tag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post5928593395188094372..comments2024-03-26T11:26:04.832+05:30Comments on सिंहावलोकन: पंडुकRahul Singhhttp://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comBlogger50125tag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-58893043171776637072011-05-25T20:56:57.854+05:302011-05-25T20:56:57.854+05:30लाजवाब पोस्ट.. एक अनोखे विषय पर.. आपकी हर पोस्ट उस...लाजवाब पोस्ट.. एक अनोखे विषय पर.. आपकी हर पोस्ट उस विषय पर एक 'पेपर' की तरह होती है..लिखने के पहले किया गया शोध-कार्य स्पष्ट दिखता है.. रही-सही कसर्र टिप्पणियाँ पुरी कर देती हैं.. बधाई..Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-39251400465464581412011-05-18T11:40:01.945+05:302011-05-18T11:40:01.945+05:30ई-मेल से प्राप्त-
आदरणीय राहुल सिंह जी,
बहुत ही ...ई-मेल से प्राप्त-<br /><br />आदरणीय राहुल सिंह जी,<br />बहुत ही सुन्दर पोस्ट के लिये बधाई और आभार भी। <br />पोस्ट पढ़ने के बाद से प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सोच सोच कर रह जाता था। अब जा कर लिख पा रहा हूँ। पँड़की को बस्तर के हल्बीभतरी परिवेश में पँडकी' कहा जाता है। इसके करुण स्वर में पुकारने के पीछे एक मिथ कथा बस्तर में प्रचलित है। कथा कुछ इस प्रकार है : <br /> एक थी पँडकी। वह बहुत ही मेहनती और ईमानदार थी। मेहनतमजदूरी कर अपना और अपने बच्चों का पेट पालती थी। वह रोज राजा के घर जाती थी धान के लिये। वहाँ से लाती थी धान और कूट कर चावल वापस राजा के घर. पहुँचा आती थी। बदले में राजा के घर से उसे पारिश्रमिक स्वरूप कनकी और चावल मिल जाया करता था। एक दिन की बात। चावल के कुछ दाने उसके एक बच्चे ने चुग लिये। यह देख कर पँडकी को बहुत गुस्सा आया अपने बच्चे पर। चावल के दाने कम होने पर उसकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह जो लगने वाला था। उसने गुस्से में आव देखा न ताव, बस! उठाया मूसर (मूसल) और दे मारा उस बच्चे के सिर पर और चावल ले कर चली राजा के घर। वहाँ पहुँच कर उसने चावल नापा तो देखा, चावल को जितना होना चाहिये था उससे कहीं अधिक था। यह देख कर उसे अपने बच्चे के साथ किये गये अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा। वह तुरन्त डेरे पर लौटी तो देखा उसका वह बच्चा मरा पड़ा था। तब वह शोकसंतप्त हो कर उसे उठाने लगी, उठ पुता! उरली पुरली, उरली पुरली।'' वह दुःख और आत्मग्लानि से भर उठी। तभी से वह विलाप करती, यही कहती हुई करुण स्वर में अपने मृत बच्चे को उठा रही है। <br /> उठ पुता का अर्थ है, उठ बेटे। उरली का अर्थ है, अतिशेष और पुरली का अर्थ है पूरा हो जाना।<br /> रेणु मेरे पसंदीदा कथाकारों में से एक रहे हैं। एकांत श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ के गौरव हैं। <br /><br />Harihar Vaishnav<br />Sargipalpara<br />Kondagaon 494226<br />Bastar - C.G.<br />India<br />Phone: (+91) 07786 242693<br />Mob: (+91) 093 004 29264Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-65753131084144616752011-05-18T11:03:16.585+05:302011-05-18T11:03:16.585+05:30पोस्ट बहुत अच्छी लगी | हमारे हर में एक कबूतर ने ऐस...पोस्ट बहुत अच्छी लगी | हमारे हर में एक कबूतर ने ऐसे ही गमले में एक अंडा दे दिया था किन्तु न जाने क्यों उन्होंने दो दिन उसके पास आना छोड़ दिया हमने तो उस गमले में पानी देना छोड़ दिया था पौधा भी सुख गया और अंडे से बच्चे भी नहीं निकले |<br /><br /> @मातृत्व-वंचित वर्ग के सदस्य के<br /><br /> माँ बच्चे को सिर्फ जन्म दे कर ही नहीं बना जाता, कहते है न पालने वाला जन्म देने वाले से बड़ा होता है यानि पालन पोषण करने वाला भी माँ बन सकता है और ये तो हर कोई कर सकता है आप जन्म देने से वंचित हो सकते है मातृत्व सुख से नहीं | ऐसा मुझे लगता है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-88894890475758415972011-05-18T00:01:47.379+05:302011-05-18T00:01:47.379+05:30बढ़िया पोस्ट
विवेक जैन vivj2000.blogspot.comबढ़िया पोस्ट<br /><br /><a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-11765327542219746302011-05-17T21:49:24.848+05:302011-05-17T21:49:24.848+05:30आधुनिक वास्तु युग में घरों में पक्षियों के घोंसले ...आधुनिक वास्तु युग में घरों में पक्षियों के घोंसले बनाने की बातें तो सिर्फ स्मृतियों में ही रह गई हैं. गमले में अंडे देना शायद इस पक्षी का भी इन परिस्थितियों के साथ सामंजन ही है. आभार इस भावपूर्ण पोस्ट का.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-70891651659510487912011-05-17T20:26:50.573+05:302011-05-17T20:26:50.573+05:30सरजी पंडुक का चित्र होता तो अन्दाज लगता कि हमारे इ...सरजी पंडुक का चित्र होता तो अन्दाज लगता कि हमारे इधर भी चिडिया होती होगी उसे और कुछ नाम से जाना जाता होगा।ा बडे मुहावरों का प्रयोग कर डाला सर। क्या मैना का यह नाम है क्या ? मनियारी गोंटी चरना एसी कहाबत इधर बुन्देलखण्ड में प्रचलित नहीं है। आपके गमले बडे खूबसूरत लगे। धन्यवादBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-88714372789575843952011-05-17T17:13:45.667+05:302011-05-17T17:13:45.667+05:30ज्ञानवर्धक तथा रोचक पोस्टज्ञानवर्धक तथा रोचक पोस्टSapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com )https://www.blogger.com/profile/00012875891407319363noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-34435369674710247082011-05-17T17:10:55.398+05:302011-05-17T17:10:55.398+05:30पंड्की पर विस्तृत जानकारी देते हुए पोस्ट को मातृत...पंड्की पर विस्तृत जानकारी देते हुए पोस्ट को मातृत्व-दिवस के सन्दर्भ में जोड़ना,राहुल सिंह की विशिष्टता को दर्शाता है.आपके लेखन-कौशल को नमन.मेरा परिवार भी पक्षी प्रेमी है.हम कभी अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करेंगे." वा रे ! मोर पंड्की मैना " की स्मृति ने १९८२ में पहुँचा दिया.अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)https://www.blogger.com/profile/11022098234559888734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-26230600933401873922011-05-16T22:16:53.487+05:302011-05-16T22:16:53.487+05:30मातृत्व दिवस पर इससे बढ़िया आलेख, मेरा दावा है, और...मातृत्व दिवस पर इससे बढ़िया आलेख, मेरा दावा है, और कहीं नहीं पाया जा सकता. एक जोड़ा हमारे घर के इर्द गिर्द भी चहल कदमी कर रहा है. अण्डों को सेने के बाद वाली स्थितियां अनुकूल रहें. आभार.PN Subramanianhttp://mallar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-12711675167328416182011-05-16T22:05:30.005+05:302011-05-16T22:05:30.005+05:30prakriti prem kee jhalak hai lekh men . sunder.prakriti prem kee jhalak hai lekh men . sunder.nature7speaks.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/12029741467871950637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-2525253526843502782011-05-16T15:24:36.164+05:302011-05-16T15:24:36.164+05:30bahut hi badiya prastuti... maine bhi apne ghar me...bahut hi badiya prastuti... maine bhi apne ghar mein money plant mein BULBUL ke andon aur unse nikalte bachhon ko dedha hai abhi kal hi we bade hokar ude hain .. main bhi apne blog par unke baare mein likhne jaa rahi hun ... aaj aapki post padhi to bahut achha laga... <br />sach mein prakriti se judhna kitna sukhkar hota hai...<br />aapka aabharकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-74169964818447861142011-05-15T22:19:14.238+05:302011-05-15T22:19:14.238+05:30Are wah, aaj kal humen bhee bird watching ka saubh...Are wah, aaj kal humen bhee bird watching ka saubhagy mil raha hai. nili peeli chidiyan jinka hum nam nahee jante yahan Martin'sberg me dekane ko mil rahee hai. Aage aap batayen ki kitane dino bad ande foote aur bachche nikale unke chitr bhee den to sone men suhaga.Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-88566733803118258082011-05-15T21:33:27.030+05:302011-05-15T21:33:27.030+05:30राहुल जी इससे अच्छी पोस्ट मैंने ब्लॉगजगत में आज तक...राहुल जी इससे अच्छी पोस्ट मैंने ब्लॉगजगत में आज तक नहीं पढ़ी। भाषा शैली का चमत्कार तो है ही, इसमें जो साहित्य और विज्ञान का सम्मिश्रण आपने किया है वह अद्भुत है।<br /><br />आपके इस आलेख से बहुत कुछ सीखने को मिला, खासकर एक बहुत अच्छा आलेख किस तरह लिखा जाता है।<br /><br />बंगाल में इसे घुघ्घु कहा जाता है। घोंसला बनाने के लिए ये किसी एकांत जगह पर झाड़ी का चुनाव करते हैं, आपके गमलों से बेहतर और क्या हो सकता था, चित्र तो यही दर्शाते हैं। एक एक चित्र अनमोल निधि है।<br /><br />आभार इस बेहतरीन पोस्ट को पढवाने के लिए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-26770198301459959952011-05-15T18:53:43.102+05:302011-05-15T18:53:43.102+05:30बहुत ही मन को छूने वाली पोस्ट लगी ये....इतने विस्...बहुत ही मन को छूने वाली पोस्ट लगी ये....इतने विस्तार से इस चिड़िया के बारे में लिखा...एक नया नाम भी पता चला...वरना हम तो dove ही जानते थेrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-44016163799274900732011-05-15T16:23:47.838+05:302011-05-15T16:23:47.838+05:30आपकी विलक्षण दृष्टि ही है जो कहाँ कहाँ की सैर करात...आपकी विलक्षण दृष्टि ही है जो कहाँ कहाँ की सैर कराती रही और ध्यान गमले से भी नहीं हटा।<br />गुडलक टु ’पेंडुकी परिवार।’संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-21491743161625082842011-05-15T08:04:59.694+05:302011-05-15T08:04:59.694+05:30सबसे पहले मेरा आपको प्रणाम |
आज फिर इतनी मेहनत से ...सबसे पहले मेरा आपको प्रणाम |<br />आज फिर इतनी मेहनत से एक और खुबसूरत पोस्ट हमारे समक्ष लाने का बहुत - बहुत शुक्रिया | बहुत खूबसूरती से प्रकृति के अंश को आपने चित्रित किया और साथ में सुन्दर तस्वीरे प्रमाण सहित | बहुत सी जानकारियां मिली |<br />आपका आभार |Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-6514500465271826762011-05-15T06:51:37.741+05:302011-05-15T06:51:37.741+05:30पंडुक पक्षी अपने जोड़े के साथ ही रहने के लिए प्रसिद...पंडुक पक्षी अपने जोड़े के साथ ही रहने के लिए प्रसिद्द ही.<br />बिना जोड़े के अकेले दिखाई नहीं देता.<br />खेत जाते समय इन्हें रास्ते में गोटियाँ बीनकर खाते हुए देखना.<br />मेरी दिन चर्या मेन शामिल था.<br />इन्हें प्रेम का प्रतीक माना जाता रहा है.<br />आपकी पोस्ट से ज्ञानरंजन हुआ...आभारब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-50855144713162061932011-05-14T21:23:44.356+05:302011-05-14T21:23:44.356+05:30ज्ञान वर्धक जानकारी भरा आलेख
शुभकामनायेज्ञान वर्धक जानकारी भरा आलेख <br />शुभकामनायेDeepak Sainihttps://www.blogger.com/profile/04297742055557765083noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-2665901497199831302011-05-14T14:22:19.425+05:302011-05-14T14:22:19.425+05:30आपके आलेख ज्ञानवर्धक और रोचक होते हैं।
‘हाय रे मोर...आपके आलेख ज्ञानवर्धक और रोचक होते हैं।<br />‘हाय रे मोर पंड़की मैना‘ का उल्लेख अच्छा लगा।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-52746778898088996162011-05-12T09:33:21.641+05:302011-05-12T09:33:21.641+05:30दिलचस्प आलेख. आभार.दिलचस्प आलेख. आभार.Swarajya karunhttps://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-77498353670590772912011-05-11T21:14:13.815+05:302011-05-11T21:14:13.815+05:30.
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मुझे तो डर लग रहा है कि फर्श के इतने करीब गम....<br />.<br />.<br />मुझे तो डर लग रहा है कि फर्श के इतने करीब गमला और उसमें अंडे सेती पंडुक... अपने यहाँ तो हर समय घूमती बिल्लियाँ अभी तक न जाने क्या कर दीं होती... आपको अतिरिक्त सावधानी-सुरक्षा बरतनी होगी !<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-81475003157052887842011-05-11T17:29:27.181+05:302011-05-11T17:29:27.181+05:30आपकी अवलोकन क्षमता और धीरज को दाद देनी पड़ेगी।आपकी अवलोकन क्षमता और धीरज को दाद देनी पड़ेगी।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-59776298699057763632011-05-11T12:23:34.496+05:302011-05-11T12:23:34.496+05:30अत्यन्त रोचक पोस्ट .. राहुल जी । आधुनिकता को दौर म...अत्यन्त रोचक पोस्ट .. राहुल जी । आधुनिकता को दौर में .. आपके पोस्ट .. प्राकृतिकता को जिंदा रखने में सहायक हैं । बधाई ।<br />- डा. जे.एस.बी. नायडूAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-37809737919774077292011-05-11T08:39:42.228+05:302011-05-11T08:39:42.228+05:30सरस ललित निबन्ध का अवर्णनीय आनन्द देनेवाली रोचक ...सरस ललित निबन्ध का अवर्णनीय आनन्द देनेवाली रोचक और ज्ञानवर्ध्दक पोस्ट। सुबह सुहावनी हो गई।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1560745184921178776.post-7904918145754232852011-05-11T00:02:25.878+05:302011-05-11T00:02:25.878+05:30मुझे इस पोस्ट के मूल से कुछ जानना है, कि उसने कितन...मुझे इस पोस्ट के मूल से कुछ जानना है, कि उसने कितना वक्त अपने अध्ययन के लिए तय कर रखा है, कितना वक्त चिंतन और कितना लेखन को दे रखा है। दीख पड़ता है, अध्ययन के वक्त में चिंतन का अतिक्रमण। जान पड़ता है, चिंतन की परिधि में घुस लेखन ने ललकारा है। बहुत खूब। समिश्रण की सर्वश्रेष्ट पोस्ट। मिनिटों की यह जंजीर क्यों इतनी जकड़ी सी है, किताब के बर्खों को खोलता हूं तो ऑफिस के कंप्यूटर की स्क्रीन दिखती है। लिखने कुछ कलम उठाता हूं , तो मोबाइल फोन की एसएमएस या कॉल की घंटी घनघनाती है। शायद इसे ही पत्रकार या कुछ न करनेकार कहते हों। पोस्ट आपकी पढ़ी अफसोस मुझे अपने अनअध्ययनशील होने का हो रहा है। चलिए आपको एक बार फिर से बधाइयां।Barun Sakhajee Shrivastavhttps://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com