Pages

Monday, November 8, 2010

रेलगाड़ी

आगरा स्‍टेशन। पिछले दिनों उत्‍कल एक्‍सप्रेस से सफर में विदेशी नजारा देख रहे थे और फोटू पर फोटू खींचे या उतारे जा रहे थे। हम उड़न तश्‍तरी की तरह (लेकिन हाइवे पर नहीं पलेटफारम पर) नजारे का नजारा देख रहे थे। माजरा कुछ समझ में नहीं आ रहा था हमारे। हम सोच रहे थे कि किस देश के अनाड़ी हैं, क्‍या इनके देश में रेलगाड़ी नहीं होती। फिर लगा सोचना समझना बाद में घर पहुंचकर कर लेंगे, अभी तो अनुकरण पद्धति अपनाते हुए हम भी चमका दें, अपना भी तो है, भारी-भरकम न सही, मोबाइल वाला। घर आकर भूल गए कि कब क्‍या जमा कर लिया है। मोबाइल की गैलरी में फोटो देखते हुए समझ में नहीं आया तो स्‍क्रीन पर बड़ा करके देखा। पहले फोटू में तो भजिया-पकौड़ी का मिरची और केचप सहित कुछ मामला दिखा। कैद की तरह सलाखों से हाथ बाहर निकल रहे हैं। ये खिड़की ... ओह ... शीशा निकल गया है, तो अब टॉयलेट काम का तो रहा नहीं, चलो, लोगों ने बेकार नहीं छोड़ा, काम में ले लिया, अपने लिए जगह बना ली।

दूसरे चित्र में भी कुछ यही चल रहा है, लेकिन यहां बंदूक वाले खाकी वरदी की भी दखल है, याद आया वह भी कुछ लेन-देन कर रहा था, शायद भजिया या कुछ और पता नहीं, लेकिन फोटो में दाहिने खाकी वरदी में उसके जिस सहयोगी की झलक है, वह पहले भोक्‍ता को टकटकी लगाए दृष्‍टा की तरह सारे कार्य-व्‍यापार पर नजर रखे है। 'द्वा सुपर्णा ... ' चलिए, चलिए बहुत हो गया, आपको आंखों देखी बताने के चक्‍कर में हमारी ट्रेन न छूट जाए। लेकिन ये फिरंगी बेकार में कैमरा क्‍यों चमकाते हैं जी, आप ही बताइये।

इसी सफर के एक फेरे में हमराही थे, कोलकाता मुख्‍यालय वाले 'भारत सेवाश्रम संघ' के 80 पार कर चुके स्‍वामी जी। बच्‍चों सी कोमल-चपलता लेकिन सजग, मोबाइल पर फोन सुनते, भक्‍तों सहित सहयात्रियों का लगातार ख्‍याल रखते हुए। रेलगाड़ी के एसी डिब्‍बे में उनके असबाब में हाथ-पंखा, बाने के साथ उनका अभिन्‍न हिस्‍सा लगता था, आप भी देखिए फोटू में ऐसा लगता है क्‍या।

पुछल्‍लाः

पत्रकारनुमा एक ब्‍लॉगर मित्र का कहना था कि क्‍या गरिष्‍ठ पोस्‍ट लगाते रहते हो, कुछ तो हो पढ़ने लायक। फिर उदारतापूर्वक उन्‍होंने समझाया कि ''कहीं जाते-आते हो, राह चलते मोबाइल का कैमरा चटकाते रहो, घर पर आराम से बैठ कर सब फाटुओं को देखो, एक से एक बढि़या पोस्‍ट बनेगी। अरे हमारे साथी तो इस टेकनीक से एक्‍सक्‍लूसिव खबरें बना लेते हैं, पोस्‍ट क्‍या चीज है।'' मित्र, निरपेक्ष किस्‍म के सर्व-शुभचिंतक हैं, उन पर भरोसा भी है, इसलिए उनके सुझाव और टेकनीक का पालन करते हुए यह पोस्‍ट-जैसा तैयार किया है। हे मित्र ! यह आपको समर्पित करते हुए निवेदन कि आपके निर्देशनुमा सुझाव का उचित पालन हुआ हो तो टिप्‍पणी में आकर कृपया इसे स्‍वीकार करें।

(रश्मि रविजा जी का मेल है 14 नवम्‍बर, बाल दिवस के लिए संस्‍मरण लिख भेजने का, इसीसे शायद वह भी सध जाए।)

26 comments:

  1. देखिये, नजारे का नजारा देखने का फायदा हुआ न..क्या चित्रमय बेहतरीन पोस्ट निकल आई.

    बहुत बढ़िया. :)

    ReplyDelete
  2. "सब फाटुओं को देखो, एक से एक बढि़या पोस्‍ट बनेगी।" हाँ ऐसा भी होता है.

    ReplyDelete
  3. आपके स्तर का लेख नहीं लगा जनाब

    ReplyDelete
  4. आप बधाई के पात्र हैं अपनी सहजता के लिए .
    किस खूबसूरती से आप ने बयां किया साहब कि
    विदेशियों को कैमरा फ्लेश चमकाते देख लगा
    कि अपना भी चमका लें.कुछ करते रहना अच्छा है,
    अच्छा हो भी जाता है.अगर आप प्रयास कर रहे हों.

    ReplyDelete
  5. आपके पत्रकारनुमा दोस्त के निर्देशनुमा अनुपालन में जो पोस्टनुमा आपने लिखा है, उसपर हमें अपने कमेंटनुमा ये कहना है कि हम भारतीय optimum utilization of almost everything करने वाले प्राणी हैं। ये फ़िरंगी जलते हैं जी हमसे, अभी फ़ोटो खींच कर ले गये, अपने वतन में जाकर इस स्टाईल का पेटेंट करवा लेंगे।
    स्वामी जी का हाथ पंखा स्वावलंबन का द्योतक लगता है हमें तो।
    हमने तो आज अपने मोबाईल से दूज के चांद की फ़ोटो खींचने की कोशिश की, सब आ गया फ़ोटो में बस्स चांद ही नहीं आया।
    हमें तो पोस्ट पसंद आई जी, कभी कभी लिख दिया करें ऐसा हल्का फ़ुल्का।

    ReplyDelete
  6. दीवाली के बाद वैसे भी गरिष्ठ पदार्थों से बचना चाहिए।
    सुपाच्य ग्रहण करना चाहिए।
    और बिना फ़्लेश चमकाए फ़ोटो लेना चाहिए।

    ReplyDelete
  7. achchhi post,written from the right side (intuition) of the brain,emerging like a flash,with little or no preparation. seems meaningless yet full of meaning and full of freshness. billu bhaiya se sahmat nahi. may not appeal to logical and calculative mind, but definitely appealing to imaginative, romantic, poetic and platonic mind- badhiya aur nissandeh kam garisth post- BALMUKUND

    ReplyDelete
  8. विदेशों में रेलगाड़ी भले ही होती हो...ये चाय-समोसे वाले नज़ारे कहाँ से मिलेंगे...:)
    बहुत ही सुन्दर बन गयी ये चित्रमयी पोस्ट...फोटो तो खासकर बड़े अच्छे लग रहें हैं.

    अब तो आपने यहाँ लिख दिया....इंतज़ार रहेगा...आपके संस्मरण का...वरना सबलोग याद दिलाते रहेंगे :)

    ReplyDelete
  9. पोस्ट पर टीप से पहले :

    सबसे पहले उस पत्रकारनुमा ब्लॉगर दोस्त को प्रणाम कि पोस्ट डालने का गुर भी बताया और बिल्लू भैया बन के निपटा भी दिया ! अब चूंकि आपके निमंत्रण के बावजूद वे अपने ओरिजनल में आके टिपियाये नहीं , तो लगता ये है कि वे बिल्लू भैय्या ही होंगे :)

    रश्मि जी ने इस संस्मरण के छप जाने के कारण नया संस्मरण चाहा है तो बची हुई फोटो से उनका हिसाब भी चुकता कीजिये :)


    पोस्ट पर टीप :

    चित्र क्रमांक एक देख कर प्रथम दृष्टया ख्याल ये कि खाद्य सामग्री के साथ उड़न तश्तरी का ज़िक्र भला क्यों :)

    फिरंगी सोचते होंगे कि सांवले सलोने लोगों की फोटो अच्छी ना आयेगी सो फ्लेश चमका कर खींचते हैं शायद :) ...और हां दूसरे चित्र से ये पता नहीं चलता कि पुलिस वाला क्या सोच रहा है :)

    तीसरे चित्र वाले स्वामी जी में गज़ब का आत्मविश्वास है इतना तो मुझे अपनी खुद की टीप के स्तरीय होने पर भी नहीं है :)


    [ सिंह साहब नव प्रयोग ज़ारी रखियेगा कई बार पोस्ट से ब्लागर की उम्र की ताजगी का लेवल पता चलता है :) ]

    ReplyDelete
  10. राहुल भैया, नमस्कार. आपको बहुत दिनों बाद ढूंढ सका. अपेक्षा है अब नियमित रूप से आपसे विमर्श के साथ आपको पढ़ सकूंगा.

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुन्दर रचना . धन्यवाद !

    ReplyDelete
  12. 'उड़नतश्तरी' के लिंक से शुरू करके मित्र के बताई टेकनीक तक पहुँचते-पहुँचते रंग पक्का हो चुका था. स्वामी जी का पंखा वातानुकूलन में बढ़िया कंट्रास्ट दे रहा है. विदेशियों के मार्फ़त गढ़ा हुआ विनोद शौचालय में यात्रा कर रहे लोगों और "भजिया-पकौड़ी का मिरची और केचप" के सन्दर्भ से जोड़ते ही Black Humour में बदल गया. आप का ये 'गैर गरिष्‍ठ' पोस्ट भी गहरे आयामों से अछूता नहीं है. पर सोचना समझना बाद में घर पहुच कर ही किया जाए इस बार................
    मज़ा आ गया सर.

    ReplyDelete
  13. आगरा स्टेगशनमहल का सचित्र नजारा पैखाने से खाने की जुगाड़ में
    खा खा खा खा खाकी वरदी और बन्दूक की आड़ में
    जल्दी खाके अन्दूर जाते क्यों खड़े रह गए किवाड़ में
    आखिर फंस गए ना भैया की गिद्ध्‍दृष्टि की ताड़ में

    ReplyDelete
  14. रोचक यात्रा संस्मरण -फोटू भी कुछ कह रहे हैं !

    ReplyDelete
  15. रोचक संस्मरण, पढ़कर अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  16. वाह वाह राहुल जी एकदम खालिस बलॉगरनुमा पोस्ट है ..क्या तस्वीरें हैं और क्या उसके पास आपने तानाबाना बुना है ..बहुत खूब

    ReplyDelete
  17. राहुल जी, गरिष्‍ठ पोस्‍टों के बाद यह हल्‍की फुल्‍की संस्‍मरण टाइप पढकर अच्‍छा लगा। अपने मित्र को मेरी ओर से भी धन्‍यवाद दीजिएगा।

    ReplyDelete
  18. chitramay..behatreen post...sansamaran padhakar bahut achhaa lagaa.

    ReplyDelete
  19. Sir Ji post me Tasveerein char chand laga rahi hain....

    ReplyDelete
  20. रेल पर पोस्ट लिखी है, किराया अतिरिक्त पड़ जायेगा।:)
    रेलवे प्लेटफार्म को एक बहुत बड़ा सा मुहल्ला मानता हूँ मैं, पता नहीं जीवन के कितने रूप दिख जाते हैं वहाँ पर।

    ReplyDelete
  21. गरिष्ठ लेखन से कोई गुरेज नहीं होना चाहिये। लेकिन यह आपने जो लिखा है, विशुद्ध स्तरीय ब्लॉगरी है। हम तो इसी प्रकार के लेखन पर जिन्दा हैं। :)
    भविष्य में जब आप कभी अपने ब्लॉग का अवलोकन करेंगे तो इस प्रकार की पोस्टें अधिक मनभावन निकलेंगी।
    आपका मोबाइल कैमरा जिन्दाबाद!

    ReplyDelete
  22. सच में हम लोगों के लिए रेलगाड़ी का सफ़र एक अनुभव ही होता है शायद इन्ही अनुभवों से प्रेरित होकर हमारी कुछ फिल्मों में कई गीत भी लिखे गएँ हैं सच ही है की अनायास ही बेकार सी खिची गई फोटो कभी कभी आदमी को सोचने पर मजबूर कर ही देती है सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई

    ReplyDelete
  23. बहुत अच्छा आलेख है :)

    प्रवीण जी के बातों से भी सहमत :)

    ReplyDelete
  24. (इमेल पर प्राप्‍त)
    आदरणीय भाई साहब ,
    आपके ब्लॉग पर अक्सर जाता हूँ. छत्तीसगढ़ राज्य की मांग से सम्बंधित पोस्ट ऐतिहासिक महत्त्व का है , कृतग्य हूँ की आपने इसे उपलब्ध कराया . रेल यात्रा वाली पोस्ट हलके फुल्के अंदाज़ में लिखी गई है तो भी आपके एक व्यंग्य लेखक के रूप में पारी शुरू करने का संकेत सा देती है . फिल्म से सम्बंधित पोस्ट भी उपयोगी है बशर्ते इस क्षेत्र के शोधार्थी उसे आधार बना कर कुछ गंभीर काम करें . कई बार ब्लॉग पर कमेन्ट करने में दिक्कत आ रही थी इस लिए अलग से मेल कर रहा हूँ .
    रामकुमार तिवारी भैया की कहानी कथादेश नवंबर अंक में आई है . मुझे पसंद आई.
    बहरहाल बधाई और शुभकामनायें की आप ऐसे ही उर्जावान बने रहें.

    महेश

    --
    mahesh verma

    sattipara ward
    ambikapur-497001
    dist.-surguja(chhattisgarh)
    mobile-094252 56497
    097136 10339

    ReplyDelete
  25. बहोत अच्छा एबम रोचक आलेख हे.बहोत बहोत धन्यवाद.

    ReplyDelete