Pages

Saturday, February 18, 2012

36 खसम

छत्‍तीसगढ़ से जुड़ी किंवदंती? पर दो स्‍थानीय लोगों की उत्‍तेजक बातचीत से आह्लादित पत्रकार सुश्री लक्ष्‍मी शरथ (Lakshmi Sharath) ने बस्‍तर, छत्‍तीसगढ़ पर यात्रा-वृत्‍तांत लिखा है, शीर्षक है - CHATTISGARH: Watching in delight as two locals heatedly discuss the legend associated with the State

लेख में कहा गया है- The local women saw Sita with two men and exclaimed she had two husbands. “Sita immediately retorted that each of these women will have Chattison (36) husbands,” says Mumtaj as we break into laughter. Toppoji and Mumtaj continue to discuss how most women in Chhattisgarh do have multiple husbands, although Mumtaj adds hurriedly: “Not everybody though.

अनुवाद कुछ इस तरह होगा- ''स्थानीय महिलाओं ने दो पुरुषों के साथ सीता को देखा और कहा कि इसके तो दो पति हैं, सीता ने तत्‍क्षण व्‍यंग्‍यपूर्वक कहा, इनमें से प्रत्येक औरत के छत्‍तीसों (36) पति हों। मुमताज के ऐसा कहते ही हम ठठाकर हंस पड़े । टोप्‍पोजी और मुमताज आगे बात करते रहे कि कैसे छत्‍तीसगढ़ की अधिकतर महिलाओं के बहुत सारे खसम होते हैं यद्यपि, मुमताज ने जल्‍दी से कहा, सबके साथ नहीं।''
सुश्री शरथ ने लांछनापूर्ण लेखन कर, बरास्‍ते विवाद, धार्मिक भावना और छत्‍तीसगढ़ की अस्मिता को चोट पहुंचाने का भर्त्‍सना-योग्‍य तथा अभद्र कार्य किया है। पाश्‍चात्‍य बौद्धिक जगत से प्रेरित, भ्रमित और गैर-जिम्‍मेदार लेखक, तात्‍कालिक प्रसिद्धि और बिकाऊपने के लिए ईश निन्‍दा का भी रास्‍ता अपना लेते हैं, उनका यह लेखन चर्चित होने का ऐसा ही ओछा और सस्‍ता हथकण्‍डा दिखता है।

'द हिन्‍दू' जैसे अखबार में ऐसी सामग्री प्रकाशित होना चिंताजनक है और इस पूरे मामले में मुझे (बस्‍तर, छत्‍तीसगढ़ में रहे श्री पा ना सुब्रहमनियन तथा छत्‍तीसगढ़ में रचे-पचे डा. बी के प्रसाद सहित), हम सबके मर्यादित बने रहने पर अफसोस हो रहा है।

68 comments:

  1. 'स्थानीय महिलाओं ने दो पुरुषों के साथ सीता को देखा और कहा कि इसके तो दो पति हैं, सीता ने तत्‍क्षण व्‍यंग्‍यपूर्वक कहा, इनमें से प्रत्येक औरत के छत्‍तीसों (36) पति हों।

    हम सबको ऐसे मामलों के मामले में चिंतित होना चाहिए .....! बेहद अफसोसजनक ....!

    ReplyDelete
  2. निश्चित तौर पर इसका विरोध करना-होना चाहिए। द हिंदु जैसा प्रतिष्ठित अखबार ने इसे कैसे छाप दिया यह आश्चर्य हो रहा है।

    ReplyDelete
  3. सुश्री शरथ का लेख सरासर धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने वाला और छत्तीसगढ़ को हेय बताने वाला है। छत्तीसगढ़ के लोग भोले अवश्य हैं किन्तु इतने मन्दबुद्धि नहीं हैं कि किसी महिला को दो पुरुषों के साथ देखकर उसे दो पतियों वाली समझ लें। क्या सीता, जिन्हें समस्त हिन्दू माता मानते हैं, वाल्मीकि ने रामायण में जिनकी कुशाग्र बुद्धि का वर्णन किया है, ऐसे व्यंगवचन कह सकती हैं?

    सस्ती प्रसिद्धि पाने के लिए इस प्रकार के लेखन का छत्तीसगढ़ के समस्त बुद्धिजीवियों को विरोध करना चाहिए।

    ReplyDelete
  4. I storm my brain to find out the author, but failed. Again tried onto the web surface, with positive to be some bigger information about the writer. She has no prominence, no sooner after strong reaction as she planed got a tremendous fame as out leak way crawler of blog. That is why she must be rejected thoroughly otherwise media has no brain while they have strong mouth and emphatic volatile voice that can make her in the row of dispute made dignity.
    Sakhajee

    ReplyDelete
  5. ये सस्ती लोकप्रियता पाने के फंडे हैं... इस तरह के लेख पर या तो लेखक की तबियत से खातिरदारी हो जाये या फिर चुप्पी साध ली जाये.. क्योंकि वो चाहता ही है की उसके लिखे पर विवाद हो... दरअसल कुछ लोगों को बदनाम होकर प्रसिद्द होने का शौक लग गया है...

    ReplyDelete
  6. @@ 'द हिन्‍दू' जैसे अखबार में ऐसी सामग्री प्रकाशित होना चिंताजनक है

    यह तो निश्चित रूप से चिंताजनक है ...! हम सबको ऐसे मामलो का कड़ा संज्ञान लेना चाहिए ...!

    ReplyDelete
  7. सस्ती प्रसिद्धि पाने के लिए इस प्रकार के लेखन का
    बुद्धिजीवियों को विरोध करना चाहिए।
    द हिंदु प्रतिष्ठित अखबार ने इसे कैसे छाप दिया यह आश्चर्य हो रहा है।
    PERSONALY I OBJECT AND SAY LASHMI SHARATH SO CALLED WRITER MUST BE PUNISHED BY BLOGERS THROUGH THEIR COMMENTS.

    ReplyDelete
  8. आजकल मर्यादित बने रहने पर ही क्षोभित होने का अवसर मिलता है।
    सिर्फ़ छत्तीसगढ़ वालों के लिये ही नहीं, हम सब के लिये अफ़सोसजनक बात है।

    ReplyDelete
  9. मिस्टर टोप्पो संभवतः जशपुर मूल के होंगे और मुमताज अली भी कोई इतिहासविद या संस्कृतिविज्ञ नहीं हैं ! पर्यटन विभाग पोषित गाइड और ड्राइवर बाहरी सैलानियों को क्या सामग्रियां परोस रहे हैं इस पर आगे से पर्याप्त सावधानियां बरतने की आवश्यकता है ! उन्हें समझना चाहिये कि वे अपने अनर्गल प्रलाप में छत्तीसगढ़ और खासकर महिलाओं के सम्मान में कितनी निंदनीय बात कह रहे है और वो भी धार्मिक चरित्र के हवाले से !

    आगे मुख्य प्रश्न यह है कि लक्ष्मी शरथ जैसी पत्रकार को धार्मिक भावनाओं और महिलाओं की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला आलेख लिखने जैसा गैरजिम्मेदाराना कार्य क्यों करना पड़ा ? उन्हें धार्मिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक मामलों में लगभग अनपढ़ ( अविशेषज्ञ/अदक्ष )किस्म के दो व्यक्तियों के निजी वार्तालाप को साक्ष्य कथन जैसा उद्धृत करके आस्था और स्त्री मर्यादा को चोट पहुंचाने जैसा निंदनीय कार्य क्यों करना चाहिये था !

    एक पढ़ी लिखी पत्रकार और स्वयं महिला होकर भी अनधिकृत हवालों से धार्मिक आस्था और महिला गरिमा विरोधी लेख लिखने के विरुद्ध मेरी गंभीर आपत्ति दर्ज की जाये !

    ReplyDelete
  10. देश एक ओर जहाँ भ्रष्टाचार से पीड़ित है वहीं दूसरी ओर तथाकथित बुद्धिजीवियों के ऐसे भ्रष्ट आचरण से भी घायल हो रहा है। सस्ती और बिकाऊ पत्रकारिता निश्चित रूप से लोकप्रिय होने और लाभ कमाने के उद्देश्य से ही की जाती है। वे जानते हैं कि हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

    मर्यादाहीन ऐसे आलेख की मैं घोर निंदा करता हूँ।

    ReplyDelete
  11. सभी टिप्पणियाँ सही बात कह रही हैं, लेकिन लोकेन्द्र जी और अली जी की टिप्पणी में सबसे अच्छी बात कही गयी है..
    धिक्कार है लेखिका पर...
    बात फिर वही कि हिन्दू सहिष्णुता का नाजायज फायदा...

    ReplyDelete
  12. बौद्धिक अपराध है...स्वीकार न हो..

    ReplyDelete
  13. ईश निन्‍दा गहरे दुर्भाव उत्पन्न करती है, त्याज्य है!वैसे सीता का उद्धृत उद्धरण भी बचकाना और हास्यास्पद है !

    ReplyDelete
  14. मसालेदार लेखन को इस देश में लोकप्रिय करने वाले हम लोग ही हैं....
    अगर हम सुधर जाएँ तो कौन लिख पायेगा ?
    सादर

    ReplyDelete
  15. मैंने पिछले कई वर्षों में ऐसी बचकानी और अनर्गल बात नहीं सुनी।
    और जब ऐसी बेसिरपैर बातें एक माना हुआ समाचारपत्र छापे, यह तो अपराध है।
    घोर निंदनीय कृत्य है।

    ReplyDelete
  16. अली जी का दृष्टिकोण पूरी तरह स्पष्ट है ..और सारे आरोपों का जवाब भी.

    सीता पर आरोप तब भी लगा था जिसके कारण उन्हें पहले तो अग्नि परीक्षा और फिर निर्वासन का सामना करना पडा था. किन्तु ऐसे आरोप लगाने वालों को कभी सामाजिक मान्यता नहीं मिल सकी. कुछ लोगों ने हनुमान जी पर भी आरोप लगाए हैं पर इन सबको किसने तवज्जो दी है ? लोग अपनी-अपनी समझ, वृत्ति और किसी तात्कालिक लक्ष्य सिद्धि के लिए ऐसी चर्चाएँ करते हैं जिन्हें हिन्दू जैसे अखबार को तवज्जो नहीं देनी चाहिए थी. दो महिलाओं के बीच की तथाकथित वार्ता निहायत मूर्खतापूर्ण और उपेक्षायोग्य थी. ऐसे प्रकरणों में हमें बहुत ही सावधानी की आवश्यकता होती है ...विशेषकर तब जब कि घटना में कोई दूसरे धर्म का पात्र भी शामिल हो.

    ReplyDelete
  17. मुझे न तो इस लेख का कोई औचित्य लगता है न ही इसे लिखने वाली कोई लेखिका लगती है.सस्ती लोकप्रियता के लिए जो भी कुछ लिखा जाये उसे कोई महत्व ही नहीं देना चाहिए.हाँ इसे छापने के लिए "द हिंदू" के लिए जरुर निंदनीय अवस्था है.और इसका अवश्य ही विरोध होना चाहिए.ऐसे प्रतिष्ठित अखबार में यह सब छपना बहुत ही चिंताजनक है.

    ReplyDelete
  18. 'द हिन्दू' को एक कड़ा विरोध पत्र लिखा जाना चाहिए...और 'लक्ष्मी शरथ' को माफ़ी मांगनी चाहिए.
    बल्कि अखबार के संपादक को भी ऐसी सामग्री प्रकाशित करने के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए .

    इसे वहाँ के निवासियों का अपमान कहा जायेगा...

    ReplyDelete
  19. सीता जी का व्यक्तित्व इतना ओछा और गरिमाहीन नहीं जैसा इस आरोप से ध्वनित होता है. ऐसी अनुचित और बेसिर-पैर की बातें लिखने औऱ प्रकाशित करने का कोई औचित्य नहीं!

    ReplyDelete
  20. सीता जी का व्यक्तित्व इतना ओछा और गरिमाहीन नहीं जैसा इस आरोप से ध्वनित होता है. ऐसी अनुचित और बेसिर-पैर की बातें लिखने औऱ प्रकाशित करने का कोई औचित्य नहीं!

    ReplyDelete
  21. अधजल गगरी छलकत जाए......

    ReplyDelete
  22. अली सा की बातें सारी बहस को एक तार्किक पहलू से समझाने की कोशिश करती हैं.. और ऎसी पत्रकारिता तो अब आम होती जा रही है.. मीडिया क्रुक्स और क्रुक मीडिया की एक और घिनौनी हरकत!!

    ReplyDelete
  23. बात जब पत्रकारों की कलम से होती हुयी बज़रिये "द हिन्दू" अवाम तक पहुँच जाए तब तो चर्चा करना लाजिमी है...यह उपेक्षा तो उन पत्रकार महोदया और द हिन्दू को करनी चाहिए थी. धोबी की बात जब अवाम से होती हुयी राम के कान तक पहुँची तो उन्हें भी एक्शन लेना पड़ा था ....ये मैटर जितने ट्रिवियल लगते हैं....हवा लगते ही सूनामी बन जाते हैं. हमारा विरोध उन पत्रकार महोदया और द हिन्दू से है.

    ReplyDelete
  24. लक्ष्‍मी शरथ जैसे पत्रकार लाईम लाईट में रहने के लिए कुछ भी अनर्गल प्रकशित कर रहे हैं, इन्हें मर्यादा का पालन करना चाहिए. छत्तीसगढ़ की स्त्रियों के विषय में टोप्पो एवं मुमताज के हवाले से टिप्पणी को प्रकाशित करने के पीछे लक्ष्‍मी शरथ की मंशा स्पष्ट रूप से सही नहीं दिख रही. इस कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है........तथा इस विषय पर रजिस्टर आफ न्यूज पेपर को संज्ञान लेकर द हिन्दू का पंजीयन रद्द करना चाहिए.....

    ReplyDelete
  25. विरोध करना चाहिए........ विरोध करते है घिनौनी हरकत पर।

    ReplyDelete
  26. बस्तर को बाहरी लोगों ने हमेशा गलत चश्मे से देखा है। नेट संदर्भों से ज्ञात हुआ कि वे बंगलुरु, कर्नाटक की हैं। इस तथाकथित पत्रकार ने अपना नाम प्रचारित करने के लिए छत्तीसगढ़ के बारे में आपत्तिजक और अनर्गल बातें लिखी हैं।
    मैं इसका पुरजोर विरोध करता हूं। लक्ष्मी शरथ का यह कृत्य घोर निंदनीय और अक्षम्य है।
    मैं उन्हें lakshmi.sharath@gmail.com पते पर ई-मेल प्रेषित कर विरोध व्यक्त कर रहा हूं।

    ReplyDelete
  27. अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. क्षमा करें, शांति गर्ग जी, आपका आशय स्‍पष्‍ट नहीं हुआ.

      Delete
    2. बेहतरीन कटपेस्टिया टिप्पणी गर्ग जी की। इन्ही के बल पर हिन्दी ब्लॉगजगत जिन्दा है।

      Delete
    3. सत्यवचन ज्ञान ज़ी

      Delete
    4. धन्‍यवाद ज्ञानदत्‍त जी, काश ऐसा हो, यह चलेगा, लेकिन यदि ऐसा उन पत्रकार मोहतरमा के लेखन के लिए कहा गया हो तो?

      Delete
    5. नहीं। पहली ही नजर मे अनुभव हो रहा है कि उन पत्रकार महोदया के लिए नहीं कहा गया है।

      Delete
  28. इस तरह से लोगों के मुंह में जबरदस्ती बात डालकर कहलवाना जान बूझकर की गई टुच्चई है जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है। इस तरह के हथकंडों से पल भर के लिये प्रसिद्धि भले मिल जाय लेकिन अंदर से तो उस लेखक या लेखिका को बात कचोटती तो होगी ही। ( क्या पता न भी कचोटती हो, आधुनिकता के बौड़मपने के चलते )

    ReplyDelete
  29. मर्यादित बने रहने पर आजकल अफ़सोस ही हिस्से में आता है।
    यह निंदनीय कृत्य सिर्फ़ छत्तीसगढ़ वालों के लिये ही नहीं, हम सबके लिये क्षोभ का विषय है।

    ReplyDelete
  30. निहायत रद्दी काम किया है सुश्री लक्ष्‍मी शरथ ने।

    ReplyDelete
  31. मै अली जी से सहमत हु.पर सोचिये ये न तो कुमारी है न श्रीमती.ये सुश्री है ये ही इतना विचित्र लिख सकती है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैस्सी...................................................................... पता नहीं हिन्दू वालो बिना जाने समझे कैसे छाप दिया.

    ReplyDelete
  32. Any short of discussion related with any religion looks shameful which hurt us .personaly i can misbehave and i feel she is frusted writer she can cross her limite to get her goal in any way.therefore she expressed this way.

    ReplyDelete
  33. आश्चर्य की बात नहीं है कि लेख को सस्ती लोकप्रियता पाने के हिसाब से लिखा गया है।

    हालांकि लक्ष्मी शरथ ने वही लिखने की कोशिश की है जो उन्होंने सुना... उन्होंने अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ा है -ऐसा मैं मान कर चल रहा हूँ। भारत के अलग-अलग स्थानों पर आपको इस तरह की आधारहीन व बेतुकी बातें सुनने को मिल जाती हैं (आज ही एक सज्जन ने मेरे एक लेख पर टिप्पणी करते हुए “खुलासा” किया कि रानी लक्ष्मीबाई ने खुद अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं लड़ी थी बल्कि एक अनजान महिला उनके आगे-आगे लड़ती हुई चलती थी!)... अब इन बातों का तो कुछ किया नहीं जा सकता। भारत के टोप्पोजी व मुमताज जब तक कुछ बुद्धिमान नहीं हो जाएंगे तब तक इस तरह की बातें चलती ही रहेंगी।


    लक्ष्मी शरथ को चाहिए था कि वे लेख को अधिक गंभीरता और ज़िम्मेदारी के साथ लिखतीं। उनकी अभिव्यक्ति की शैली महिलाओं के प्रति उनकी संवेदनहीनता को दर्शाती है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्‍यवाद ललित जी,
      मेरा मानना यही है कि बातें-कहानियां तो कुछ भी सुनने को मिलती हैं, लेकिन आप (लेख्रिका), जिसके पास द हिन्‍दू जैसा प्‍लेटफार्म है और टोप्‍पो-मुमताजों के स्‍तर में कोई तो फर्क हो, यहां बात तो वे दोनों कर रहे हैं, लेकिन बात का मजा तीनों लेने में तीनों साथ हैं और फिर उसके व्‍यापक प्रचार का मानों बीड़ा ही उठा लिया इन एक ने.

      Delete
  34. ऐसी बातों की स्वीकार्यता आने वाले समय में और अफसोसजनक हरकतों को बढ़ावा देगी..... विरोध ज़रूरी है.....

    ReplyDelete
  35. आपमें से जो भी साथी 'हिन्‍दू' के पाठक हैं कृपया वे उनके संपादक को पत्र लिखकर इस बारे में अपनी आपत्ति जरूर दर्ज करवाएं। यह केवल छत्‍तीसगढ़ ही नहीं किसी भी क्षेत्र की महिलाओं के लिए अपमानजनक है।

    ReplyDelete
  36. आपकी पोस्ट और चर्चा से स्पष्ट है कि यह लेखिका की प्रसिद्धाकांक्षा की ही अभिव्यक्ति है. आज के दौर में अस्वाभाविक नहीं. मगर ब्लॉग पर प्रतिबन्ध लगाने की कवायद करने वाले प्रचलित मीडिया की तथाकथित तटस्थता और संपादकीय कसौटी पर भी यह एक प्रश्नचिह्न है. मुख्य आलोचना अखबार की होनी चाहिए.

    ReplyDelete
  37. इस तरह के कुकृत्यों की भर्त्सना होनी चाहिए, इतनी कि कोई भी सस्ती प्रशंसा लोभी लेखन से पूर्व लाख बार सोचे!!

    ReplyDelete
  38. अच्छा लगा. बाकी कुछ हो न हो, मन हल्का हो गया.

    ReplyDelete
  39. कथा कहावतों का कोई माई-बाप नहीं होता सो, कई लोग हैं जो कुछ भी गढ़ कर कहावतों के जिम्मे सौंप देते हैं...

    ReplyDelete
  40. कई बार बिना तथ्य की पुष्टि किये मात्र विषय को सनसनीखेज बनाने के लिये ही ऐसी मनगढ़ंत बातें लिखी और कही जाती हैं, और यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

    ReplyDelete
  41. कहावतों के अंदर की बात को बिना समझे ऐसी मूर्खताएं कर बैठते हैं कुछ लोग !
    भाव के बजाय शब्द पर उनका फोकस रहता है,बिना सन्दर्भ जाने !

    ReplyDelete
  42. राहुल भाई, पूर्णतः औचित्यहीन एवं बकवास है इस तरह के लेख.छत्तीसगढ़ पर ऐसी बेहूदगी पहले भी कुछ मुद्दों पर की गयी है. दरअसल बहार के पत्रकार , लेखक खुद को सुपीरियर बताने पोलिटिक्स आफ इंटर प्रिटेशन के तहत बेबुनियाद लिखा करते हैं. दंतकथाएं और कहावते तथ्यों से परे होती हैं . छत्तीस गढ़ के संस्कृति विभाग को चाहिए की ऐसे लेखो पर फौरी आपत्ति दर्ज कर उन्हें भी वस्तुस्थिति से अवगत कराये

    ReplyDelete
  43. राहुल भाई, पूर्णतः औचित्यहीन एवं बकवास है इस तरह के लेख.छत्तीसगढ़ पर ऐसी बेहूदगी पहले भी कुछ मुद्दों पर की गयी है. दरअसल बहार के पत्रकार , लेखक खुद को सुपीरियर बताने पोलिटिक्स आफ इंटर प्रिटेशन के तहत बेबुनियाद लिखा करते हैं. दंतकथाएं और कहावते तथ्यों से परे होती हैं . छत्तीस गढ़ के संस्कृति विभाग को चाहिए की ऐसे लेखो पर फौरी आपत्ति दर्ज कर उन्हें भी वस्तुस्थिति से अवगत कराये

    ReplyDelete
  44. Reading this article early morning, not at all good feeling. I am wondering what Lakshmi Sarath wants to prove...on her writing skill, on her venture to Chitrakote falls. Her concluding line ..." I realise journeys are not just about sightseeing. They are about people, conversations and stories". She realized this only after seeing the Chitrakote Falls...that means this is her first venture to Chhattisgarh and first writing about her trip.
    Even if this was a piece of travelogue... it neither tells anything about the place, people nor anything about her experience. The source quoted is rather the so called "halka fulka" (not using the word 'cheap'" conversation between any two people which you can hear even when you commute in city for that matter anywhere. Aise raah chalte kahaniyaan banane lage tab to chinta ki baat hai hi.

    ReplyDelete
  45. आपने इस पर पोस्ट लिख इसे और प्रसिद्ध ही किया है। ऐसे लेखको का काम ही भड़काउ लेख लिख विवाद जनित शोहरत पाना होता है। इन पर चर्चा इनका ही मनोर पूरा करती है सो इन पर चर्चा न करना ही हितकारी है।

    ReplyDelete
  46. लक्ष्‍मी शरत को पता ही नहीं होगा कि उन्‍होंने क्‍या किया है। अत्‍यधिक आहत करनेवाला दुष्‍कर्म है यह उनका। मैं आपके साथ हूँ। आप यदि कोई अभियान चलाऍं तो अधिकारपूर्वक सूचित कीजिएगा कि मुझे क्‍या करना है। मैं तो वह पत्‍थर हूँ जिसे आप फेंकेंगे तो निशाने पर लग जाऊँगा।

    ReplyDelete
  47. 'द हिन्दू जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने ऐसे अमर्यादित, स्तरहीन आलेख के प्रकाशन से अपनी प्रतिष्ठा गिराई है. इस के लिए 'द हिन्दू' और तथाकथित लेखिका दोनों को माफ़ी मांगनी चाहिए.

    ReplyDelete
  48. यह महज धार्मिक चिंता का मसला नहीं है कि सीता और छत्तीसगढ़ के बारे में टिप्पणी है। दरअसल, यह हिंदू धर्म को सॉफ्ट टारगेट मानने का मसला भी है..विरोध होते ही इन महाशया को माइलेज मिल जाएगा।

    ReplyDelete
  49. टॉईम्स ऑफ़ इंडिया से टक्कर लेने के चक्कर में तो अभी पता नहीं क्या क्या होगा

    ReplyDelete
  50. यह छत्तीसगढ़ की महिलाओं के साथ समस्त महिला वर्ग और जगत जननी माता सीता का भी अपमान है... जिन्हें ऐसे वचन कहते चित्रित किया गया है.... जब छद्मबुद्धिजीवियों की सोच का दायरा और रचनात्मकता समाप्त हो जाती है तो वो उलजलूल और अनर्गल प्रलाप के सहारे अपने बुद्धिजीवी होने के ढोंग को दुनिया के सामने बचाए रखने का कुत्सित प्रयास करते हैं... और यह निंदनीय कृत्य ऐसा ही उदाहरण है... क्षमा मांगना इस अपराध का शमन नहीं हो सकता... संकुचित वैचारिक धरातल पर बैठ कर भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले रचनाकार पूर्ण बहिष्कार और प्रतिबन्ध से ही ठिकाने आ सकते हैं....

    ReplyDelete
  51. माननीया लक्ष्‍मी शरथ से बात करने का मन हो रहा है.....संयमित मर्यादित भाषा में..

    ReplyDelete
  52. लक्ष्मी शरथ जी के पालन-पोषण मे ही कही दोष रह गया होगा,सम्भत: पाश्चात्य माहौल मे पली-बढ़ी अधिकांश भारतीय महिलायें अलग किस्म की महिला हो जातीं हैं और ठेठ देशज महिलाओं के प्रति उनका दृष्टिकोण दुर्भावनापूर्ण ही रहता है।अपनी जड़ों से कट कर हम ऐसे ही वक्तव्य परोसेंगे ।

    ReplyDelete
  53. लक्ष्मी शरत जैसे लोगों को पता ही नहीं होगा कि वे क्या कह रहें है खैर हम लोगों को तो शायद सभी कुछ सहने की आदत हो गयी है

    ReplyDelete
    Replies
    1. लक्ष्मी शरत जैसे लोगों को पता ही नहीं होगा कि वे क्या कह रहें है खैर हम लोगों को तो शायद सभी कुछ सहने की आदत हो गयी है क्या कहा जाये हम तो इतना भी साहस नहीं दिखाते कि हिन्दू को पत्र लिखकर अपनी भावनाओं से अवगत कराएँ मैंने तो आज ही पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है

      Delete
  54. if dont like it dont agree write a article against it or ignore it.

    ReplyDelete
  55. हम आहत बहुत जल्दी हो जाते हैं।
    द हिन्दू के Life and Style के Travel सेक्शन में जाकर जब पूरे लेख को पढा तो बुरा नहीं लगा। लेखिका ने कहीं नहीं कहा कि ये उनकी राय है अथवा जो कुछ उन्होने सुना वो उसको अनुमोदित करती हैं। उन्होने तो केवल दो लोगों के बीच हुयी बातचीत को बिना किसी सम्पादन के सामने रख दिया।
    मैं छत्तीसगढ से नहीं हूँ लेकिन भारत के अनेको क्षेत्रो में अलग अलग प्रकार की किवदंतियां चलती रहती हैं, जिनका सम्भवत: कोई आधार नहीं होता।
    "झांसी गले की फ़ांसी, दतिया गले का हार, ललितपुर न छोडिये जब तक मिले उधार।" अब झांसी वाले आन्दोलन करने लगे तो कैसे चलेगा।

    निश्चित ही दोनो बात करने वाले लोग अपने prejudice के चलते ऐसी बात कर रहे थे लेकिन यात्रा में आपको अनेकों ऐसे लोग मिलते हैं जिनके अच्छे/बुरे विचार कभी कभी सोचने को मजबूर करते हैं कि क्या सच में लोग ऐसा सोचते हैं और ऐसी बातों में विश्वास करते हैं?

    एक लेख जो कि मूलत: यात्रावरी जैसा है पर इतना बवाल मुझे तो उचित नहीं लगता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. राह चलती सुनी बातों में उल्लेखनीय का चयन आप (अपनी रुचि/आवश्‍यकता/प्राथमिकता के अनुरूप) करते हैं, बस और क्‍या कहूं.

      Delete
    2. राहुल जी,
      इस लिंक को भी एक बार देखने का कष्ट करें...ये भी किसी के यात्रा का विवरण ही है।
      http://mohallalive.com/2012/02/22/wah-bhi-koi-desh-hai-maharaj/

      Delete
  56. इसे कहते हैं ब्लागिंग.....
    सैल्यूट

    ReplyDelete
  57. ऐसे लेख केवल और केवल सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए ही लिखे जाते हैं...

    ऐसे लेख तथा लेखकों की केवल भ्रत्सना से ही काम चलने वाला नहीं है... ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए...

    ReplyDelete
  58. कुछ साल पहले हंस में ’मेरे विश्वासघात’ सीरीज से एक लेखमाला छपी थी। उसमें पत्रकार जोशीजी ने छत्तीसगढ़/बस्तर की महिलाओं के बारे में सस्ते संस्मरण लिखे थे। बाद में उनका बहुत विरोध हुआ और उनको अपना पद छोड़ना पड़ा।

    किसी अंचल के बारे में तमाम कहावतें/प्रचलित होती हैं। अतिशयोक्तियां भी। अब यह लिखने वाले की समझ पर है कि वह उनको किस रूप में समझकर लिखता है। यहां लेखिका को अंदाज ही नहीं होगा शायद कि उसके लिखे का क्या प्रभाव/मतलब होगा।

    हड़बड़/सस्ता लेखन!

    ReplyDelete