पूर्वजों के गांव पोंड़ीशंकर और अपने मूल निवास अकलतरा से करीबी गांव, पोंड़ी दल्हा नाम के चलते ‘पोंड़ी‘ के फेर में पड़ा हूं। टोहने-टटोलने की जरूरत न होती, इतनी मशक्कत की गुंजाइश ही कहां, जो भाषाविज्ञान आता, चुटकियों में बात बन जाती। लेकिन किसी खास सहारे बिना भेदने-बूझने की जहमत में ही तो नये रास्ते खुलते हैं।
इस तरह राह चलते किसी पोंड़ी से गुजरता या सुनता, नाम जमा कर लेता, हिसाब लगाया कि कोरिया, सरगुजा, जशपुर, रायगढ, कोरबा़, जांजगीर, बिलासपुर, कवर्धा, राजनांदगांव क्षेत्र, यानि उत्तर-मध्य छत्तीसगढ़ में पोंड़ी नामक गांवों की संख्या लगभग दो कोरी तक है। इनमें पोंड़ी-उपरोड़ा तो है ही, लुंड्रा में उपरपोंड़ी और खालपोंड़ी (खाल या खाल्ह-खाल्हे यानि नीचे) है। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक गांवों के नाम पोड़ी (पोंड़ी के बजाय) उच्चारण वाले हैं। छत्तीसगढ़ से बाहर निकलें तो बगल में चिल्फी घाटी के साथ एक पोंड़ी है फिर हर की पौड़ी और पौड़ी गढ़वाल का नाम किसने नहीं सुना।
पौड़ी या पौरी (ड्योढ़ी) या पोंड़ी अर्थ देता है दहलीज का यानि उदुम्बर (जिसका एक अर्थ दो तोले की तौल भी है)। एक करीबी शब्द पौढ़ना है, जिसका तात्पर्य शयन मुद्रा/लेटना या क्षैतिज होना है। उदुम्बर या उडुम्बर यानि गूलर, जिसकी लकड़ी इस काम के लिए इस्तेमाल होती थी। सामान्यतः गूलर की लकड़ी इमारती काम में नहीं आती, लेकिन इस वर्ग में भुंइगूलर (Drooping fig या Ficus semicordata), गूलर (Indian fig या Ficus Glomerata or Ficus racemosa) और खुरदुरे पत्ते वाला कठगूलर (Hairy fig या Ficus hispida) जाने जाते हैं, जिनमें से संभवतः कठगूलर ही इस इमारती काम में इस्तेमाल होता है।
उदुम्बर, शाब्दिक चौखट का वह भाग, जिसके लिए चौखट शब्द रूढ़ हो गया है, जो जमीन पर क्षैतिज टिका होता है। यही देहली और देहरी या छत्तीसगढ़ी में डेहरी (बिहार में डिहरी) हो जाता है। माना जाता है कि गंगा-यमुना दोआबे के मैदान में प्रवेश का दहलीज होने से ही देहली हो कर दिल्ली नाम आया है। उडुम्बर के उ का छत्तीसगढ़ी में लोप होकर बाकी बचे डुम्बर से सीधे डूमर बन जाता है। ड्योढ़ी, (ड्योढ़ा या डेढ़) समतल-एक तल से कुछ अधिक, ऊपर उठा हुआ, अर्थ देता है। जैसे सामान्य से कुछ अधिक होशियार बनने को ‘डेढ़ होशियार‘ कहा जाता है। छत्तीसगढ़ी में डेढ़ का खास प्रयोग रिश्ते के लिए है, डेढ़ साला। पत्नी के छोटे भाई सारा (साला) हैं और बड़े भाई डेढ़ सारा। लेकिन मजेदार कि पत्नी की छोटी बहनें तो सारी होती हैं पर पत्नी से बड़ी बहनें डेढ़ सारी नहीं, बल्कि डेढ़ सास कही जाती हैं।
माना जाता है कि शब्द के मूल की ओर बढ़ते हुए पोंड़ी-पौड़ी-पौरी या पौरि, पउरी (पांव?)-पउली-पओली-प्रतोली से आता है। ‘प्रतोली‘ का अर्थ मिलता है रथ्या, यानि रथ चलें ऐसा मार्ग, चौड़ा, प्रशस्त राजमार्ग, नगर की मुख्य सड़क आदि। लेकिन कुछ अन्य पुराने विवरणों से अनुमान होता है कि प्रतोली का करीबी अर्थ होगा- ऊंचाई लिए, दो-तीन मंजिला, मुख्य प्रवेश द्वार जैसा कुछ। अर्थ की यह ‘भिन्नता‘ अमरकोश और रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र के उद्धरणों में है। आइये देखें, कोई समाहार-समाधान संभव है।
वापस पौरी पर आएं और मूल शब्द के साथ थोड़ी जोड़-तोड़ करें तो प्रतोली में ‘प्र‘ उपसर्ग आगे, सामने का अर्थ देगा और तोली- तुलना, तोलना या तौलना, जिसका अर्थ उठाना, ऊपर करना भी होता है। पौरी के करीबी पोर का अर्थ संधि यानि जोड़ ही होता है और पोल का मतलब छेद होने के कारण यह दीवार के बीच खोले गए दरवाजे के लिए प्रयुक्त होता है जैसे जयपुर का त्रिपोलिया या दूसरे पोल (दरवाजे)। छत्तीसगढ़ी में यही पोल, पोला, पोळा होते पोंडा बन जाता है। इसी तरह पोर, फोर (फूटा हुआ) बनता है, जैसे सरगुजा के रामगढ़ का हथफोर, ऐसी सुरंग जिससे हाथी गुजर जाए।
अब समेटें तो पोंड़ी के प्रतोली का ‘प्र‘ हुआ रास्ता जिसमें ऊपर उठा होने का आशय जुड़ा है, जो रास्ते के बीच बने स्थापत्य (द्वार पर) के साथ ऊंचाई का अर्थ देगा। माना भी गया है- जैसा दक्षिण भारत में ‘गोपुर‘ वैसा उत्तर भारतीय स्थापत्य में ‘प्रतोली‘। और तोलने में ऊपर उठाना तो होता ही है (उत्तोलन), चाहे वह तराजू हो या किसी वस्तु का भार अनुमान करने के लिए उसे हाथ में ले कर ऊपर उठाना। इसके साथ यह ऊंचाई (पहाड़ी) की ओर जाने का मार्ग भी संभव है। अब एक बार फिर से यहां आए शब्दों को दुहरा कर देखिए, इस रास्ते पर चल कर कहां तक पहुंच पाते हैं। यहां कुछ दाएं-बाएं के संकेत भी छोड़े गए हैं, आपके भटकने की पसंद और सुविधा का ध्यान रखते हुए। मेरे पूर्वजों ने पोंड़ीशंकर से अकलतरा तक का रास्ता नापा, और उसके पार है पोंड़ी गांव हो कर, दल्हा पहाड़ पर चढ़ने का रास्ता।
यह पोस्ट, शोध पत्रिका 'ज्ञान प्रवाह' के एक अंक में छपे ए.एल. श्रीवास्तव जी का लेख पढ़कर, बहुत दिनों से मन में खुदबुदा रही बातों का लेखा है।
अनुपम ज्ञान का संग्रह संग्रहणीय
ReplyDeleteइसी तरह पारा, कछार,पर भी आपसे अपेक्षा है सर जी...
Reading of each word in your article,
ReplyDeleteFeeling hanged by any miracle,
अद्भुत। आप तो छत्तीसगढ़ी में "शब्दों का सफर" शुरु कर दें भैया, अजित वडनेरकर भैया के हिंदी वाले "शब्दों के सफर" की तरह।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख।
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी है।
ReplyDeleteindia is great aapke dwara yah likhi hui jankari sach ne bahut acchi h
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय भैया
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