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Tuesday, September 4, 2012

राम-रहीम

''बेगम साहिबा की छींक का कारण था, उनकी जूती के नीचे आ गया मुआ नीबू का छिलका।'' यह भी कहा जाता है कि सर्दी-जुकाम ऐरे गैरों को होता है, लखनवी तहजीब वालों को सीधे नजला होता है। मुस्लिमों के साथ नजाकत-तहजीब, शेरो-शायरी, बिरयानी और जिक्र आता है ताजमहल का। वैसे कई-एक की नजर में ''ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तेजो महालय कहा जाता था।'' चलिए, इसी बहाने हमारी श्रद्धा बनी रहे मानव कौशल के इस नायाब नमूने पर। वैसे भी संरचनाओं का शैलीगत वर्गीकरण हो सकता है, लेकिन ईंट-पत्‍थर को उससे जुड़ी आस्‍था ही हिन्‍दू या मुस्लिम बनाती है और ऐसे दरगाह कम नहीं जो हिन्‍दू श्रद्धा के भी केन्‍द्र हैं।

गुजरात के हजरत सैयद अली मीराँ दातार की दरगाह से पं. जागेश्‍वर प्रसाद तिवारी, चिल्‍ला के साथ ईंट ले कर आए थे और 2 दिसंबर 1967 को शंकर नगर, रायपुर में मीरा दातार स्‍थापित किया। मीरा दातार बाबा के इस स्‍थान पर मूर्ति नहीं है लेकिन हनुमान जी और शंकर जी हैं। तब से यह रायपुर का एक प्रमुख निदान केन्‍द्र रहा, सोमवार और गुरुवार को मुरादियों का मेला लग जाता। 30 अगस्‍त 1990 को पं. तिवारी के निधन के बाद, 10 सितंबर 2010 को श्रीमती महालक्ष्‍मी तिवारी के निधन तक इसका महत्‍व बना रहा।
अब रायपुर में इसके अलावा मीरा दातार का एक अन्‍य दरबार समता कालोनी में है, जहां प्रमुख मुस्लिम महिला हैं, लेकिन महादेव घाट वाला मीरा दातार तिवारी जी के शिष्‍य भोलासिंह ठाकुर के निवास 'मन्‍नत' में है। यहां भी शंकर नगर दरबार की तरह त्रिशूल लगा है। उर्स मुबारक के फ्लैक्‍स में यहां कुरान खानी आदि का उल्‍लेख, गुरुदेव श्री मंशाराम शर्मा जी, चिश्‍ती दादा रमेश वाल्‍यानी जी, सरकार बी.एस. ठाकुर और चन्‍दु देवांगन के नाम सहित है।

रायपुर में अनुपम नगर गणेश मंदिर का निर्माण 
के.ए. अंसारी ने 1985 में कराया और इसके बाद 
श्रीराम नगर फेज-I और II विकसित किया।

रायपुर से 20 किलोमीटर दूर गांव चरौदा-धरसीवां का शिव मंदिर सरपंच बाबू खान साहब की पहल और अगुवाई में, गांव और इलाके भर के श्रमदान से 1970 में बना। धरसीवां से थोड़ी दूर कूंरा उर्फ कुंवरगढ़ गांव में दो संरचनाएं मां कंकालिन मंदिर और मस्जिद एक ही चबूतरे पर साथ-साथ हैं।

कुंवरगढ़ के ही श्री अमीनुल्‍लाह खां लम्‍बे समय से श्री रामलीला मंडली के कर्ता-धर्ता हैं। वे मानस गायन के साथ लीला में मेघनाथ और दशरथ की भूमिका निभाते हैं। धरसीवां और कुंवरगढ़ में हिन्‍दू-मुस्लिम मितानी के भी कई उदाहरण हैं।

कुरुद-धमतरी में स्‍कूली दिनों से मानस की लगन लगाए रामायणी दाउद खान गुरुजी हैं। आपका जन्‍म 25 जुलाई 1923 को हुआ। आपको सालिकराम द्विेदी और पदुमलाल पुन्‍नालाल बख्‍शी का सानिध्‍य प्राप्‍त हुआ। आपके मानस प्रवचन का सिलसिला 1947 से आरंभ हुआ। वे कहते हैं कि नैतिक संस्‍कारों के विकास के लिए रामचरित मानस का अध्‍ययन जरूरी है और ''सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी' मानस का प्रमुख संदेश है।

• कवर्धा-गंडई के साईं फिर्रू खां पुश्‍तैनी भजन गायक हैं।
• हडुवा-घुमका, राजनांदगांव के गीतकार-रामायणी रहीम खां अन्‍जाना जीवन-पर्यन्‍त नाचा, हरि-कीर्तन से जुड़े रहे।
• केनापारा, बैकुंठपुर निवासी बिस्मिल्‍ला खान बचपन से ही रामायण गाते थे। मानस मर्मज्ञ खान साहब ने गांव के बच्‍चों की रामायण मंडली भी बनाई थी और शारदा मानस मंडली से जुड़े रहे। आपका निधन 17 सितंबर 2010 को बनारस में हुआ।
• लाखागढ़, पिथौरा के करीम खान लंबे समय से दशहरा पर रामलीला का संचालन करते आ रहे हैं। नवापारा-राजिम के इकबाल खां युवा पीढ़ी के रामायणी हैं। बैजनाथपारा, रायपुर के एक पुराने कव्‍वाल जनाब सईद की पंक्ति 'श्रीराम जी आ के रावन को मारो' लोग अब भी याद करते हैं और दूसरी तरफ गुढि़यारी के गायक गजानंद तिवारी, छत्‍तीसगढ़ी गीतों को, कव्‍वाली तर्ज में ही गाने के लिए मशहूर रहे हैं।

कंडरका-कुम्‍हारी, दुर्ग के लोकधारा सांस्‍कृतिक मंच के प्रमुख
शेर अली को रामायण गाने की प्रेरणा,
हरि कीर्तन गायक पिता रज्‍जाक अली से मिली।

होठों से फुसफुसाहट, जबान से बोली, कंठ से सुर निकलते हैं,
लेकिन रायपुर आकाशवाणी के लोकप्रिय उद्घोषक मिर्जा मसूद
 ''ॐ'' उचारते तो लगता कि नाभि से निकलने वाली घोष ध्‍वनि है
और जिसे सुनने वाले के दिल की धड़कन बढ़ जाती।

कवर्धा-खरोरा के कवि मीर अली मीर से उनकी चर्चित पंक्तियां
 'जंजीर बोलती थी वंदेमारतम, शमशीर बोलती थी वंदेमातरम्,
कश्‍मीर बोलता है वंदेमातरम्' सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

बिलासपुर के हिदायत अली कमलाकर 
की कृति 'समर्थ राम' और उनका सौहार्द, 
अपने आप में मिसाल है।
 

मोहम्मद खलील अहमद 1974 में बाराबंकी से फरसगांव आए,
सिलाई का काम करते रहे और पूरे इलाके के खलील खालू बन गए।
वे हर उस जगह होते जहां मानस पाठ होता,
खुद मानस गान करने के अलावा हारमोनियम भी बहुत अच्छा बजाते थे।
उन्हें लगभग पूरा मानस कंठस्थ था।
बढ़ी हुई उम्र में अब वे तो मानस पाठ में शामिल नहीं हो पाते
पर स्मृतियों से अब भी भाव-विभोर हो जाते हैं।
(जानकारी के लिए पीयूष कुमार जी का आभार)
 






• छत्‍तीसगढ़ हज कमेटी के चेयनमैन डॉ. सलीम राज ने अयोध्‍या विवाद पर कहा कि 'मुस्लिम समुदाय के पक्ष में भी निर्णय आने पर उस स्‍थल को राम मंदिर के निर्माण के लिए सहृदयतापूर्वक दे देना चाहिए।' हबीब तनवीर के नया थियेटर का अभिवादन 'जय शंकर' तो प्रसिद्ध है ही। होली, दीवाली मनाने वाले मुसलमान मिल ही जाते हैं, नवरात्रि का विधि-विधान पूर्वक कठोर व्रत रखने वाली मुस्लिम महिलाएं भी हैं तो धरसीवां जैसे गांव में रोजा रखने वाले हिन्‍दू भी हैं। मोहर्रम पर ताजिएदारी निभाते हुए बच्‍चों को ताजिए के नीचे से गुजारा जाना आम है, लेकिन अकलतरा में मोहर्रम पर हर साल दुलदुल घोड़े की नाल हमारे घर के पुराने हिस्‍से से निकलती थी।

नारों और नसीहतों से अधिक असरदार, ज्‍यादा जीवंत, सौहार्द-सद्भाव का रस यहां इतनी सहजता से प्रवाहित है कि नजरअंदाज होता रहता है।


  • यह पोस्‍ट रायपुर से प्रकाशित पत्रिका 'इतवारी अखबार' के 23 सितम्‍बर 2012 के अंक में प्रकाशित।

31 comments:

  1. मीरा दातार के बारे में सुना लेकिन कोई जिज्ञासा नहीं हो पाई थी, कई बार आप अद्भुत चीजों के बिल्कुल बगल से गुजर जाते हैं और बाद में एहसास होता है कि आपने क्या मिस कर दिया। सांप्रदायिक सौहार्द्र पर अच्छी रपट

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  2. एक ही रक्त है, यही सद्भाव बना रहे..

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  3. यहीं नज़र आती है हिन्दुस्तान की खाशियत सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा और अनेकता में एकता की खुशबू . कहीं नज़र नहीं आता हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई का अलगाव सब एक रंगों में रंगे दिखते हैं .
    इतनी साडी जानकारी एक साथ सब का सानिध्य सबसे आपका निजी लगाव उनके जीवन का अनछुआ पहलू जो समाज के सौहाद्रता को पल्लवित और पुष्पित करता है .नमन करता हूँ उनके ज़ज्बे संग आपके प्रकाशन के विशालता को .प्रणाम स्वीकारें . अकलतरा अपनी परंपरा में ताजिया निकालता है रामसागर तालाब में विसर्जन और मन्नत के लिए निचे से गुजरना याद है .साथ ही बड़े बखरी अर्थात आपके घर के भोज्हर [ भोज घर] से काम की शुरुवात की जाती है मिशाल है . adbhut post

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    1. आलेख में बहुत सुन्दर जानकारी, वैसी ही टिप्पणी। हो सके तो "शमशीर बोलती थी वंदेमातरम्" यह पूरी कविता की पंक्तियाँ भी ब्लॉग पर लगाइये!

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  4. Bada hee achha laga is aalekh ko padhke.

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  5. नारों और नसीहतों से अधिक असरदार, ज्‍यादा जीवंत, सौहार्द-सद्भाव का रस यहां इतनी सहजता से प्रवाहित है कि नजरअंदाज होता रहता है - सिर्फ यही कह सकता हूँ राहुल जी कि वह धरती और बाशिंदे धन्य हैं|

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  6. हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक एकता के ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं, जो हमारे राजनेताओं या धर्म के ठेकेदारों को नहीं दिखाई नहीं देते. और दिखाई भी देते हैं, तो केवल अधिकारवाद की राजनीति के लिए. हमारे शहर नौगाँव में ही बाबा गुलाबशाह की मज़ार पर रोज़ हिन्दू-मुस्लिम दोनों की बराबर भीड़ जुटती है. उर्स के समय तो देखते ही बनता है. इस मज़ार के मुख्य द्वार पर सभी हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र हैं और सबसे ऊपर देवी दुर्गा की बड़ी सी प्रतिमा है. मुख्य द्वार पर ही मंदिर का घंटा भी लगा है.

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  7. हालांकि जिस कॉलोनी में मैं रहता हूं वहां मीरा दातार है लेकिन मैं असल में कभी समझ नहीं पाया कि मीरा दातार असल में है क्या, क्या होता है वहां।

    बाकी यह पोस्ट बहुत ही सुंदर। हमारे सद्भाव व एका को प्रदर्शित करती हुई।

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  8. .
    .
    .
    "मुस्लिमों के साथ नजाकत-तहजीब, शेरो-शायरी, बिरयानी और जिक्र आता है ताजमहल का। वैसे कई-एक की नजर में ''ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तेजो महालय कहा जाता था।''

    हाँ, यह 'तेजोमहालय' या मुम'ताज' महल वाली बहस अपने ब्लॉगवुड में हमेशा ही चलती रहती है... आप विषय विशेषज्ञ हैं इसलिये आप क्या कहते हैं इस बारे में ?...


    ...

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  9. हिंदू-मुस्लिम एकता के ऐसी मिसालें देश के कोने-कोने में मिल जायेंगी...नफ़रत फैलाने वालों को तो अपनी रोटी सेंकनी होती है... इन सहृदय लोगों के लिए मन में सहज श्रद्धा जगती है..

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  10. धर्म के नाम पर लड़वाने का काम कौन करता है यह जगजाहिर है ....भीष्म साहनी का लिखा तमस याद आ जाता है ...

    बहुत अच्छी जानकारी देती पोस्ट

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  11. जै जै !
    अद्भुत. अनुकरणीय !

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  12. वाह !

    नेता जी को पता लगने दीजिये
    लेख पर बैन लगा दिया जायेगा
    मिलावट धर्मो की एक जगह की है
    कह के अंदर कर दिया जायेगा !

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  13. मज़हब नही सिखाता आपस में बैर रखना ।

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  14. सिंह साहब, दिलो में भले ही लाख दरारे हो, इंसानियत कभी भी ख़त्म नहीं होती!

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  15. इनकी आवाजें भी अगर उपलब्ध करवाते तो और मजा आ जाता ।

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  16. अयोध्या का मंदिर विवाद जब चरम पर था उस पर एक प्रगतिशील लेखक ने एक अनमोल बात कही थी कि-यदि मुस्लिम मानते है कि वह एक मस्जिद है तो उन्हें तो खुश होना चाहिए कि हजारों हिन्दुओं का मस्तक उनके खुदा के सामने सज़दे में झुकता है और यदि हिन्दू उसे मंदिर मानते है तो उन्हें यह देख कर खुश होना चाहिए कि उनके ईश्वर कि इबादत में मुसलमान अपना सर झुकाते हैं

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  17. सौहार्द-सद्भाव का रस...राम-रहीम
    राम और रहीम में भेद मानने वाले मानवों की श्रेणी में नहीं आते हैं, वें मानव जैसे दिखते जरूर हैं पर होते नहीं। वही लोग सद्भावना के प्रतिमूर्तिओं के प्रदेंश में संप्रदायिक दंगे भड़का रहे है। मजहब, धर्म और क्षेत्रियता के नाम पर दंगा करने वाले शायद संवदेनाहिन कोख की उपज हैं।

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  18. तेजो महालय का मुद्दा विश्व हिन्दू परिषद के अजण्डे में आ ही जायेगा बरास्ते हिन्दी ब्लॉगजगत! :-)

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  19. मुझे याद आ गए "चचा" जो मेरे पिताजी के दोस्त हैं .. ...बिना काम के रोज घर आते रहे बिना नागा किये ...पिताजी के काम में व्यस्त होने या घर पर न रहने पर भी ...और आज भी पिताजी के देहांत के १२ साल बाद भी दशहरा मिलन के लिए घर आते हैं ...और केले लाना नहीं भूलते हम सबके लिए...

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  20. बहुत अच्छा लगा.

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  21. मैं भी बस श्रद्धावश शीश ही झुका पाऊँगा

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  22. वाह ? मै अचम्भित हूं लेकिन अभी भी सशंकित हूं कि ना तो मुठठी भर लोगो के कारण सबको कटटरपंथी कहा जा सकता है ना ही सभी को उदारवादी

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  23. यह सब तो अच्छा है पर अच्छा चलते-चलते जो गड़बड़ हो जाता है वह भी ठीक हो,तब बात बने !

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  24. इस बार नए पोस्ट मे विलम्ब होता लग रहा है ...

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  25. बहुत बढ़िया सिलसिलेवार जानकारी के लिए आपका धन्यवाद, ये कुछ कट्टरपंथियों और नेताओ की करतूत है वरना आम इंसान कभी फ़सादाद नहीं चाहता ।

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  26. सिंह साहब,
    ऐसी जानकारी को सामने लाने की आज बहुत ज़रूरत है, साधुवाद....

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