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Friday, April 20, 2012

कोरबा

रत्नगर्भा धरा के कोष में अनमोल प्राकृतिक खजाना छुपा हुआ है, जो उजागर होकर हमें चमत्कृत और अभिभूत कर देता है। इसका आकर्षण, ऐसे सभी केन्द्रों पर मानव के लिये प्रबल साबित होता है, जैसा कोरबा और उसके चतुर्दिक क्षेत्र में दृष्टिगोचर है। यह भूमि इतिहास के प्रत्येक चरण में मानव जाति की क्रीड़ा भूमि रही है। यह क्षेत्र नैसर्गिक सम्पदा से परिपूर्ण रहा है। हसदेव के सुरम्य और तीक्ष्ण प्रवाह से सिंचित तथा सघन वनाच्छादित उपत्यकाओं से परिवेष्टित यह भूभाग आदि मानवों द्वारा संचारित रहा हैं इसके प्रमाण स्वरूप हसदेव लघु पाषाण उपकरण प्राप्त होते हैं, और कोरबा से संलग्न रायगढ़ जिले का सीमावर्ती क्षेत्र तो मानो आदि मानवों का महानगर ही था। आदि मानवों को विभिन्न गतिविधियों के प्रमाण इस क्षेत्र में सुरक्षित हैं। इसी पृष्ठभूमि पर ऐतिहासिक-पौराणिक ऋषभतीर्थ और अब छत्‍तीसगढ़ का औद्योगिक तीर्थ कोरबा विकसित हुआ है।
ईस्वी पूर्व के धार्मिक-पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख और घटनाओं की संबद्धता से भी इस क्षेत्र की प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता हैं महाभारत में उल्लेख है कि दक्षिण कोसल के प्रसिद्ध स्थल, ऋषभतीर्थ में गौदान करने से पुण्य अर्जित होता है। इस उल्लेख की ऐतिहासिकता निकटस्थ गुंजी के शिलालेख से प्रमाणित होती हैं ईस्वी की आरंभिक शताब्दी से संबंधित इस लेख में राजपुरूषों द्वारा सहस्त्र गौदान किया जाना अभिलिखित है। लेख का पाठान्तर इस प्रकार है- ''सिद्धम। भगवान को नमस्कार। राजा श्रीकुमारवरदत्त के पांचवें संवत्‌ में हेमन्त के चौथे पक्ष के पन्द्रहवें दिन भगवान के ऋषभतीर्थ में पृथ्वी पर धर्म (के समान) अमात्य गोडछ के नाती, अमात्य मातृजनपालित और वासिष्ठी के बेटे अमात्य, दण्डनायक और बलाधिकृत बोधदत्त ने हजार वर्ष तक आयु बढ़ाने के लिए ब्राह्मणों को एक हजार गायें दान की। छवें संवत में ग्रीष्म के छठे पक्ष के दसवें दिन दुबारा एक हजार गायें दान की। यह देखकर दिनिक के नाती ... अमात्य (और) दण्डनायक इंद्रदेव ने ब्राह्मणों को एक हजार गायें दान में दीं।'' इन प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में वैदिक परंपराओं की गतिविधियां सम्पन्न हुआ करती थीं। किरारी (चंदरपुर) का काष्ठ स्तंभ लेख तो अद्वितीय ही है, जिसमें राज्य अधिकारियों के पद नाम हैं।
ऋषभतीर्थ, गुंजी या दमउदहरा
इस क्षेत्र को रामायण के कथा प्रसंगों से भी जोड़ा जाता है। यह क्षेत्र राम के वनगमन का क्षेत्र तो माना ही गया है, सीतामढ़ी आदि नाम इसके द्योतक हैं निकटस्थ स्थल कोसगईं में प्राप्त पाण्डवों की प्रतिमाएं क्षेत्रीय पौराणिक मान्यताओं को और भी दृढ़ करती है। कोरबा के नामकरण को भी कौरवों से जोड़ा जाता है और सहायक तथ्य यह है कि इस क्षेत्र के आसपास कोरवा और पण्डो, दोनों जनजातियां निवास करती हैं। एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि बिलासपुर जिले के ही लहंगाभाठा नामक स्थल से लगभग 12-13 वीं सदी ईस्वी का शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिसमें तत्कालीन कौरव राजवंश की जानकारी मिलती है, जिन्होंने अपने समकालीन प्रसिद्ध क्षेत्रीय राजवंश कलचुरियों पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। संभव है कि इस राजवंश की राजधानी कोसगईं, कोरबा क्षेत्र में रही हो। इस क्षेत्र में प्रचलित पंडवानी और फूलबासन (सीता प्रसंग) गाथा में ऐतिहासिक सूत्र खोजे जा सकते हैं।
सीतामढ़ी, कोरबा की गुफा में पूजित राम-लक्ष्‍मण-सीता प्रतिमा
'अष्‍टद्वारविषये' उल्लिखित शिलालेख
कोरबा के सीतामढ़ी में एक शिलालेख है, जिसमें लगभग आठवीं सदी ईस्वी का जीवन्त स्पन्दन है। इस शिलालेख के अनुसार यह क्षेत्र अष्टद्वार विषय में सम्मिलित था और यहां किसी वैद्य के पुत्र का निवास था। अष्टद्वार विषय का अर्थ तत्कालीन अड़भार क्षेत्र है। सातवीं सदी ईसवी के लगभग सक्ती के निकट स्थित अड़भार ग्राम प्रसिद्ध नगर था। यहां से प्राप्त एक ताम्रपत्र में भी इस क्षेत्र का नाम 'अष्टद्वार विषय' उल्लिखित है। संभवतः यह नाम अड़भार के अष्टकोणीय (तारानुकृति) मंदिर अथवा आठ द्वार युक्त मिट्‌टी के परकोटे वाले गढ़ के नाम के आधार पर है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में एक अन्य प्राचीन ऐतिहासिक प्रमाणयुक्त ग्राम बाराद्वार (बारहद्वार) भी है। अंचल में प्रचलित विभिन्न दन्तकथाओं में कोरबा तथा गुंजी को अड़भार से सम्बद्ध किया जाता है।
दैनिक लोकस्वर, कोरबा संस्करण के
शुभारंभ दिनांक 1 अगस्त 1992
के पूर्ति अंक के लिए तैयार किया गया,
पृष्ठ -1 पर प्रकाशित मेरा आलेख।
 अखबार की प्रति तो मिली नहीं,
अपना लिखा यह पन्‍ना मिल गया
परवर्ती काल में कोरबा, जिले की विशालतम जमींदारी का मुख्‍यालय बना, जो यहां के राजनैतिक-प्रशासनिक महत्व का द्योतक है। यह जमींदारी 341 गांवों और 856 वर्गमील में फैली थी तथा संभवतः सबसे अंत में रतनपुर राज्य में सम्मिलित की जा सकी अन्यथा इनकी पृथक और स्वतंत्र सत्ता थी। दूरस्थ, दुर्गम और शक्तिशाली जमींदारी होने के कारण ही यह संभव हुआ था। कोरबा जमींदार दीवान कहे जाते थे। संभवतः धार्मिक उदारता के कारण इस क्षेत्र में कबीरपंथ को प्रश्रय मिला, फलस्वरूप कुदुरमाल, कबीरपंथियों के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित हुआ। यहां प्रतिवर्ष माघ में पंथ समाज का मेला भरता है। कुदुरमाल में दो कबीरपंथी सद्‌गुरूओं के अलावा प्रमुख कबीरपंथी धर्मदास जी के पुत्र चुड़ामनदास जी की समाधि है।

कोरबा के चतुर्दिक क्षेत्र में गुंजी, अड़भार, रायगढ़ जिले के प्रागैतिहासिक स्थलों के साथ-साथ कोसगईं, पाली, रैनपुर, नन्दौर आदि ऐसे कई स्थल है जहां पुरातत्वीय सामग्री के विविध प्रकार उपलब्ध हैं। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध और दर्शनीय स्थल पाली है। पाली ग्राम का मंदिर ''महादेव मंदिर'' के नाम से विख्‍यात है। मूलतः बाणवंशी शासक विक्रमादित्य प्रथम द्वारा निर्मित 9-10 वीं सदी ई. के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कलचुरि शासक जाजल्लदेव ने 11वीं सदी ई. में कराया। पूर्वाभिमुख यह मंदिर प्राचीन सरोवर के निकट जगती पर निर्मित है। मंदिर की बाह्यभित्तियां प्रतिमा उत्खचित, अलंकृत हैं। प्रतिमाओं में शिव के विविध विग्रह, चामुण्डा, सूर्य, दिक्पालों के साथ-साथ अप्सराएं, मिथुन दृश्य और विभिन्न प्रकार के व्यालों का अंकन है। अलंकरण योजना और स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर छत्तीसगढ़ का विकसित किन्तु संतुलित स्थापत्य और मूर्तिशिल्प का अनूठा उदाहरण है।
सचमुच कोरबा क्षेत्र की नैसर्गिक सम्पन्नता और ऐतिहासिक अवशेषों का आकर्षण प्रबल है। जो पहले कभी ऋषभतीर्थ के रूप में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता था, औद्योगिक तीर्थ बनकर कोरबा, आज भी लोगों को आकर्षित कर रहा है।

इस पोस्‍ट के छायाचित्रों के लिए श्री हरिसिंह क्षत्री ने तथा कुछ जानकारियों के लिए डॉ. शिरीन लाखे व गेंदलाल शुक्‍ल जी ने मदद की।

44 comments:

  1. आभार--



    पढता जाऊं कोरबा, कौरव पांडू जाति ।

    ऐतिहासिक यह क्षेत्र है, बढ़ी हमेशा ख्याति ।

    बढ़ी हमेशा ख्याति, खनिज भण्डार भरे हैं ।

    आदिकाल से वास, यहाँ पर लोग करे हैं ।

    सिंहावलोकन करत, ध्यान से आगे बढ़ता ।

    बौद्ध तथा गोदान, श्रेष्ठ रामायण पढता ।।

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  2. koraba etihaasik jaanakaari post ke maadhyam se dene ke liye aabhaar

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  3. छत्तीसगढ़ का होने के बावजूद भी कोरब के विषय में इतनी जानकारी नहीं थी। मैं तो कोरबा को केवल काले हीरे के भंडार के रूप में जानता था।

    आपके पोस्ट को पढ़ने का आनन्द ही कुछ और है!

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  4. कोरबा घूमा तो हूं लेकिन इस दृष्टि से नहीं... बढ़िया शोधपरक आलेख...

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  5. कोरबा के बारे में उत्तम जानकारी मिली. कितने ऐतिहासिक खजाने छुपाये हुए है यह क्षेत्र.

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  6. कोरबा दर्शन कर एक बार करके धन्य हो चुका हूँ -स्मृतियों को कुरेदती पोस्ट!

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    1. यह जो धन्य हो चुका हूँ वाली बात क्या नकारात्मक है?

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  7. अनमोल इतिहास समेटे है आपके प्रदेश की भू। कोरबा में शायद NTPC का प्लांट भी है।

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    1. संजय जी, NTPC आदि तो मानों कोरबा के पर्याय ही बन गए हैं, लेकिन मेरा प्रयास था कि इन सबके बिना भी कोरबा की क्‍या पहचान है, रेखांकित किया जाय.

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  8. काश आपके साथ घूमने का मौका मिले ...
    शुभकामनायें सर !

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    1. पहल आपको करनी होगी. कुआँ आपके पास तो आने से रहा!.

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    2. पहले कुआँ से हाँ तो बुलवाओ , मैं तो कूदने को तैयार हूँ !
      :)
      सादर

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    3. आप दोनों आदरणीय का स्‍वागत है.

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  9. बहु सुन्दर परन्तु आलेख बढ़िया होते हुए भी कुछ पराया सा लग रहा है. ऋषभतीर्थ के बारे में कोई पोस्ट लिखें तो आनंद आ जाएगा. बगल के गाँव रैनखोल को न भूलेँ.

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    1. एक चक्‍कर फिर लगाकर सब ताजा कर सका तो तुरंत अगली पोस्‍ट, आभार सर.

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  10. समृद्ध पोस्ट है। दो बार पढ़ा लेकिन कमेंट करने बैठा तो ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ। जो पढ़ा अधिकांश भूल गया। जो याद है वह रोमांचित कर रहा है। सही समझने के लिए तो फिर पढ़ना पड़ेगा और घूमना भी पड़ेगा..।.

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  11. कोरबा के बारे में ऐतिहासिक और पौराणिक जानकारी अच्छी लगी ... बहुत सी नयी बातें पता चलीं ...आभार

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  12. आधुनिक औद्योगिक नगरी के पौराणिक महत्व को जानने का अवसर मिला।

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  13. जिस समय बिलासपुर में था, उस समय नहीं जा पाया कोरबा। यह लेख पढ़ लिया होता तो निश्चय ही घूम आता।

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  14. कोरबा के किनारे से होकर निकल आया। अब लग रहा है, बडी भूल कर दी। सुधार की गुंजाइश तो प्रति पल बनी रहती है किन्‍तु सम्भावना नहीं लग रही।

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  15. आपके शोधपरक आलेखों में सम्मिलित जानकारी चकित करती है..... कोरबा के बारे में अच्छी ऐतिहासिक जानकारी मिली.....

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  16. हमेशा की तरह शोधात्मक, पठनीय और संग्रहणीय। बधाई।

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  17. इस आलेख के माध्‍यम से बहुत ही विस्‍तृत जानकारी प्राप्‍त हुई ..आभार ।

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  18. कोरबा के बारे में ऐतिहासिक और पौराणिक जानकारी प्राप्त हुई....आभार
    बहुत बढ़िया आलेख,...

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  19. बहुत अच्छा लगा इस पोस्ट से गुज़र कर।

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  20. एक बहन है जिसका परिवार कोरबा में रहता है, ३ वर्षों से न जाने कितनी बार हाँ कह-कह के जाना नहीं हो पाया है। जब हो सका तो यत्न करूँगा कि इनमे से कुछ मैं भी सहेज सकूँ।
    बहुत आभार आपका।

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  21. कभी कोरबा गया नहीं पर यदि भविष्य में कभी जाना हुआ तो आपकी ये जानकारी मेरे ले अमूल्य निधि होगी !

    हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति और ज्ञानवर्धक आलेख .. आभार आपका :) :)

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  22. दिनेश पांडे जी के साथ गया था.उनकी शादी के लिए लड़की देखने .बात जम नहीं पायी .लेकिन आप के लेखन में बहुत सी नयी बातें पता चलीं .आभार .. कोरबा जम गया .

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  23. सांस्कृतिक-वैभव के उन बीते युगों से आपकी लेखनी ने साक्षात्कार करा दिया ,यह धरोहरें बिखर कर विस्मृत न हो जायँ ऐसे प्रयास आवश्यक हैं !

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  24. कोरबा लगातार याद आता रहता है,क्‍योंकि कोरबा में फुफेरी बहन और उसका परिवार है। 2009 की राखी पर कोरबा में ही था। हालांकि बहुत कुछ घूमने या देखने का मौका तो नही मिला। केवल हसदेव नदी और उस पर बना बांध ही दूर से देख पाया।
    आपकी पोस्‍ट से कोरबा के इतिहास की जानकारी मिली। लेकिन वास्‍तव में कोरबा में खासकर एनटीपीसी के आसपास का जनजीवन बहुत कठिन है। मेरी बहन का घर भी वहीं उसके पास है। अगर गर्मियों में बाहर बिस्‍तर डालकर सो जाएं तो सुबह आपको अपने ऊपर काली राख की एक परत मिलेगी।
    लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यही वह प्‍लांट है जो केवल छत्‍तीसगढ़ ही नहीं,मप्र को भी बिजली की आपूर्ति करता है।
    बहरहाल कोरबा है।

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  25. बहुत-कुछ अनजाना था ।

    दो शब्द समूहों के बारे में कुछ कहना चाहता हूं-
    ‘कबीरपंथी सद्गुरु‘ और ‘प्रमुख कबीरपंथी धर्मदास‘

    कबीरपंथ की धर्मदासी शाखा की परम्परा के अनुसार प्रमुख गुरुओं को ‘वंशगुरु‘ कहा जाता है , न कि ‘सद्गुरु‘। सद्गुरु केवल कबीर साहेब के लिए प्रयुक्त होता है।

    धर्मदास जी कबीर साहेब के प्रमुख शिष्य थे जिन्होंने कबीरपंथ का प्रवर्तन किया इसलिए उन्हें ‘प्रमुख कबीरपंथी‘ के स्थान पर ‘कबीरपंथ के प्रवर्तक‘ कहना ही उचित है।

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    1. धन्‍यवाद वर्मा जी, मेरे द्वारा इस शब्‍द के प्रयोग का आधार कि यह राज्‍य शासन द्वारा कबीरपंथी सदगुरुओं की तीन मजार के नाम से संरक्षित है.

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  26. आभार सर कोरबा के अतीत के दर्शन करने के लिए,सच में वर्तमान की ही तरह कोरबा का अतीत भी समृद्ध था

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    1. सार्थक पोस्ट, आभार.
      कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की 150वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें तथा मेरी अब तक की काव्य यात्रा पर अपनी प्रति क्रिया दें , आभारी होऊंगा .

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  27. छत्तीसगढ के बारे में आपकी हर पोस्ट शोध परक होती है कोरबा के ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक अतीत के बारे में जानकर अच्छा लगा ।

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  28. दस्तावेजीकरण का आपका तरीका अनुपम है.

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  29. sir nice post.please do write and mention these places in KORABA NEXT POST.
    SITAMARHI, KANAKI, BIRTARAI,PAHARH GAON, MAHAURGARH, KOSGAIGARH, DEWAPAHARI, SHANKARGARH, GARHUPARORHA, NAGIN BHATHA SUMENDHA,RAJKAMMA,GHUMANIDARH, MATINGARH, SINDURGARH, TUMMAN, KEADAI JALPRAPAT, NARSINGH GANGAA, KUDURMAAL, BUKAA, SATRENGA, TIHARI TARAAI, BANGO AUR DARRI BANDH, MADAWA RANI, LAFA GARH, CHAITUR GARH, SARWAMANGALA MANDIR, BHATIKURHA, KERA GUFAA, RANI JHERIYA, ETC.ETC.
    SANGAHANIY AUR JYANPARAK.

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    1. इतने सारे स्‍थान नाम और वह भी रोमन में (ठीक पढ़ पाना मुश्किल हो रहा है.), अच्‍छा होगा कि कम से कम इन स्‍थानों की स्थिति और दो-चार पंक्तियों में परिचय अपने ब्‍लाग पर दे दें.

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  30. बढ़ाये ज्ञान....कोरबा पुराण........

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  31. एक और ज्ञानवर्धक पोस्ट. कमाल हैं आप !

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  32. जिन खोजा तीन पाइयाँ।
    🙏🙏🙏🙏🙏

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