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Thursday, March 20, 2025

सुरेन्द्र परिहार का पत्र 19-5-1987

सुरेन्द्र परिहार सर, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग (यूटीडी) मैं मैं उनका/ यूटीडी का विद्यार्थी नहीं रहा, मगर पुस्तकालय और परिचितों के कारण, (1976-1981) लगभग प्रतिदिन 3 नंबर सिटी बस से वहां जाता था। (कहा जाता था कि जो यूटीडी में नहीं पढ़ा, उसकी आधी जिंदगी बेकार और जिसने वहां पढ़ाई कर ली उसकी पूरी...!🙂) समाजशास्त्र के इंद्रदेव सर, भाषा विज्ञान के रमेशचंद्र मेहरोत्रा सर, भूगोल के पीसी अग्रवाल सर किसी भी विद्यार्थी की जिज्ञासा समाधान के लिए सहज तैसार हो जाते। परिहार सर की बात निराली थी, कोई भी जिज्ञासु कभी भी उनसे मिलने उनके निवास पर जा सकता था (वे आजन्म अविवाहित रहे), वहां चाय भी मिल जाती थी, पुस्तक पढ़ने को ले सकते थे, लाइब्रेरी से किताब चाहिए और विद्यार्थी को न मिल पा रही हो (मैं उस लाइब्रेरी की सदस्य नहीं था, रीडिंग रूम की सुविधा ले लेता था और बाद में जान-पहचान हो जाने के कारण शोध-संदर्भ खंड में भी जा सकता था।), तो अपने खाते से निकलवा कर देते थे।

विश्वविद्यालयीन पढ़ाई के बाद भी उनके जीवन भर, उनसे मेरा संपर्क बना रहा, जिज्ञासुओं के प्रति उनके रवैये के बारे में उनसे परिचित सभी भलीभांति जानते हैं, जो अपरिचित हैं, इस पत्र से अनुमान कर सकते हैं- 

प्रिय राहुल, 

आपका 10 मई का पत्र एक सुखद अचरज रहा। इस बीच आपसे एक अर्से से मुलाकात नहीं हो पाई। यह जानकर मुझे बड़ा अच्छा लगा कि आप पुरातत्व विभाग में काम कर रहे हैं और अध्ययन और शोध में अपनी रुचि बराबर बना कर रखते हैं। 

आपने आदिम धर्म पर इस बीच परियोजना के लिये एक लेख लिखा है - यह सुखद सूचना है मानव विज्ञान में आदिम और आधुनिक धर्म दोनों पर मानव शास्त्री काफी लम्बे समय से काम कर रहे हैं और धर्म की मान्यताओं और विकास के सम्बंध में काफी बहसें चालती रहती है। एक महत्वपूर्ण प्रश्न मानवशास्त्रियों ने यह उठाया कि मानव कि धर्म समाज में क्या काम करता है? आदिम अथवा आधुनिक समाज में उसकी क्या उपादेयता है? क्या तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के कारण वह अपनी जगह खो चुका है? धर्म के क्षेत्र में होने वाली सभी बहसों में आपको मार्क्स के विचारों को अवश्य पढ़ना चाहिये। धर्म के विकास और उपादेयता पर मार्क्स और एंगेल्स ने यह कह कर बहुत गर्मी पैदा कर दी कि ‘‘धर्म जनता का अफीम है‘‘। मैं मार्क्स के विचारों से सहमत नहीं पर इस क्षेत्र में मावर्स को प्रतिभाशाली अवश्य मानता हूं। किसी अच्छी बहस की शुरुआत मार्क्स से की जानी चाहिए।

आदिम धर्म के क्षेत्र में हमारे विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में काफी साहित्य - समाजशास्त्र और मानवशास्त्र दोनों ही विषयों में। आप स्वयं यहां आकर कोई पुस्तक ले सकते हैं अथवा इस बीच यदि मैं बिलासपुर अकलतरा आया तो अपने साथ लेता आउंगा। अच्छा तो होगा यदि अपना वक्त निकाल कर यहां आयें तो काफी बातचीत रहेगी। 

पुरातत्व विभाग इन दिनों छत्तीसगढ़ में खनन का कहां कहां काम चला रहा है? बुद्धकालीन मूर्तियां और अवशेष सिरपुर को छोड़कर और कहां है, कृपया सूचित करें। मैं बिलासपुर आने पर आपके संग्रहालय को अवश्य देखना चाहूंगा।। 

शुभकामनाओं के साथ 
आपका शुभांक्षी 
सुरेन्द्र परिहार 
19/5/187

3 comments:

  1. नमस्कार सर, आदरणीय परिहार सर मेरे गुरु हैं। आज उनका पत्र देखकर युनिवर्सिटी के दिन याद आ गये। उन दिनों जब मैं फील्ड वर्क के लिए आदिवासी क्षेत्र में जाता था तो सर 8-10 पोस्ट कार्ड हाथों में इस हिदायत के साथ देते थे कि हर तीसरे दिन अपने कार्य व अनुभव को लिखकर भेजना।

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  2. आदरणीय राहुल भैया, आपने पत्र के माध्यम से परम आदरणीय परिहार से जीवंत साक्षात्कार करवा दिया। जैसे पत्र दिखा, मैने उसे उसी रूप में पढ़ डाला क्योंकि सर के हैंडराइटिंग को देखना और उसे उसी तरह से मन मश्तिष्क में संभालने का मौका मिला। सर से खूब चर्चाएँ हुई, खूब बहसें हुई।हर बार जीतकर भी जीत गया और हर कर भी जीत गया। जो कुछ भी सीखा, पाया उनकी कृपा से हि, उनकी आशीर्वाद से ही।

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  3. आदरणीय परिहार सर से

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