Sunday, October 10, 2021

सरग चो लछमी

सरग चो लछमी भुई ने ईली

भाग१ फिरेदे हामचो तुमचो, सुना बे गोहार२।

इन्द्रावती नंदी के दखा, तपसी आदिवासी चो गंगा,
येबे नी आय कोई चिन्ता येचो आसे भारी मया।
शंखनी डंकिनी खोलाप नारंगी, माई इन्द्रावती चो संगी,
चितरकोट तीरथगढ़ के बलूं, बस्तर चो सिंगार।।
भाग फिरेदे हामचो तुमचो, सुना बे गोहार।।

धान पाकेदे कुंवार-कातिक, गहूं पाकेदे चईत३
डांडा-कांदा रोपते-रोपा४ दुई चो होयदे बीस।
टेंडा५ टेंडा खूब सकत ने६ पम्प लगावा तुमी,
चुवां-मुंडा७ काय पूरेदे बांधुक होयदे नंदी।।
भाग फिरेदे हामचो तुमचो, सुना बे गोहार।।

सूखा-सूखी८ चो डर नी आय कितरो तपेदे बेर९
बादरी१० ठगेदे केबे-जेबे, नीं बसूं ओगाय११।
बेड़ा ने बोहरावां?१२ गंगा, पसना१३ होयदे जमना,
सरग१४ चो लछमी भुई१५ ने ईली सतहोली१६ येबे सपना।।

भाग फिरेदे हामचो तुमचो, सुना के गोहार।/div>

१भाग्य २पुकार ३चैत्र ४बोना ५हाथ से पानी सींचने का लकड़ी से बना यंत्र ६परिश्रम ७कुंआ और तालाब ८अनावृष्टि ९सूर्य १०मेघ ११चुपचाप १२प्रवाहित करना १३पसीना १४स्वर्ग १५धरती १६सत्य होना।

गिरधारीलाल रायकवार ‘मनहर‘
द्वारा- गोवर्धनलाल रायकवार पोस्टमैन,
पो.आ. जगदलपुर

संस्कृति विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के उपसंचालक पद से अवकाश-प्राप्त रायकवार जी, जगदलपुर निवासी हैं। शिक्षक रहे हैं। पुरातत्व और संस्कृति के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में उनकी समझ जितनी गहन गंभीर है, व्यवहार उतना ही सहज। भाषा के जानकार हैं ही। हलबी में नाटक भी लिखा है ‘सीता बिहा नाट‘, कहते हैं- रामकथा का सबसे अधिक नाटकीय संभावना वाला प्रसंग सीता स्वयंबर ही है। ‘मनहर‘ उपनाम, उन्होंने बाद में प्रचलन में नहीं रखा, जैसा इस कविता में उनके नाम के साथ है। मुझे लगता है कि यह बस्तर संभाग गीत का मान पाने योग्य है (वैसे कई बार ऐसा लगता है कि ठेठ बस्तर में कांकेर छूटा रहता है)। यह कविता मध्यप्रदेश शासन, पंचायत विभाग की पत्रिका ‘समाज सेवा‘ के लोक संस्कृति अंक, जनवरी 1974 में प्रकाशित हुई थी। इस कविता के साथ अपने लिए कौतुक प्रयास, हलबी को टटोलते, हिंदी अनुवाद का प्रयास मेरा है।

स्वर्ग की लक्ष्मी भूमि पर आई

हमारा तुम्हारा भाग्य बदलेगा, सुनो मेरी पुकार।

इंद्रावती नदी को देखो, तपस्वी आदिवासियों की (यह) गंगा (है)। अब (हमें) कोई चिंता नहीं, इसका (हम पर) असीम स्नेह (है)। शंखनी डंकिनी खोलाप नारंगी (नदियां) मां इंद्रावती की संगी हैं। चित्रकोट और तीरथगढ़ को कहें बस्तर का श्रृंगार। हमारा तुम्हारा ...

कुंआर-कार्तिक महीने में धान की फसल पकती है और गेहूं चैत में पकता है। केद-मूल रोपते चलो यह दो (रुपये) का, बीस का हो जाएगा। टेंडा में खूब परिश्रम है, तुम पंप लगाओ। कुएं तालाब कितना पूरे पडेंगे, नदी में बांध बनाना होगा। हमारा तुम्हारा ...

सूखे (अकाल) का डर नहीं है, दिन (सूर्य) कितना भी तपे, जब तब बादल ठग (साथ न) दे, (फिर भी) खाली (चुपचाप) नहीं बैठेंगे। खेतों में गंगा बहाएंगे, इसमें हमारा पसीना यमुना होगी। स्वर्ग की लक्ष्मी भूमि पर आई, सपना अब सच हुआ। हमारा तुम्हारा ...

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