवर्द्धक पोस्ट.

    ReplyDelete
  8. मैं जब भी पुराने शिल्प देखता हूं तो आश्चर्य चकित रह जाता हूं कि हम कहां थे और कहां पहुंच गये...

    ReplyDelete
  9. your illustrated krishnaleela was a fabulous presentation. the recent knowladge aquired about murtikala helped me to enjoy the pic. more meaning fully. thanx.

    ReplyDelete
  10. राहुल जी, वैसे तो भारत कोई क्षेत्र ऐसा नहीं होगा जो कृष्ण के प्रभाव से अछूता हो किन्तु छत्तीसगढ़ का तो कण-कण कृष्णमय है, यहाँ के फाग गीतों में भी कृष्ण भक्ति से ओत प्रोत गीतों की भरमार है, यथा

    भादों के अँधियारी रतिया भादों के अँधियारी रे लाल, प्रकटे कृष्ण मुरारी रे लाल.....

    कालीदह जाय कालीदह जाय छोटे से श्याम कन्हैया.....

    बाँसुरिया में टोना डारे बाँसुरिया में टोना रे लाल, सुन्दर श्याम सलोना रे लाल.....

    नचन सिखावैं राधा प्यारी हरि को नचन सिखावै राधा प्यारी.....

    आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होरी खेलैं ना.....


    जन्माष्टमी के पावन पर्व के अवसर पर इस चित्रमय सुन्दर पोस्ट के लिए आपको धन्यवाद!

    ReplyDelete
  11. कभी प्राचीन इतिहास का छात्र रहने से मुझे सहज ही इस विषय ने आकर्षित कर लिया। अच्छा लगा कृष्ण से जुड़े इतने विविध कलाकृतियों को इस तरह देखना।

    ReplyDelete
  12. अच्छी लगी ये पोस्ट.
    कुछ दिनों पहले ही मैं पटना म्यूजियम गया था वहाँ बड़ी उत्सुकता से सब कुछ देखा-सुना... बस वहाँ तस्वीर लेने की मनाही है तो तस्वीर नहीं ले पाया.

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. मुझे तो आपसे इसी प्रकार के पोस्टों की अपेक्षा थी. रानीगांव का रहसतो सदैव याद रहेगा.

    ReplyDelete
  14. itni sunder manbhanvan prastuti ke liye aapko koti koti badhai........Krishan Bhagwan ji ke itni tareh tareh ke sunder sunder dershan karane ke liye dhanyawaad...........mai aapki is post ko copy ker raha hun ...........bahut umda psot badhai ..................

    ReplyDelete
  15. उपयोगी जानकारी देती हुई बढ़िया पोस्ट ....आभार

    ReplyDelete
  16. ऐतिहासिकता समेटे एक वस्तुनिष्ठ पोस्ट,बहुत धन्यवाद.

    ReplyDelete
  17. प्रचलित कथा के अनुसार जब खाटू वाले श्याम जी से इस बात का निर्णय करने को कहा गया कि महाभारत में सबसे ज्यादा वीरता किसने दिखाई तो उनका जवाब कुछ ऐसा था, कि "कौन अर्जुन, कौन भीम? मैंने तो हर तरफ़ कृष्ण को ही पाया है।" जब महाभारत जैसा यज्ञ(अपने को तो यज्ञ ही लगता है) बिना शस्त्र उठाये बखूबी सम्पन्न करवा दिया तो आपकी पोस्ट ..:)
    आप क्रेडिट कान्हा को दीजिये, हम आपको देंगे कि आपको माध्यम बनाकर हमें ये प्रस्तर कलाकृतियां दिखाईं।

    ReplyDelete
  18. कल शनिवार २७-०८-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर है ...कृपया अवश्य पधारें और अपने सुझाव भी दें |आभार.

    ReplyDelete
  19. इतनी खूबसूरत पोस्ट अब देख पाया ....
    आभार आपका

    ReplyDelete
  20. मैं तो कुछ समय बस चित्रों को देखते रह गया..
    ऐसी कोई भी पोस्ट/चित्र देखता हूँ तो सम्बंधित जगहों पर जाने की ईच्छा प्रबल हो जाती है, पता नहीं क्यों..

    ReplyDelete
  21. गीत गाया पत्थरों ने ..अद्भुत कृष्ण लीला

    ReplyDelete
  22. क्या कहा जाये राहुल भाई बिलकुल सटीक बात ही कही है मंजुसैनाथ जी ने
    भोँपू, नारा, शोरगुल, कौवों का गुणगान।
    हंगामे में खो गयी, मधुर मुरलिया ता
    मुझे याद आता है कंही मैंने एक लेखक का लेख पढ़ा था कि कंहा यह तो याद नहीं किन्तु वह बात आज भी दिमाग में घुमती रहती है उस लेख में लेखक ने कहा था कि उनकी नजर में कृष्ण कोई भगवान नहीं कोई अवतार नहीं मेरी नजर में वह जीवन को जीने की कला है
    क्या हममें से कोई भी उस कला का एकांश भी जी पता है ?

    ReplyDelete
  23. लीलाधर कान्हा, सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  24. राहुल जी, इतनी सारी सुन्दर तस्वीरें और उनके बारे में जानकारी, गोने वाला गीत बहुत सुन्दर लगे. मुझे पुरात्तव सम्बन्धी बातों में बहुत दिलचस्पी है. पोस्ट पढ़ते हुए मन कर रहा था कि उड़ कर आप के पास आ जाऊँ और आप की बातें सुनूँ. :)

    ReplyDelete
  25. एक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पोस्ट। शिलाओं पर उकेरी गईं मूर्तियाँ सजह ही आकर्षित करती हैं। आप का साहित्यिक और आध्यात्मिक प्रेम अनुकरणीय है श्रीमान।

    ReplyDelete
  26. ज्ञानवर्धक चित्रलेख ........आभार!

    ReplyDelete
  27. संग्रहणीय!
    इतनी जानकारी, प्रस्तर कला के चित्रादि बाँटने के लिए आभार।

    ReplyDelete
  28. सदियों से भारत के जनमानस मे अंकित जनश्रुति ने निश्चित ही मूर्तीकला और साहित्य मे गहरा प्रभाव डाला है। कॄष्ण कथा के तो कहने ही क्या । बहुत ही सुंदर चित्र मय लेख है

    ReplyDelete
  29. उपयोगी जानकारी देती हुई बढ़िया पोस्ट

    ReplyDelete
  30. sambhal kar rakhne wali post ........aabhar rahul ji

    ReplyDelete
  31. अच्छी पोस्ट है सर। मुझे पुरात्तव सम्बन्धी बातों में बहुत दिलचस्पी है.

    ReplyDelete
  32. बहुत सुंदर प्रस्तुति,


    एक चीज और, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  33. आप अद्भुत काम कर रहे हैं। यदि सम्‍भव हो तो अपने इन आलेखों को 'कथा शैली' में रेकार्ड कर
    यू ट्यूब के माध्‍यम से प्रस्‍तुत करने पर विचार करें। उसका आनन्‍द अवर्णनीय होगा।

    ReplyDelete
  34. सचित्र .. ज्ञानवर्द्धक व संग्रहणीय लेख । आपके प्रत्येक लेख नये आयाम लिये हुए व ढेर सी जानकारी से परिपूर्ण होते हैं .. बधाई ..
    - डा. जेएसबी नायडू

    ReplyDelete
  35. नीचे वाले लिंक में एक चित्र का कृष्ण से सम्बन्ध नहीं था, ऐसा मुझे लगता है।

    ReplyDelete