Pages

Monday, October 18, 2010

फिल्मी पटना

या कहें- 'पटना : मेमोरीज, ड्रीम्स, रिफ्लेक्शन्स'। पटना, मुझे फिल्मी सा ही याद आता है। कई बार इस तरह सोचना भी भाता है कि पटना नामक फिल्म तो नहीं देख ली, जिसकी स्मृति को कुछ पढ़े-सुने के साथ गड्‌ड-मड्‌ड कर, इसे अपना देखा शहर मान लेता हूं। ... ... शुरू करें-

मैं राजगीर के रास्ते पर हूं। फिर मुझे सीधे दिखाई देता है, रोप-वे। ऐसा कुछ होता है, सुना भी नहीं था, वह अब सिर्फ देख ही नहीं रहा हूं, सवार हो चुका हूं, चारों ओर हरियाली घाटी। ... ... रास्ते में कहीं गरम पानी का सोता और कुंड मिलता है, ऐसा कैसे होता होगा, प्राकृतिक रूप से या पर्यटकों के लिए किया गया इंतजाम है ... ... नालंदा आता है, कितनी सीढ़ियां, कितने कमरे, कितने किस्से। किसने बनवाया, क्यों दबा, कैसे पता लगा, खोदा किस तरह ? सवाल बने रहे, तब तक और क्या सूझे। ... ... पावापुरी, साफ-सुथरा संगमरमरी, चारों ओर खिले कमल से लबालब भरा बड़ा सा तालाब, ऐसा सचमुच होता है? यह जिक्र कर जैन परिचितों के बीच ईर्ष्या का पात्र बनने की सूक्ष्म हिंसा कई बार कर चुका हूं।

यह सब कम फिल्मी नहीं लगा था, याद ताजा थी और तब तक फिल्म आ गई 'जानी मेरा नाम'। इसमें रोप-वे भी दिख गया और नालंदा भी। मेरे लिए यह वह पहली फिल्म थी, जिसमें दिख रही चीजों को फिल्म से पहले आमने-सामने देख चुका हूं। हां, इस फिल्म में ट्रांसमीटर बनाकर दिखाया गया फिलिप्स फिएस्टा ट्रांजिस्टर हमारे घर आ चुका था, यह भेद बूझ लेना और फिर उसी पर '... ... वादा तो निभाया' सुनना, नालंदा और रोप-वे ... ... याद ताजी कर देता था।

बचपन की याद, तब गांधी सेतु नहीं था। वो महेन्द्रू घाट के शीशे वाले रेस्टोरेंट से स्टीमर को आते देखना तो 'जैसा फिल्मों में होता है ... ...' लगा था। यह याद तब और गहरा गई, जब कहीं अविश्वसनीय सा पढ़ा कि अस्सी की आयु पूरी कर चुके बुद्ध, यहां से अंधेरी बरसाती रात में उफनती गंगा, तैर कर दूसरे पाट-हाजीपुर, पहुंचे थे। फिल्म सिद्धार्थ का गीत 'ओ नोदी रे कोथाय तोमार देश ... ...' सुनकर मैं मानता था कि फिल्म में बुद्ध के गंगा पार करने का भी दृश्य होगा। महेन्द्र को संघमित्रा के साथ, अशोक ने यहीं-कहीं से दूर देस के लिए रवाना किया होगा। ... ... किसी पटना जाने वाले से मैंने पूछ लिया था, कहां जा रहे हैं, जवाब मिला था 'बाढ़'। यह गांव का नाम निकला, मुझे पहले अजूबा फिर मजेदार लगा था।

कभी कॉलेज टूर में नेपाल से पटना आना था। काठमांडू घूमते हुए एयरपोर्ट गए और पटना का टिकट पूछा। एस्कर्शन टीम के रूप में कन्सेशन भी मिल गया, भारतीय रुपयों में हिसाब लगाकर देखा तो समाइत में था। इस तरह पहली 'अंतरराष्ट्रीय' हवाई यात्रा कर, हिमालय के ऊपर से उड़ कर अपने वतन में पटना लैण्ड किया। विमान से बाहर निकलते हुए सावधान होकर, मन में पुरानी फिल्मों के आरंभ वाली न्यूजरील की छवि लिए, जिसे हम टेलर कहते थे, जिसमें प्रधानमंत्री अभिवादन में हाथ हिलाते निकलते दिखते थे, मानों खुद को कैमरे की निगाह से देख रहे हों, हम भी धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर कर बाहर आए, ... ... आसमान से उतरे, सपनों से हकीकत में।

पटना के गांधीनाम-सेतु के साथ गांधी मैदान का नाम सुन रखा था। मालूम हुआ कि आगे गांधी मैदान है, उसी तरफ बढ़ चला। घने बसे शहर के बीच अचानक खाली रह गया सा। यह शायद इसलिए और बड़ा लगा कि वहां लोग थोड़े से ही जमा थे। सीधे सुना सकने लायक समूह के सामने भोंपू-फाड़ भाषण हो रहा था। सड़क के बाईं ओर टाकीज में फिल्म थी 'चोर मचाए शोर'। फिल्म के पोस्टर और गांधी मैदान के इस भाषण की छवि जुड़कर ऐसी अंकित हुई कि कोई उत्तेजक भाषण सुनकर यह अनचाहे याद आ जाता है। जैसे टूटी और खुद कर पटी सड़क कहीं भी देखूं, समानार्थी की तरह याद आता है- 'बोरिंग कैनाल'।

शहर देखते हुए उससे पहचान बनाने के लिए गाइड-बुक से ज्यादा लोगों पर निर्भर करना मददगार होता है। जाने-अनजानों के अलावा रिक्शा वाले की निःशुल्क मार्गदर्शक सेवा लेना, उसे सारथी सम्मान देने के साथ किफायती और फायदे का सौदा लगता है। मुझे पटना के साथ भी ऐसा प्रयोग करने के कई अवसर मिले। वैसे इस समझदारी के चलते कई बार वांछित तक पहुंचने में दुगुना समय लगा है, बावजूद इसके, यह आदत बदलना मुझे अस्मिता का सवाल लगने लगता है।

सितंबर-अक्टूबर महीना। पटना में पुराना कुछ कहां देखा जा सकता है, पुराना यानि पुरातात्विक ..., पाटलिपुत्र ..., सड़क किनारे दो-तीन पढ़े-लिखे सज्जन थे, उनसे मैंने पूछा, वे मुखातिब हुए मेरे रिक्शा वाले से और अच्छी तरह समझाया कि हमें कहां-कहां जाना है। हम पहुंच गए पाटलीपुत्रा कालोनी, लेकिन रास्ते में इतना पानी भरा था कि अंदर नहीं जा सकते। बताया गया कि पॉश कालोनी है, इसलिए इसे छोड़कर आगे बढ़े। अब जिस रास्ते से हम गुजरे, गंगा हमारे दाहिने बह रही थी, ऐसा लग रहा था कि यहां नदी का जल-स्तर सड़क से ऊपर है। रिक्शावाले ने बताया कि हम बुद्धा कालोनी जा रहे हैं। मैंने सोचा कि गंगा-दर्शन हो गए और अब रिक्शा वाले से ही मार्गदर्शन लेना चाहिए।

रिक्शा वाला अब मुझे ले आया, गोलघर। रास्ते में थाना फूलपुर पढ़ा और मैंने अपने संचित सूचना का सहारा ले कर माना कि मैंने पुष्पपुर देख लिया है। 'देखा', दर्ज कर लेने जितना देखकर अपनी ठांव मिली 'केपी जायसवाल संस्थान' और पटना संग्रहालय। इतने सब के बाद यक्षी वाला दीदारगंज, कुम्हरार देखने और अगम कुंआ में सिक्का डाल कर गहराई नापने की चाह, अगली बार के लिए मुल्तवी हो गया। 'मारे गए गुलफाम' का 'तीसरी कसम' बन जाना कितना फिल्मी, कितना असली, जुगाली के लिए बचा लेता हूं।

शाम को पैदल भटकते लौटते हुए दुर्गा पूजा की रौनक और धूम से शहर कल्पना-लोक में बदल गया लग रहा है। लगा कि पटना-कलकत्ता के सांस्कृतिक रिश्ते पूजा, विदेसिया और शौकीन मारवाड़ी रईसों में सबसे सहज प्रकट है। पटना से जुड़े तीन परिचितों- शशि शेखर, संजय रंजन और सुरेश पांडे जी, को याद करता हूं-

पांडे जी रायपुर में और संजय रंजन बिलासपुर आकाशवाणी में रहे। ... ... पुस्तकालयों की सदस्यता लेते हुए मेरा उत्साह ऐसा होता कि अवाप्ति क्रमांक १ से पढ़ना शुरू करूंगा, उस दौरान अपने हमउम्रों में इतना कुछ पढ़े बिरले मिले और जिनके कारण हमारे लिए 'आकाश-वाणी', आपस की बात जैसी आत्मीय हो गई। ... ... बीस-पचीस साल पहले अभियंता शशिशेखर का साथ रहा। उग्र हुए बिना दृढ़ और कर्तव्यनिष्ठ, मध्यप्रदेश सरकार में मुलाजिम रहे युवा शशि ने हमेशा अपने ढंग से ही काम किया। ठंडी और सपाट विनम्रता, दबंगों पर कितनी आसानी से भारी पड़ती है, प्रत्येक अवसर पर साबित करने वाले। सिर्फ कंकड़ बाग याद है और कोई पता नहीं, कैसे तलाश करूं।

... ... वैसे गंगा, मेरे लिए नदी के पर्याय जैसा शब्द है। मन के किसी तल पर हमारे अपने निजी शब्द-संदर्भ कोश भी होते हैं, जो कभी धारणा, कभी रूढ़ि तो कभी पूर्वग्रह लगते हैं, ... ... और 'लिंक' के बिना असम्बद्ध जैसे भी। शायद यही रचनात्मक रूप में कभी भाव-ऋचा और स्पर्श-वास्तु बन कर उजागर होते हैं ... ... खैर, कुछ अपने काम के सिलसिले में और कभी अपने शौक के चलते नदियों के किनारे, उद्गम, संगम और मुहाने पर भटकते रहने से मन अभी भी नहीं भरा है, सोच कर ही रोमांच होने लगता है। गंगा के लिए क्या कहूं, फिल्मी गीत है 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' मेरी ओर से संकल्प नहीं, बस भाव-पियरी।

टीप :

टिप्पणी करते हुए अपनी 'विद्वत्ता' निभा लेना बहुत कठिन नहीं होता। कहते हैं, किसी विषय पर जानना हो तो उस पर लेख लिखें, (इसके लिए पढ़ना पड़ेगा और) आपका काम बन जाएगा। ... ... अगर बिना पढ़े ही कुछ अधिक लिखना हो तो, (लेखक-कवि गण अन्यथा न लें) अधिकतर अपनी क्षीण-सी साहित्यिक 'प्रतिभा' पर भरोसा ही साथ देता है और कई बार तो मुझ जैसे को भी कविता टाइप कुछ-कुछ सूझने लगता है। ... ... बात का खुलासा, कभी सतीश सत्यार्थी जी की पोस्ट पर टिप्पणी करते पटना याद आया। राजू रंजन जी की 'गंगा, गंगा-स्नान और भारतीय संस्कृति' की मेरी टिप्पणी पर उन्होंने कहा कि इस विषय (गंगा) पर मेरे पास जो कुछ है, उसे लिखूं। इस मुश्किल का हल सूझा कि अपनी टिप्पणी के अगल-बगल भटक कर राह तलाश करूं। इस तरह गंगा के पास से गुजरते, अपना विद्वत्ता-भ्रम सुरक्षित रखते, राजू जी के सदाशय-सुझाव का अनुपालन संभव होगा। ... ... आकाशवाणी से फरमाइशी फिल्मी नग्मे।

'फिल्मी' इस पोस्ट में कोई चित्र नहीं है। तस्वीरें, कई बार लगता है कि कल्पना को दिशा देते हुए, उसे सीमित करने लगती हैं, रंगों को फीका कर देती हैं। ... ... संदर्भ तलाशने के दबाव से मुक्त रह कर कुछ लिखने का इरादा होता था, डायरी जैसा, सो यह उपयुक्त लगा। ... ... पटना से संबंधित बृजकिशोर प्रसाद जी ने इसे पढ़ा, पोस्ट के लायक माना, उनका भी आभार।

(पटना साहिब, बाबा मुराद शाह, दानापुर, बेउर, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, दिनकर, शत्रुघन सिन्हा और अफीम वाली चटाई के साथ यादों की छान-बीन में कुछ और मिल सका तो वह सब किसी अगली पोस्ट के लिए)

54 comments:

  1. Historical Travelogues has a charm of their own. And when Mr. Rahul Singh adds his wit and sarcasm, its a treat.
    Personally I was disappointed at last paragraph where the visual imagery is accused. Indeed words emphasize our own worlds but images can help with direction. For example, I have never been to Patna. Would have loved to see a glimpse of the place called Badh, etc.
    A worthy read and will be looking for more travelogues on this space.

    ReplyDelete
  2. पटना केवल एक ही बार जाना हुआ है। एक राष्‍ट्रीय पुस्‍तक मेला लगा था गांधी मैदान में। शायद 2000 के आसपास की बात है। पास में वहीं गंगा बहती है। यह याद है। हाजीपुर में एक कवि‍ मित्र राजनारायण चौधरी से मिलने गया था सो शायद गांधी सेतु पार करके ही जाना पड़ा था। बहरहाल फिल्‍मी पटना, पटना की सैर तो कराता ही है। यह संयोग ही है कि होशंगाबाद के पिपरिया कस्‍बे के हमारे एक साथी नरेन्‍द्र ने- जो पिछले बीस-पच्‍चीस सालों से दिल्‍ली में हैं - दो चार दिन पहले ही अपना एक ब्‍लाग बनाया है सुमरनी, उस पर उन्‍होंने पिपरिया को कुछ इसी तरह याद किया है। वह भी मैंने आज ही पढ़ा।
    यह भी आपने सही कहा कि फोटो थोड़ा रंग तो फीका कर ही देते हैं।

    ReplyDelete
  3. अच्छा लगा आपके साथ घूमना । शब्द शक्ति - अभिव्यक्ति ने चित्रों की आवश्यकता को भुला दिया था , जरूरत नहीं है जहाँ अभिव्यक्ति ही प्रवाहमान हो । शुभ कामनायें । -आशुतोष मिश्र ।

    ReplyDelete
  4. अत्यंत मनमोहक वृत्तांत. मै गौरव घोष जी का समर्थन करूँगा.

    ReplyDelete
  5. ... बेहद संजीदगी पूर्ण ढंग से अभिव्यक्ति की गई है शब्दों व भावों का समावेश बेहद गहन व सशक्त है ... एक प्रभावशाली व प्रसंशनीय पोस्ट !!!

    ReplyDelete
  6. पटना मैं दो साल रहा हूँ. गंगा किनारे बैठ के उसकी लहरों को देर तक देखना प्रिय शगल रहा और एकांत शेयर करने का माध्यम भी. पटना के विवरण में आपके इस शहर के प्रति प्रेम का पता लगता है.

    ReplyDelete
  7. अत्यंत ही सरल तरीके से कहा गया यात्रा वृतांत .......बहुत ही प्रभावित कर देने वाला ऐसा लगता है मनों आपके साथ साथ मैं भी पटना घूम रहा हूँ गंगा तो सचमुच ही अत्यंत पर्व्कारी है फिर चाहे वह गंगोत्री में हो या पुरे हिंदुस्तान में कही भी उसे प्रणाम करके ही लगता है मानो सरे पाप धुल गए

    ReplyDelete
  8. उम्दा यात्रा वृतांत है भाई साहब
    लेकिन पटना की एक चीज भूल रहे हैं
    वे हैं स्टेशन पर तु्लसी दल की आचमनी ले्कर घुमते पंडे।
    बस हाथ बढाया नहीं कि.............:)

    ReplyDelete
  9. सर आपने तो हमारी कई बार पहलेजा घाट से पनिया जहाज (स्टीमर) से महेन्द्रू घाट के सफ़र की याद ताज़ा करा दी। कितना मगरम्च्छ होता था गंगा मैया की गोद में। अब तो पाट भी उतना चौरा नहीं रहा।
    लिखिए सर नीचे जितने स्थान दिए हैं सब लिखिए। कुम्हरार भी, सोनपुर मेला भी।

    ReplyDelete
  10. पटना और राजगीर की यादें ताजा कर दीं।

    ReplyDelete
  11. मन के किसी तल पर हमारे अपने निजी शब्द-संदर्भ कोश भी होते हैं, जो कभी धारणा, कभी रूढ़ि तो कभी पूर्वग्रह लगते हैं, ..... और 'लिंक' के बिना असम्बद्ध जैसे भी। शायद यही रचनात्मक रूप में कभी भाव-ऋचा और स्पर्श-वास्तु बन कर उजागर होते हैं ...
    Patna ka to aapne aisa shabd chitr kheencha hai ki film sa hee lagta hai filmi( natkeey) nahee .

    ReplyDelete
  12. आप खुद तो नपे तुले अंदाज़ में घूम रहे थे पर मैं भटक गया ! ज़रूर आपके शब्दों के पार्श्व में बसी फीलिंग्स इसके लिए ज़िम्मेदार रही होंगी ! सोचता हूं यथार्थ और आभास के जीवन की दरम्यानी लक्ष्मण रेखा साफ़ साफ़ नज़र क्यों नहीं आती ? दरअसल मेरा भटकाव पटना को सेल्यूलाइड से जोड़ते हुए ही शुरू हुआ ...शायद आपने भी कभी पत्नी के साथ कोई फिल्म देखते हुए खुद को स्क्रीन पर मौजूद पाया हो और उन लम्हों में पत्नी यथार्थ होकर भी बाजू में पड़ी रह गईं हों ! तब आभास और यथार्थ के साथ साथ जीनें का जो सुख उस वक़्त भोगा गया होगा लगभग वही आपकी पोस्ट में अपनी खुशबू बिखेर रहा है !
    ऐसा लगता है कि आप महेंद्र और संघमित्रा की पाटलिपुत्र और राजकपूर की तीसरी कसम के साथ एक खुद की पटना भी देख / जी पा रहे हैं ! आपका संस्मरण / आपका तिलस्म / आपका यात्रा वृत्तांत फिल्म चोर मचाये शोर की उम्र का होते हुए भी वक़्त के बंधन में नहीं है वर्ना महेंद्र और राजकपूर और ...राहुल सिंह जी को एक साथ कहाँ होना था ?
    सच कहूं तो आप तो सब कुछ सहजता से बयान कर आगे बढ़ गये पर मैं अब भी पटना के यथार्थ और आभास की भूल भुलैयों में हूं !

    ReplyDelete
  13. अद्भुत!शानदार!
    पटना पर इतना सुन्दर यात्रा वृत्तान्त पहली बार पढ़ रही हूँ. वाकई किसी फिल्म या परिकथा जैसा लगता है. शायद जिस पटना में हम रहे थे वो आपके वाले से थोड़ा अलग था. हाँ पाटलिपुत्र में पानी हमारे घर के सामने भी लगा रहता था. मुझे पटना का संग्रहालय भी बहुत अच्छा लगता था, और उससे अच्छा था उसके सामने मिलने वाला सिलाव खाजा जो उस समय मेरी पसंदीदा मीठा रहा था.

    ReplyDelete
  14. ओह ! पूजा की अनुशंषा पर यहाँ आया और हुलस कर पढ़ा भी लेकिन निराश हुआ !

    अरे ! आपको तो इसे किश्तों में निपटा दिया.. यह गलत हुआ... इतने जल्दी में भला कैसे निपट सकता है, गोलघर, गाँधी मैदान, संग्रहालय, बोरिंग रोड, पाटलिपुत्र और मोहन स्वीट :) आपने तो एक एक पैरे में निपटा दिया सबको ): यह ठीक नहीं हुआ

    एल सी टी घाट पर जंग खाई लोहे की बड़ी नाव देखी? और राजेंद्र घाट पर पीपल का पेड़... गंगा के उस पार सरसों में फूल खिले हुए देखे ? कुर्जी की दीवारों पर देना, आम्रपाली और अल्पना सिनेमा हॉल में लगे फिल्मों के पोस्टर देखे ? दीघा से सब्जी खरीदी ? छठ पूजा का जिक्र नहीं किया, क्यों ?

    ओह मैं आपको कुछ बता नहीं सकता, आप बड़े हैं... ना ही मेरी बातों को गलत तरीके से लें... इस बहाने आपकी पोस्ट को बढ़ा रहा हूँ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया, हमारी उँगलियों से काम लेने का :)

    ReplyDelete
  15. विमान से बाहर निकलते हुए सावधान होकर, मानों खुद को कैमरे की निगाह से देख रहे हों, धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर कर बाहर आए, ..... आसमान से उतरे, सपनों से हकीकत में।

    यह बेहतरीन है.

    ReplyDelete
  16. .

    सुन्दर यात्रा वृत्तान्त !

    .

    ReplyDelete
  17. पटना, बिहार के बारे में आत्मीय लिखने के लिए आपको बधाई .

    ReplyDelete
  18. पटना अब तक में एक ही बार गयी हूँ. कई मित्र है पटना के, उनसे भी बहुत सुना है पटना के बारे में. मगर आपके इस पोस्ट से पटना देखने का मन होने लगा है. देखते है! शायद कभी कोई कम वहाँ निकल जाएँ!.

    ReplyDelete
  19. सागर जी ने पटना का एक और चित्र खींचा है ,बल्कि खाका बनाया है ,आशा है वे आगे पूरा करेंगे ,अन्यथा ब्लागर के माथे अपनी अपेक्षा थोपते दिखेंगे .पटना का एक चेहरा तब भी कोचिंग का हुआ करता था, वासिम साहब , कंठ साहब ,हेमंत भाई ,इम्तियाज़ साहब ,स्व. विजय कुमार ठाकुर ....दिल्ली से भी प्रतियोगी आ जाते थे .बिहार लोक सेवा आयोग आकांक्षाओं का केंद्र था,और उस से एक बिल्डिंग आगे अभिलेखागार , वापस आते हुए हरताली चौक , पटना की यादें तो काफी लम्बी होनी हैं

    ReplyDelete
  20. बहुत अच्छी और सच्ची यात्रा वृतांत...

    ReplyDelete
  21. उ काहे ना बिहार के नाम से हमरा मानसपटलवा म लालू की छवि पर था, खैर
    धारणा बदल गवा जब आपने बैठे बिठाए कराई दिहै फिल्‍मी पटना के सैर

    रोचक ई-यात्रा वृतांत..साभार

    ReplyDelete
  22. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  23. Nice Post..... Patna, Barh, Baktiyarpur aur Ganga Maiya ki yaad taza karr di....

    ReplyDelete
  24. पटना की घटना अच्छी लगी .आभार

    ***** आप 22 अक्टूबर को न्यू सर्किट हॉउस में 'सुशासन से अन्त्योदय ' संगोष्ठी में शाम 5 बजे आमंत्रित है

    ReplyDelete
  25. पटना के साथ-साथ आपने तो राजगीर, नालंदा...सबकी याद दिला दी.

    आपकी नज़रों से समग्रता में पटना को देखना एक अलग अहसास दिला गया.

    ReplyDelete
  26. patna..raajgeer our naalanda.....bahut badhiya yaatra vritant....aabhaar.

    ReplyDelete
  27. बहुत सुन्दरता से आपने यात्रा का वर्णन किया है! बेहद पसंद आया! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  28. मेरा शहर, मेरी मातृभूमि और वह शहर जहाँ की ज़मीन में मैं आख़िरी साँस लेना चाह्ता हूँ ताकि उसी ज़मीन में मिल जाऊँ जहाँ मेरे बुज़ुर्गों की मिट्टी है. आपकी पूरी पोस्ट मेरे लिये एक ट्रेलर की तरह थी, फिल्म नहीं कहूँगा.. और शायद आप भी मेरी बात से सहमत होंगे. नॉस्टेल्जिक कर दिया आपने! गाँधी मैदान, रीजेंट और एलिफिंस्टन सिनेमा और क्या कहूँ. पूरी एक पोस्ट लिखनी है मुझे भी! पर लिख नहीं पाता.

    ReplyDelete
  29. आप तो लिखकर शायद फ़्रारिग हो गये, हम अब भी उन सब जगहों पर घूम रहे हैं, जहाँ आजतक नहीं गये लेकिन सब जानी पहचानी लग रही हैं। कमाल का प्रवाह है आपकी कलम में।
    आभार स्वीकार करें और सागर की रिक्वेस्ट(आप बड़े हैं) का मान करते हुये कभी इसे और विस्तार से लिखें तो आनण्ददायक रहेगा हम सबके लिये।

    ReplyDelete
  30. आपने जिस तरह से डूब कर अपने महसूसे हुए को लिखा है वह पढ़ने वाले को भी उतना ही डूबा दे रहा है। अद्भुत शैली।

    ReplyDelete
  31. It was really a great and proud reading. Definetely the top of mind recall cahnges after reading this article for Patna. My childhood memories associated with Patna are the 'tring - tring' of rickshaw where the bells are attached to the front wheel and it rings as soon as we apply breks while cycling, 'pan' from Mauyra Lok shoppping complex, zintan (peppermint mouth freshner)from quality corner, KHAJA & MORABBA and last but not the least Hanuman Mandir near railway station and its besan ladoo.

    Thanks for the beautiful article .....

    ReplyDelete
  32. It is a nice bolg.it reminds me about my two years old archaeological training tour to Patna and its nearby aras.Thanx a lot.

    ReplyDelete
  33. वाह सिंह साहब...इतना रोचक यात्रा वृत्तांत...अद्भुत,एक-एक वाक्य के साथ एक-एक दृश्य का चित्र मन में चित्रित होता चला गया।
    इस एक वाक्य ने तो मन मोह लिया..‘‘ठंडी और सपाट विनम्रता, दबंगों पर कितनी भारी पड़ती है‘‘ इस एक पंक्ति में सौ कविताएं कुरबान...आभार स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  34. सिंह साहब कभी पटना तो नही गया, लेकिन आप का लेख पढ कर ऎसा लगा जेसे कोई बहुत समय बाद घर लोटा हो ओर फ़िर बचपन की सभी बातो को याद कर रहा हो उत्सुकता से, बिलकुल छोटे बच्चे की तरह से बहुत प्यार से उन सब बातो को. बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद इस अति सुंदर यादो भरे लेख के लिये

    ReplyDelete
  35. पढ़ तो पहले ही दिन लिया था पर टिप्पणी में थोड़ी देर हो गयी..
    इस रोमांचक यात्रा पर ले चलने के लिए आपका ह्रदय से आभार..
    घर की ढेर सारी यादें ताज़ा हो गयी.
    एक अनुरोध है आपसे... लेखों के बीच का समय अंतराल थोड़ा कम करें...

    ReplyDelete
  36. पटना मैंने कभी देखा तो नहीं, लेकिन आपकी इस पोस्ट के माध्यम से पटना देखा। जो शब्द चित्र आपने खींचा है वह वाकई काबिले तारीफ है। फिल्म के साथ साथ सफर और उसपर बिहार की अजग गजब दुनिया। बधाई।

    ReplyDelete
  37. टी वी /फिल्मों के अलावा पटना कभी देखा नहीं.
    आप ने लिखा-'किसी विषय पर जानना हो तो उस पर लेख लिखें'--
    मैं बिलकुल सहमत हूँ.
    मैंने नालंदा और गोलघर पर लेख लिखा था तब बहुत कुछ जाना इस जगह के बारे में .

    ReplyDelete
  38. Hi,
    पटना में रहना तो नहीं हुआ कभी पर आपका पोस्ट पढ़कर मज़ा आ गया और कुछ यादें ताज़ा हो गयीं |

    ReplyDelete
  39. सर, काफी दिनों से सोच के रखा था की पोस्ट पढूंगा,..लेकिन फिर भूल गया...आज जब पढ़ने का इरादा किया तो दिल दिमाग में एक नयी ताजगी सी आ गयी...
    पटना, मेरा शहर वो शहर है जिसे मैं बेइंतहा मिस करता हूँ..
    बहुत ही शानदार रही ये पोस्ट..

    थैंक्स :)

    ReplyDelete
  40. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  41. आदरणीय राहुल जी,सादर प्रणाम.
    सर आपका संस्मरणात्मक लेख "फ़िल्मी पटना "पढ़ा .पढ़कर वो सारी घटनाएँ जेहन में ताजा हो गई जो बस से बोधगया जाते समय 1975 में नज़रों के सामने से गुजरी थी .वाकई मेरे लिए तो आपका यह लेख चलचित्र जैसा ही है .मकानों और आबादी के सिवा कुछ भी तो नहीं बदला है.ट्रेन से उतरकर पहलेजा घाट में जहाज पकड़ना और गंगा की गोदी में सवार होकर उसपार महेन्द्रू घाट पर उतरना.आपका लेखन किसी के भी अपने मन की बात सी लगती है जो उन राहों से गुजरा है. ऐतिहासिकता से भरपूर जीवंत लेखन से रूबरू कराने के लिए आभार.

    ReplyDelete
  42. RKS Sir! I had opened my computer to edit a film of mine at about 10.30 pm but I mistook to open your blog post and went on reading the FILMY PATNA, MADHAV RAO SAPREY, DINESH NAG, VIJAYDAN DETHA'S SAPAN PRIYA NAYA PURANA SAAL etc. even along with the comments. AND now I have to go to bed without touching the film editing as it's 1.30am. So this the power of your writing . . . B.R.Sahu

    ReplyDelete
  43. बहुत रोचक पोस्ट है.इसका लिंक देने के लिए धन्यवाद.
    माधुरी फिल्म पत्रिका की याद तो होगी आपको. उसमें बहुत स्तरीय लेख छपते थे. आपकी पोस्ट पढ़कर उनकी याद आ गयी.
    पटना से यह भी याद आ गया किस तरह शैलेन्द्र ने रेणु की कहानी पर 'तीसरी कसम' बनाना शुरू किया और फिल्म किस तरह उन्हें डुबोती चली गयी. आपकी पोस्ट से उस कहानी का शीर्षक भी मिल गया.
    आपकी शैली लाजवाब है. यह तय करना मुश्किल हो जाता है की आपकी पोस्ट का मूल स्वर क्या हो गया है. कई सुरों की सरगम जैसी गूंजती है पोस्ट.

    ReplyDelete
  44. main patna menhi rahti hun.aapki yatra vritant ki sajeevta ko pramanit karti hun .....sachmuch kuchh khas hai.....ye patna aur nalanda...rajgir bhi.

    ReplyDelete
  45. ये लीजिये! कभी कभी मुलाक़ात कितनी देर से होती है? चलिए अब देर से ही सही, बस दुरुस्त रहे :) पटना और आकाशवाणी ये दोनों ही मेरे घर जैसे हैं :) १८ बरस की उम्र से लेकर अब तक आकाशवाणी से जुड़ी हूं, लगभग इसी उम्र में पटना से भी जुड़ी. बहुत सुन्दर संस्मरण. एक एक गली याद आ गई पटना की.

    ReplyDelete
  46. मुझे तो लगता है कि मैं पटना में इतनी जगह नहीं गया और न इतना लिखता। जबकि पिछले 5-6 साल से यहीं हूँ। हाँ कैनाल रोड का नाम अंग्रेजों ने कैनाल रोड रखा था और अभी भी वही है लेकिन अब पूरी तरह ठीक है। कंकड़बाग आज भी पानि के लिए ठहरने की अच्छी जगह या कहिए टंकी बना हुआ है।


    लेकिन आपने लिखा अच्छा और यह वाक्य " तस्वीरें, कई बार लगता है कि कल्पना को दिशा देते हुए, उसे सीमित करने लगती हैं, रंगों को फीका कर देती हैं। ." सबसे ज्यादा शानदार लगा। मैं सब कुछ समझ तो नहीं सका लेकिन शायद फिर पढ़ूँ तो समझ में आ जाए।

    ReplyDelete
  47. पानी की जगह पानि लिखा गया, सुधार कर पढ़ेंगे।

    ReplyDelete
  48. पटना में रिक्शे वालों से अच्छा गाइड नहीं हो सकता। कई जगहें अभी देखनी बाकी है - कुछ देख आया हूँ। गजब का फ्लो है आपके 'फिल्मी पटना' में। इसे शेयर करने के लिए धन्यवाद।

    ReplyDelete
  49. Asking questions are in fact pleasant thing if you are not understanding anything fully, however this post gives nice understanding yet.


    Here is my page cam portal

    ReplyDelete
  50. पटना घूम लिए आपके साथ , पुरानी यादों में भी लौटे

    ReplyDelete
  51. सादर आभार आपका।

    ReplyDelete